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Showing posts from February, 2022

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एमपी इलेक्शन: सर्वे की कोख से निकली लिस्ट

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  Kamal Nath is going out of way to prove he is not anti-Hindu MP Assembly Election Update: 14 October 2023 NK SINGH कमलनाथ के प्लान के मुताबिक काँग्रेस की लिस्ट इस दफा सर्वे-नाथ ने बनाई है। प्रदेश के नेताओं में आम तौर पर सहमति थी कि लिस्ट इस बार सर्वे के आधार पर बनेगी। पर क्या यह महज संयोग है कि यह लिस्ट राहुल गांधी के गेम-प्लान के मुताबिक भी है? वे अपनी पार्टी के क्षत्रपों के कार्टेल को ध्वस्त करना चाहते हैं, जो 10-15 एमएलए के बूते पर प्रदेश की पॉलिटिक्स चलाते हैं। सर्वे की कोख से निकली लिस्ट कमोबेश जीत की संभावना के आधार पर बनी है। एनपी प्रजापति जैसे अपवादों को छोड़कर कोई सप्राइज़ नहीं। बीजेपी की लिस्ट देखते हुए, काँग्रेस इस बार फूँक-फूक कर कदम रख रही थी। भाजपा उम्मीदवारों की पांचों लिस्ट 2018 के मुकाबले काफी बेहतर थी। नाम दिल्ली ने तय किए, प्रदेश के किसी भी नेता के प्रभाव से परे। चयन का आधार गुटबाजी नहीं, जीत की संभावना रही। इसलिए, दोनों तरफ के उम्मीदवारों का लाइन-अप देखकर लगता है, मुकाबला कांटे है। टिकट न मिलने से निराश नेताओं की बगावत का दौर शुरू हो गया है। यह हर चुनाव में होता है।

ऐसे थे मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री रामहित गुप्त

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Ramhit Gupta (1932-2013) Former Finance Minister of Madhya Pradesh Ramhit Gupta NK SINGH   भाजपा नेता गुप्त  मध्य प्रदेश  की जनता  सरकार  (१९७७ - 80) में वित्त मंत्री थे. घर में चोरी हुई। वे सरकारी जहाज लेकर सतना चले गए। बवाल मच गया क्योंकि उन्होंने निजी यात्रा के लिए सरकारी जहाज का इस्तेमाल किया था। क्या जमाना था और क्या लोग थे! उनके साहूकार पिता रामप्रताप गुप्त व्यावहारिक आदमी थे। बेटे के मंत्री बनने का उनपर कोई असर नहीं पड़ा। वित्त मंत्री के रूप में रामहित गुप्त के शपथ ग्रहण ठीक बाद ही , एक सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर ने उनसे २५ रूपये बतौर नजराना वसूल लिए. बेचारे को बाद में पता चला कि उसने अपने विभाग के मंत्री के बाप को ही मूड दिया है। दौड़ा-दौड़ा क्षमा मांगते हुए रूपये वापस करने आया. रामप्रताप गुप्त ने हाथ जोड़ दिए , " हमार लड़िका तो आज मिनिस्टर है , पर हमखा तो तुमसे रोज़े काम पडेखा."   पढ़िए रविवार के १२ फरवरी १९७८ के   अंक में छपी में मेरी रपट: वित्त मंत्री की वित्त चोरी मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री रामहित गुप्त की इस बात के लिए काफी खिंचाई हुई है कि अपने पैतृक नि

नरेंद्र कुमार सिंह : पत्रकारिता के धूमकेतु

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Narendra Kumar Singh MY EDITOR : NARENDRA KUMAR SINGH  Prakash Hindustani प्रकाश हिन्दुस्तानी की   वेबसाइट   पर ‘मेरे संपादक’ शृंखला में प्रकाशित एन.के. के नाम से मशहूर नरेन्द्र कुमार सिंह ने पत्रकारिता में अनेक झंडे गाड़े हैं। वे हैं तो बिहार के लेकिन उनका कर्म क्षेत्र पूरा भारत की रहा है , जिसमें से मध्यप्रदेश में उन्होंने अपनी सेवाओं लम्बे समय तक दी और अब वे मध्यप्रदेश के ही निवासी हो गए हैं। अपने ४० साल के पत्रकारिता के जीवन में एनके सिंह के तीन हजार से ज्यादा आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। कई अखबारों का सम्पादन वे कर चुके हैं और कई डाक्यूमेन्ट्री फिल्मों के निर्माण अहम सहयोग दे चुके हैं। सेन्ट्रल प्रेस क्लब भोपाल के अध्यक्ष रह चुके नरेन्द्र कुमार सिंह ने संगठन को बनाने के लिए ही बहुत सारे कार्य किए हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स के मध्यप्रदेश के स्थानीय सम्पादक के रूप में , इंडियान एक्सप्रेस के गुजरात संस्करणों के सम्पादकों के रूप में और दैनिक भास्कर के राजस्थान संस्करणों के सम्पादक के रूप में वे काम कर चुके हैं। वे दैनिक भास्कर भोपाल के स्थानीय सम्पादक भी रहे और इंडिया टुडे पत्रिका

