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Showing posts from April, 2018

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एमपी इलेक्शन: सर्वे की कोख से निकली लिस्ट

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  Kamal Nath is going out of way to prove he is not anti-Hindu MP Assembly Election Update: 14 October 2023 NK SINGH कमलनाथ के प्लान के मुताबिक काँग्रेस की लिस्ट इस दफा सर्वे-नाथ ने बनाई है। प्रदेश के नेताओं में आम तौर पर सहमति थी कि लिस्ट इस बार सर्वे के आधार पर बनेगी। पर क्या यह महज संयोग है कि यह लिस्ट राहुल गांधी के गेम-प्लान के मुताबिक भी है? वे अपनी पार्टी के क्षत्रपों के कार्टेल को ध्वस्त करना चाहते हैं, जो 10-15 एमएलए के बूते पर प्रदेश की पॉलिटिक्स चलाते हैं। सर्वे की कोख से निकली लिस्ट कमोबेश जीत की संभावना के आधार पर बनी है। एनपी प्रजापति जैसे अपवादों को छोड़कर कोई सप्राइज़ नहीं। बीजेपी की लिस्ट देखते हुए, काँग्रेस इस बार फूँक-फूक कर कदम रख रही थी। भाजपा उम्मीदवारों की पांचों लिस्ट 2018 के मुकाबले काफी बेहतर थी। नाम दिल्ली ने तय किए, प्रदेश के किसी भी नेता के प्रभाव से परे। चयन का आधार गुटबाजी नहीं, जीत की संभावना रही। इसलिए, दोनों तरफ के उम्मीदवारों का लाइन-अप देखकर लगता है, मुकाबला कांटे है। टिकट न मिलने से निराश नेताओं की बगावत का दौर शुरू हो गया है। यह हर चुनाव में होता है।

मध्य प्रदेश में सरकारी भूदान अभियान

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Land Grab by BJP and allies in MP NK SINGH राज्य की भाजपा सरकार पार्टी से जुड़े विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों को माटी के मोल या बिलकुल मुफ्त सरकारी जमीन धड़ल्ले से बांटकर अपने लिए उपयोगी जायदाद खड़ी कर रही है। मध्य प्रदेश में इन दिनों ‘भू-दान‘ आंदोलन चल रहा है। ‘दान‘ हो रही है सरकारी जमीन। मौके की एक एकड़ शहरी  जमीन एक रू. के प्रतीक मूल्य अथवा मामूली-सी कीमत पर खरीदी जा सकती है। शर्त अथवा योग्यता बस इतनी ही कि आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हों. राज्य में ढ़ाई वर्ष तक शासन करने के बाद पटवा सरकार का रवैया ऐसा है मानो राज्य की जमीन उसकी निजी जागीर हो, जिसे वह भाजपा से संबंधित संगठनों को उपहार में दे सकती है। संघ परिवार के विभिन्न सदस्य अब तक 70 करेाड़ रू. की 200 एकड. भूमि हासिल कर चुके हैं। जाहिर तौर पर संघ से संबंधित संगठन सरकार से जमीन अपने सांगठनिक कामकाज के लिए ही लेते हैं लेकिन भाजपा-संघ का मकसद ऐसे सौदों की आड़ में ज्यादा-से-ज्यादा अचल संपत्ति जुटाना है। इससे पार्टी के लिए पैसे की पर्याप्त व्यवस्था होती रहेगी। यही वजह है कि संघ के छोटे-छोटे संगठनों में भी जमीन की मांग बढ़

