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Showing posts from December, 2019

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एमपी इलेक्शन: सर्वे की कोख से निकली लिस्ट

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  Kamal Nath is going out of way to prove he is not anti-Hindu MP Assembly Election Update: 14 October 2023 NK SINGH कमलनाथ के प्लान के मुताबिक काँग्रेस की लिस्ट इस दफा सर्वे-नाथ ने बनाई है। प्रदेश के नेताओं में आम तौर पर सहमति थी कि लिस्ट इस बार सर्वे के आधार पर बनेगी। पर क्या यह महज संयोग है कि यह लिस्ट राहुल गांधी के गेम-प्लान के मुताबिक भी है? वे अपनी पार्टी के क्षत्रपों के कार्टेल को ध्वस्त करना चाहते हैं, जो 10-15 एमएलए के बूते पर प्रदेश की पॉलिटिक्स चलाते हैं। सर्वे की कोख से निकली लिस्ट कमोबेश जीत की संभावना के आधार पर बनी है। एनपी प्रजापति जैसे अपवादों को छोड़कर कोई सप्राइज़ नहीं। बीजेपी की लिस्ट देखते हुए, काँग्रेस इस बार फूँक-फूक कर कदम रख रही थी। भाजपा उम्मीदवारों की पांचों लिस्ट 2018 के मुकाबले काफी बेहतर थी। नाम दिल्ली ने तय किए, प्रदेश के किसी भी नेता के प्रभाव से परे। चयन का आधार गुटबाजी नहीं, जीत की संभावना रही। इसलिए, दोनों तरफ के उम्मीदवारों का लाइन-अप देखकर लगता है, मुकाबला कांटे है। टिकट न मिलने से निराश नेताओं की बगावत का दौर शुरू हो गया है। यह हर चुनाव में होता है।

JMM Payoffs: Defection scandal

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A Jharkhand MP claims he and three others received money to bail out the Rao Government in a 1993 no-trust motion as allegations are made that hawala funds were used to buy four crucial votes   N.K. Singh MYSTERIOUS MONEY Four JMM MPs who opposed a notrust motion on July 28, 1993, deposited more than Rs.1.60 crore on August 1 and 2 in the same bank in Delhi. The petition alleges that on August 1, 1993, Rs.30 lakh was deposited in  Suraj Mandal 's account. Shailendra Mahato says that three days after they voted for the Government, Mandal gave him Rs.40 lakh, saying that the money came from Rao. On August 1, 1993, Rs.30 lakh was deposited in the account of JMM MP  Shibu Soren , his wife, and Hemant Kumar and Basant Kumar. On the same day, Rs.30 lakh was deposited in the name of the four JMM MPs and Rs.12 lakh in the name of  Simon Marandi  and his wife. Next day, Rs.21 lakh more was deposited in their account. If it were the handiwork of the Congress(I) minister

Atal Bihari Vajpayee : A Dove Among Hawks

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India Today 31 Mat 1996 NK SINGH A FRAMED PHOTOGRAPH OF P.V. Narasimha Rao adorns the spacious dining room of Atal Bihari Vajpayee’s Raisina Road residence in New Delhi. If anything, it provides an insight into the mind of the new prime minister of India, a politician whose party does not believe that wisdom exists outside the saffron fold. Vajpayee, 71, has been a votary of the politics of consensus throughout his five decades in public life. That he is the lone dove among the Hindutva hawks is evident from Vajpayee’s own admission that his biggest weakness is that he can never hit back. And that, ironically, is also his biggest asset. As Supreme Court advocate N.M. Ghatate, who has known Vajpayee for 40 years, says, “He does not mince words where criticism is due, but his criticism does not hurt anyone.” An RSS whole-timer whose father was a schoolteacher in Gwalior, Vajpayee has come a long way since the 1940s when he used to write fiery proems about his Hindu