स्मृति के पुल : गंगा बहती हो क्यों . . . Part 1

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Steamer near Pahleja Ghat, Bihar, Courtesy - Wikipedia Ganga and her people   NK SINGH   Published in Amar Ujala of 23 Jannuary 2022   तब गंगा में लाशें नहीं तैरा करती थीं। स्टीमर चला करते थे।  पटना में गंगा पर पुल बनने के बाद स्टीमर की यात्रा का रोमांस जाता रहा। पर आज भी जब गंगा टपने के लिए इस पुल से गुजरते हैं , नजर बरबस पहलेजा घाट की तरफ घूम जाती है।   वहाँ से किसी जमाने में ये स्टीमर चला करते थे। कानों में जहाज का भोंपू सुनाई देता है। ... ए कुली , थोड़ा फुर्ती से , जहाज खुलने वाला है। छूट गया तो रात भर झूलते रहो।   अब तो पटना में गंगा टपने के लिए दो-दो पुल हो गए हैं , तीसरे की तैयारी है. पर पहले इसी पहलेजा घाट से पानी का जहाज पकड़कर ही नदी के उस पार जाया जा सकता था।     गंगा की तराई नदियों से अटी है। गंगा , गंडक , कोशी , कमला और सोन जैसी विख्यात और ’ कुख्यात ’ नदियां जो कभी अनाज की सौगात लाती हैं तो कभी बाढ़ की विभीषिका। बिहार में ५०० किलोमीटर का फासला तय करने वाली गंगा प्रदेश को दो फांक बांटती है। आजादी के १० साल बाद १९५९ में मोकामा में नदी पर पहला पुल बना। तबतक ये स्टीमर

स्मृति के पुल : गंगा बहती हो क्यों . . . Part 2

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  A steamer at Sonpur mela, Courtesy - Heritage Times Ganga and her people - 2   NK SINGH   Published in Amar Ujala of 30 January 2022   एक लम्बे अरसे तक बिहार के जलमार्ग आवागमन के मुख्य संसाधन थे. इन नदियों में तब माल ढोने से लेकर यात्रिओं के आवागमन तक के लिए नावों के बेड़े चला करते थे। प्रसिध्द पत्रकार बी.जी.वर्गीज़ के मुताबिक एक समय ऐसा था जब अकेले पटना में ही ६२,००० नौकाएं रजिस्टर्ड थीं. तरह-तरह की नौकाएं. और तरह-तरह के यात्री. यह तो सबको मालूम है कि १८५७ की क्रांति की विफलता के बाद अंग्रेजों ने हिंदुस्तान के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर को देश निकाला दिया था और उस बदनसीब बूढ़े को कू-ए-यार में दफन होने के लिए दो गज जमीन भी नहीं मिली। पर लाल किले से कैसे उन्हे ले जाया गया था “उजड़े दयार” बर्मा तक? इतिहासकार विलियम डैलरिम्पल ‘लास्ट मुग़ल’ में लिखते हैं कि ७ अक्टूबर १८५८ को तड़के चार बजे अंग्रेजों ने नजरबंद बादशाह को एक बैलगाड़ी में लाद कर लाल किले से निकाला। फिर उन्हे इलाहाबाद होते हुए मिर्जापुर ले जाया गया। वहाँ से स्टीमर से कलकत्ता। और फिर पानी के जहाज से रंगून। १८३४ में ही इलाहाबा

स्मृति के पुल : गंगा बहती हो क्यों . . . Part 3

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Raj Kapoor and Waheeda Raehman in Shailendra's immortal classic, Teesari Kasam, a poignant love story of a bullock-cart driver and a nautanki artist Ganga and her people - 3   NK SINGH Published in Amar Ujala of 6 February 2022 पटना में १९८२ में  गंगा पर पुल  बनने के साथ ही पहलेजा घाट विस्मृति के गर्त में समा गया. उसके साथ ही पहलेजा घाट से सोनपुर तक चलने वाली घाट गाड़ी भी बंद हो गयी.  आज ये सारी जगहें सुनसान और उजाड़ पड़ी हैं।  तीसरी कसम  वाले अपने हीरामन गाड़ीवान देखते तो कहते, जा रे जमाना!   मीटर गेज की घाट लाइनों पर छुक-छुक चलती इन घाट गाड़ियों की अलग ही दास्तान है, जो रेल-इतिहासकारों को आज भी लुभाती हैं. इस घाट गाड़ियों का काम था मेन लाइन के स्टेशनों से यात्रिओं को जहाज तक पहुँचाना.   आज भी इन घाटों के नाम रोमांच जगाते हैं. आज वीरान पड़े मनिहारी घाट, बरारी घाट, मुंगेर घाट ऐसी जगहें हैं जहाँ कभी दिन-रात चहल-पहल रहती थी. इन घाटों से जुड़े एक   किस्से की चासनी ।   मनिहारी घाट के दूसरे किनारे है साहिबगंज , जहां के घाट पर   बंदिनी का आखिरी दृश्य फिल्माया   गया था। 1960 के दशक में , जब बंदिन