Kamal Nath & Scindia need a makeover

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NK SINGH Arjun Singh became the chief minister of Madhya Pradesh for the first time in 1980 with the help of Kamal Nath, then 33 and a good friend of Sanjay Gandhi. Shivbhanu Singh Solanki, a tribal leader, had polled more votes than Singh in the elections for leadership of the Congress legislature party. Then something amazing happened. Nath ‘transferred’ his votes to Singh, reducing Solanki’s majority to minority! It was a well-scripted move, approved by Sanjay Gandhi, then heir apparent of Congress party, to help Singh. Nath was doing what he had been asked to do. In a repeat performance 13 years later, Kamal Nath, then a minister of state in Narasimha Rao government, helped Digvijay Singh become the chief minister in 1993. The drama enacted before the CLP election has become a political folklore ---- a classic case of Machiavellian intrigues. With Arjun Singh’s covert blessing, Nath threw his lot with Digvijay Singh at the last moment, flummoxing rival groups of

The Arjun Singh camp outwits Scindia and the Shuklas to get Digvijay Singh elected

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His Master’s Choice N.K. SINGH It is a measure of the intriguing nature of the leadership struggle in the Congress(I) that nobody is talking about the plans and priorities of the new Chief Minister Digvijay Singh for Madhya Pradesh. Scant attention has been paid to his announcement to review all the controversial decisions of the BJP government. Or that he plans action against government employees who were involved with the activities of the VHP and Bajrang Dal and the demolition of the Babri Masjid.  Or that he has asked the chief secretary to formulate a government policy to fulfil the party's poll promises. Instead, questions keep recurring about the curious set of events that led to his surprise election as the leader of the Congress Legislature Party (CLP). Did Digvijay become the chief minister against the wishes of his mentor, Arjun Singh? Or, as the rival camp suggests, has the crafty Singh succeeded in his strategy of installing his protege in power

नई दुनिया यानी प्रखर बौद्धिकता की धार

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Fourth Estate Nai Dunia: Coming of age of Hindi journalism NK SINGH नई दुनिया के बारे में पहली दफा प्रतिपक्ष में अपने वरिष्ठ सहयोगी गिरिधर राठी से सुना। 1973 में वे भोपाल गए थे, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आयेाजित सांस्कृतिक उत्सव में हिस्सेदारी करने। लौटकर दिल्ली आए तो जितना वे अशोक वाजपेयी की आयोजन कला से मुग्ध थे, उससे कहीं ज्यादा इंदौर से छपने वाले एक दैनिक से । न केवल उसकी छपाई एवं साज-सज्जा, बल्कि उसकी संपादकीय पकड़ भी उसे तमाम हिन्दी अखबारों से अलग खड़ा करती थी। नई दुनिया का नियमित पाठक मैं बना 1974 में जब अंगरेजी दैनिक हितवाद में नौकरी करने भोपाल पहुँचा। इंदौर से छपकर आने और देर रात की खबरें कवर न कर पाने के बावजूद नई दुनिया शहर में सबसे ज्यादा बिकने वाला अखबार था। शायद  वहीं से छपने वाले नवभारत से भी ज्यादा। बिहार से ताजा-ताजा आए और अत्यंत अपठनीय आर्यावर्त और प्रदीप तथा बेजान नवभारत टाइम्स और हिन्दुस्तान की खुराक पर पले मुझ जैसे पाठक के लिए नई दुनिया आंखें खोलने वाला अखबार था। पहली दफा लगा कि हिन्दी के अखबार भी अंगरेजी का मुकाबला कर सकते हैें। पत्रिकाओं में दिनमान

Smoking Peace Pipes

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The unity moves of Congress leaders in MP, although superficial, has served to boost workers’ morale NK SINGH The change could not have been more marked.  Three months back Madhavrao Scindia, the former civil aviation minister, had publicly insulted Arjun Singh, the union human resources minister, at a Congress (I) rally in Madhya Pradesh. Both of them had gone to Rajnandgaon to address the rally.  However, Singh reached late for the meeting. Instead of waiting for him, Scindia finished his speech and left the venue as soon as Singh’s helicopter was sighted. Last week it was different story when Singh went to Gwalior to attend a party rally organised in Scindia constituency and was received at the railway station by Scindia. The Congress(I) leaders of Madhya Pradesh have now again assembled to smoke peace pipes. The warring chieftains met last week at Dabra, a small tehsil town near Gwalior in an effort to solve their disputes at Scindia’s behest. 

