Posts

Showing posts from October, 2015

NK's Post

एमपी इलेक्शन: सर्वे की कोख से निकली लिस्ट

Image
  Kamal Nath is going out of way to prove he is not anti-Hindu MP Assembly Election Update: 14 October 2023 NK SINGH कमलनाथ के प्लान के मुताबिक काँग्रेस की लिस्ट इस दफा सर्वे-नाथ ने बनाई है। प्रदेश के नेताओं में आम तौर पर सहमति थी कि लिस्ट इस बार सर्वे के आधार पर बनेगी। पर क्या यह महज संयोग है कि यह लिस्ट राहुल गांधी के गेम-प्लान के मुताबिक भी है? वे अपनी पार्टी के क्षत्रपों के कार्टेल को ध्वस्त करना चाहते हैं, जो 10-15 एमएलए के बूते पर प्रदेश की पॉलिटिक्स चलाते हैं। सर्वे की कोख से निकली लिस्ट कमोबेश जीत की संभावना के आधार पर बनी है। एनपी प्रजापति जैसे अपवादों को छोड़कर कोई सप्राइज़ नहीं। बीजेपी की लिस्ट देखते हुए, काँग्रेस इस बार फूँक-फूक कर कदम रख रही थी। भाजपा उम्मीदवारों की पांचों लिस्ट 2018 के मुकाबले काफी बेहतर थी। नाम दिल्ली ने तय किए, प्रदेश के किसी भी नेता के प्रभाव से परे। चयन का आधार गुटबाजी नहीं, जीत की संभावना रही। इसलिए, दोनों तरफ के उम्मीदवारों का लाइन-अप देखकर लगता है, मुकाबला कांटे है। टिकट न मिलने से निराश नेताओं की बगावत का दौर शुरू हो गया है। यह हर चुनाव में होता है।

BANDIT MALKHAN SINGH'S LAST NIGHT IN CHAMBAL RAVINES

चम्बल की बीहड़ों में एक रात नरेन्द्र कुमार सिंह भिंड जिले की बीहड़ों के बीच बसा मदनपुरा गाँव. १९८२ के गर्मियों की एक रात. अँधेरा इतना था कि हाथ को हाथ न सूझे. सामने पहाड़ जैसे ऊँचे बीहड़, उनके बीच ऊबड़-खाबड़, घुमावदार पगडंडियों का जाल. अगला कदम कहाँ ले जायेगा, इसका कोई अंदाज़ नहीं. टार्च की धुंधली रोशनी के सहारे हम एक-एक कदम फूँक-फूंककर बढ़ा रहे थे. तभी एक मोड़ पर कई बड़े टार्चों की तेज रोशनी से हमारी आँखे चौंधिया गयी. एकाएक हमें चारों तरफ से हथियारबंद लोगों ने घेर लिया और बंदूकें तन गयी. कुछ समय के लिए साँस टंगी की टंगी रह गयी. फिर किसी ने रमाशंकर सिंह को पहचाना, जो उन दिनों भिंड जिले से ही लोक दल के जुझारू विधायक हुआ करते थे और अब ग्वालियर में एक बहुत ही सफल प्राइवेट यूनिवर्सिटी चलाते हैं. अब हम गैंग के मेहमान थे. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लगभग २०,००० किलोमीटर में भूल-भुल्लैया की तरह फैले चम्बल के बीहड़ों की खासियत यह है कि पांच-दस फीट आगे का आदमी भी आँखों से ओझल हो सकता है. डकैतों की बड़ी से बड़ी गैंग आराम से हफ़्तों किसी खो में छिपी रह सकती है और घाटी के दूसरी तरफ मार्च कर रही पलट

WHY POOR ARE MAGINALISED IN MEDIA

WHY POOR ARE TREATED AS PARIAHS IN INDIAN MEDIA NK SINGH   With the growth in population, literacy rate and disposable income, t he circulation of newspapers has zoomed in the last two decades, especially those published in the Indian languages. It is not rare for chain newspapers to claim a daily circulation is excess of a million copies. A newspaper selling less than a hundred thousand copies is considered a small daily now-a-days. The paradox is that even as the newspapers’ circulation is increasing, their influence is decreasing. Journalists realise that their writings or broadcast does not command the same impact that they would, say, two decades ago. Why? The resp ect for the printed words has gone down over the years. Certain developments have changed the public perception about the Fourth Estate. Journalists were caught with their pants down, first, during the Emergency. 24/7 news channels too the dumbing down to a new low, wiping off all pretentions of intellectual pursuit. Th