अटल बिहारी वाजपेयी : अपनों में बेगाना नेता

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India Today (Hindi) 31 May 1996 Atal Bihari Vajpayee : Lonely at the Top NK SINGH अटल बिहारी वाजपेयी  के नई दिल्ली स्थित रायसीना रोड निवास के बडे़-से भोजन कक्ष में पूर्व प्रधानमंत्री  पी.वी. नरसिंह राव  की फ्रेम  में जड़ी एक तस्वीर सजी है। कमरे का यह नजारा भारत के नए प्रधानमंत्री की एक ऐसे नेता के रूप में झलक देता है जिसकी पार्टी अपने से इतर समझदारी का अस्तित्व स्वीकार नहीं करती। 71 वर्षीय वाजपेयी सार्वजनिक जीवन के पांच दशकों में आम सहमति की राजनीति के उपासक रहे हैं। हिंदुत्ववादियों की पाषाण-हृदय बिरादरी में वे अकेले नरम दिल नेता हैं। वे किसी के मर्म पर वार नहीं कर सकते और यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। विडंबना देखिए कि यही उनकी सबसे बड़ी खूबी भी है। वाजपेयी से 40 वर्ष से परिचित सुप्रीम कोर्ट के वकील  एन.एम. घटाटे  कहते हैं, ‘‘जहां आलोचना  करने की जरूरत होती वहां वे कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन उनकी आलोचना से कोई आहत भी नहीं होता।‘‘ आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता वाजपेयी के पिता ग्वालियर के एक विद्यालय में अध्यापक थे। चालीस  के दशक से लेकर अब तक वाजपेयी ने वाकई बड़ा ल

सीएम के साले संजय मसानी का सियासी सफ़र : “मैं तो साहब बन गया”

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Sanjay Singh Masani MADHYA PRADESH Chouhan's brother-in-law leaves BJP to join Congress NK SINGH वारासिवनी: कांग्रेस उम्मीदवार संजय सिंह मसानी वोट कितने बटोरेंगे, कहना मुश्किल है, पर वे तालियाँ खूब बटोर रहे हैं. मसानी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले हैं. चुनाव के ठीक पहले उन्होंने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा. अपने लच्छेदार भाषण से वे लोगों को खींचने की कोशिश कर रहे हैं. शाम के धुंधलके में सड़क पर एक जगह अपनी गाड़ी रोककर ट्रक पर लगे सर्चलाइट की रोशनी में एक नुक्कड़ पर लोगों को बताते हैं कि क्यों उन्हें इस बार संजय मसानी को वोट देना चाहिए. “रुका हुआ पानी तो ढोर भी नहीं पीता.” मसानी के लिए कांग्रेस का टिकट पाना जितना आसन था, जीतना उतना नहीं हैं. उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं, भाजपा के मौजूदा विधायक योगेन्द्र निर्मल और कांग्रेस के दमदार बागी प्रदीप जायसवाल , जो इसी सीट से पहले तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. शिवराज मामा की जगह असली मामाजी को लाकर कांग्रेस ने खूब सुर्खियाँ बंटोरीं. पर रणक्षेत्र में मसानी अकेले खड़े नजर आते

मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव २०१८ : कांग्रेस ने कैसे सुनहरा मौका खोया

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Dainik Bhaskar 13 December 2018 How Congress missed a golden opportunity in 2018 MP assembly election NK SINGH कांग्रेस अगर २०१३ के मुकाबले अपनी सीटों में लगभग दोगुना इजाफा कर पाई है तो इसपर उसे इठलाने की जरूरत नहीं. भले उसे भाजपा से ५ सीटें ज्यादा हासिल हुई हों, पर वोटिंग परसेंटेज देखें तो कांग्रेस को भाजपा से कम वोट मिले हैं! सही है, पांच साल पहले उसके और भाजपा के बीच आठ परसेंट वोटों का फासला था और उस बड़े अंतर को पाटने में वह कामयाब रही है. पर बहुमत से दो सीट पीछे रह जाना उसे हमेशा सालता रहेगा. इस खंडित जनादेश के लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार है. वह अपने पत्ते अच्छी तरह खेलती तो नतीजे अलग हो सकते थे. मध्य प्रदेश में १५ साल से भाजपा बनाम अन्य का माहौल है. मैदान में ज्यादा खिलाड़ी होने का फायदा भाजपा को मिलता है. एक ज़माने में यही फायदा कांग्रेस को मिलता था. गोंडवाना, बसपा और समाजवादी पार्टी से चुनावी समझौता न करके कांग्रेस ने एक ऐतिहासिक भूल की. इन छोटी पार्टियों को भले तीन सीटें मिली हों पर वे ८.१ परसेंट वोट ले गयीं. भाजपा-विरोधी वोट बाँटने से कांग्रेस को