कैसे हड्डियों के एक डॉक्टर ने लोगों के दिल में जगह बनायीं

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A hospital that employs deaf & dumb उनका काम बोलता है NK SINGH जब तीन साल पहले नर्मदा तिवारी जबलपुर के त्रिवेणी अस्पताल में हड्डी रोग विषेषज्ञ डाॅ. जितेंद्र जामदार के चैंबर में किसी ‘उपयुक्त‘ नौकरी की चाहत के साथ दाखिल हुए थे तब डाॅ. जामदार ने पहले तो उन्हें टरका देने की सोची। एक मूक-बधिर नवयुवक से भला वे क्या काम ले सकते थे, हालांकि एक पद खाली था। अस्पताल के परिसर में एसटीडी बूथ पर बैठने के लिए एक व्यक्ति की जरूरत थी, लेकिन क्या उनके सामने खड़ा यह 21 वर्षीय युवक वह काम कर सकता था? डाॅ. जामदार ने थोड़ी देर विचार किया। वे उस युवक को निराश नहीं करना चाहते थे। आखिरकार, उन्होंने उसे एक मौका देने का फैसला किया और तिवारी को काम सौंप दिया। यह ऐसी पहल थी, जो बाद में एक अच्छी परंपरा में बदल गई। शारीरिक रूप  से विकलांग लोग आज देश में हर जगह टेलीफोन बूथ चलाते दिख जाते हैं। लेकिन ‘‘शुरूआती मुश्किलों के बावजूद‘‘ तिवारी की निष्ठा और क्षमता ने डाॅ. जामदार को इतना प्रभावित किया कि उनहोंने ‘मूक-बधिरों‘ को चिकित्सा सहायक के रूप में नियुक्त करने पर विचार शुरू कर दिया। बधिर लोग मौक

पलक मुछाल: नन्ही जीवनदाता

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Palak Muchhal एक छोटी-सी लड़की अपने गायन से पैसे जुटाकर हृदयरोगी गरीब बच्चों का जीवन बचाने के भगीरथ कार्य में जुटी हुई है NK SINGH पलक सुंदर है। आठ साल की इस बच्ची के घुंघराले बाल इतने लुभावने हैं कि आप उसे सहलाने का लोभ संवरण नहीं कर सकते। चमकीली आंखें और मधुर मुस्कान इस लड़की की निष्छल सुंदरता में जैसे चार चांद लगा देती हैं। लेकिन वह सिर्फ सुंदर ही नहीं है, उसके गले में मधुर सुरों का भी वास है। पलक कल्याणजी आनंदजी लिटिल स्टार ग्रुप की सदस्य है। वह अपनी मधुर आवाज से श्रोताओं को घंटों मंत्रमुग्ध रख सकती है। लेकिन पलक मुछाल दूसरे नन्हें कलाकारों जैसी नहीं है। उसके जीवन का एक पावन लक्ष्य है। और यह लक्ष्य, जो हाल में ही उसके ध्यान में आया, उन गरीब बच्चों की सहायता करने का है, जो दिल की बीमारी से लाचार हैं। पिछले कुछ महीनों में इंदौर की यह नन्हीं परी चैरिटी शो आयोजित करके उससे होने वाली आय से दिल के मरीज करीब आधा दर्जन बच्चों के आॅपरेशन के लिए पैसे जुटा चुकी है। इस नेक लड़की की ख्याति इंदौर और आसपास के कस्बों और गांवों की झुग्गी बस्तियों में इस कदर फैल चुकी है कि वहा

भास्कर बनाम पत्रिका

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Rise of regional newspapers in India जयपुर में ‘राजस्थान पत्रिका‘ का गढ़ भेदने की ‘दैनिक भास्कर‘ की कोशिश से हलचल NK SINGH in Jaipur गुलाबी शहर जयपुर जल्दी ही युद्धक्षेत्र बनने जा रहा है --- अखबारों का। अपनी आक्रामक मार्केटिंग की वजह से पिछले पांच वर्षो में मध्य प्रदेश  के अग्रणी समाचार पत्र के रूप में उभरने वाला भास्कर समूह जयपुर की तरफ कूच कर रहा है। दिसंबर के अंत तक दैनिक भास्कर जयपुर से अपना नौंवा संस्करण निकालने का इरादा रखता है। वहां उसकी टक्कर होगी पूरे राजस्थान में एकाधिकार रखने वाले दैनिक राजस्थान पत्रिका से, जो पिछले दो दशकों से इस प्रदेश में सांस की तरह बसा है। भास्कर का जयपुर से प्रकाशन  हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में हाल के वर्षों में विकसित प्रवृत्ति की एक कड़ी है जिसके तहत तथाकथित राष्ट्रीय कहे जाने वाले अखबार तो सिकुड़ रहे हैं और क्षेत्रीय अखबार नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। भास्कर अपने गढ़ से निकलकर बाहर पांव फैलाने वाला पहला अखबार नहीं है। इसी साल जनवरी में राजस्थान पत्रिका ने बंगलूर से एक संस्करण आरंभ कर दक्षिण भारत से छपने वाले एकमात्र हिंदी दैनिक का

Shivraj still monarch of MP BJP

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NK SINGH Even as a huge anti-incumbency stares him in the face, Chief Minister Shivraj Singh Chouhan continues to be monarch of all he surveys within Madhya Pradesh BJP.  With most of his detractors vanquished or banished, he is still unassailable in the government he has been heading for 13 years now.  He also continues to have an upper hand in the ruling party, managing it through presidents content with playing second fiddle. Chouhan demonstrated his supremacy this week, again, as the BJP decided to change horses in midstream. With hardly 200 days left for 2018 assembly election, party’s state unit saddled a brand new president, a dark horse if ever there was one.  Brushing aside claims of his opponents, the high command appointed a Shivraj nominee to the post. Rakesh Singh, a three-term MP from Jabalpur, replaced Nandkumar Singh Chauhan, another Shivraj nominee, as Madhya Pradesh BJP chief. The changes show Chouhan’s political astuteness. Not content wi

घोषणा वीर मुख्यमंत्री के लुभावने तेवर

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Diggy makes 110 announcement in two months आधार पुख्ता करने के लिए दिग्विजय सिंह की रिकाॅर्ड घोषणाएं NK SINGH मध्य प्रदेश  के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की तेजी के आगे बेचारा कार्ल लुइस भी पानी भरता नजर आए। अभी उन्हें काम संभाले दो महीने ही हुए और उनहोंने 110 घोषणाएं कर डाली हैं, कई परियोजनाओं का उद्घाटन कर दिया है। इस तेजी की प्रशंसा भी हो रही है और आलोचना भी। हाल में हुए सतना विधानसभा उनचुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार भाजपा के हाथों हार गया तो पूर्व मुख्यमंत्री सुदंरलाल पटवा ने कहा, ‘‘सिर्फ आकर्षक घोषणाएं करके वे लोगों को मूर्ख नहीं बना सकते।‘‘ लेकिन क्या यह सब मात्र लोगों को मूर्ख बनाने के लिए है। मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेसी चुनाव घोषणापत्र के 199 वादे पूरे कर चुके हैं। वे कहते हैं, ‘‘ये घोषणाएं हमारे चुनावी वादे के अंग हैं और मैंने पूरी जिम्मेदारी के साथ ये घोषणाएं की हैं।" बिजली की दर बढ़ाकर राज्य सरकार आमदनी के उस नुकसान की भरपाई कर सकती है जो सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली देने से होगी। उनकी एक बड़ी उपलब्धि नर्मदा के विस्थापितों को बसाने के लिए बनी समिति में शा