बसपा, सपा और गोंडवाना से हाथ नहीं मिलाकर कांग्रेस ने बड़ी गलती की

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Dainik Bhaskar 22 November 2018 Fragmented Opposition is benefitting BJP in Vindhya NK SINGH चित्रकूट: तुलसीदास ने लिखा है कि राम जब इन जंगलों से गुजरे थे तो उन्हें पहचान कर नदी, वन, पहाड़ और दुर्गम घाटियों ने खुद रास्ता दिया और बादलों ने आकाश में छाया की. मानस से शुरू यह सफ़र विन्ध्य की टूटी-फूटी सड़कों की धूल फांकते हुए कब राग दरबारी के विद्रूप में बदल गया, पता ही नहीं चला. यह पूरा इलाका राग दरबारी के “देहात का महासागर” है. जगमाते रीवा शहर और उसके बाहर १,६०० एकड में फैले विशाल सोलर पॉवर प्लांट को छोड़ दें तो १५ साल की उपलब्धियों के नाम पर भाजपा सरकार के पास बहुत कम है. सिंगरौली के पॉवर प्लांट और सतना के आस-पास के सीमेंट कारखाने तो कांग्रेसी राज में ही बन चुके थे. सफ़र के दौरान रह-रह कर एंटी इनकम्बेंसी की घंटी बजती रही. लोगों में नाराजगी की वजह थी – रोजगार की कमी, ख़राब सड़कें, स्थानीय विधायक के काम से असंतोष, एससी एसटी एक्ट और घोषणाओं पर आधा-अधूरा अमल. व्यापारी नोटबंदी और जीएसटी का बात करते हैं. पर क्या नाराजगी वोट में बदलेगी? “लोग-बाग अंडरकरंट की बात करत

विन्ध्य के तीन हाई प्रोफाइल चेहरे अपने गढ़ बचाने में जुटे

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Dainik Bhaskar 20 November 2018 Three high profile candidates fighting to save their turf NK SINGH सतना: अमरन नदी के किनारे नागौद रियासत का खूबसूरत किला मध्यकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है. भरहुत पत्थरों से बने इस किले के पास ही उड़दान गाँव है. गाँव के दलित मोहल्ले में एक कुर्सी पर नागौद रियासत के वंशज नागेन्द्र सिंह बैठे हैं. नीचे फर्श पर मोहल्ले के कुछ लोग बैठे हैं. गली में दलित नवयुवकों का जमावड़ा है. उनकी शिकायत है कि पढाई-लिखाई करने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है. एक महिला अपनी पेंशन बंद होने की शिकायत लेकर आई है. सबका कुछ न कुछ रोना है. लगता है ऐसी ही शिकायतों से निबटने के भाजपा ने यहाँ से नागेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा है, जो शिवराज सिंह चौहान की पिछली सरकार में मंत्री थे. फिलहाल वे खजुराहो से सांसद हैं. उनके सामने कांग्रेस के मौजूदा विधायक यादवेन्द्र सिंह को हराने की चुनौती है. दोनों मुख्य उम्मीदवार राजपूत हैं. इलाके में पिछले पांच साल से जमावट कर रही भाजपा नेता रश्मि पटेल बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. वे   अपनी पुरानी प

विन्ध्य में सरकारी योजनाओं की घर-घर पैठ ; और मामा को भी सब जानते हैं

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Dainik Bhaskar 18 November 2018 Tribal voters in Vindhya Pradesh for Mama   NK SINGH उमरिया : बैहर बैगा पाँव से भले लाचार हों, पर दिमाग उनका तेज चलता है. वे हमारे सामने उन उपहारों की एक लम्बी लिस्ट रख देते हैं जो फूल छाप सरकार ने उन्हें दिए हैं – एक एकड़ जमीन, ३०० रूपये का विकलांग पेंशन, ५५ रूपये में बिजली, बच्चों की ड्रेस और दोपहर का खाना और लगभग मुफ्त के भाव २० किलो गेंहूँ, १५ किलो चावल और ४ लीटर किरासन तेल. पहाड़ों और जंगलों के बीच बसे सिंहपुर गाँव के इस अनपढ़ आदिवासी को यह भी मालूम है कि इस सरकार को कौन चलाता है: “फूल छाप आदिवासी के मान करत .   मामा पट्टा दिए.” बैहर को यह नहीं मालूम कि चुनाव मैदान में कौन उम्मीदवार खड़ा है, पर उनको लगता है कि फूल छाप जीतेगा. भाजपा की तारीफ तो वे करते हैं, पर आदिवासियों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का श्रेय कांग्रेस को भी देते हैं, हालाँकि उस पार्टी का नाम उन्हें नहीं मालूम. पर वे जोर देकर कहते हैं मदद की शुरुआत पंजा ने किया था, अब फूल छाप दे रहा है. बड़े सरल शब्दों में   वे भारतीय लोकतंत्र की सफलता की कहानी सुना देते हैं.