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Ordinance to restore Bhopal gas victims' property

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NK SINGH Bhopal: The Madhya Pradesh Government on Thursday promulgated an ordinance for the restoration of moveable property sold by some people while fleeing Bhopal in panic following the gas leakage. The ordinance covers any transaction made by a person residing within the limits of the municipal corporation of Bhopal and specifies the period of the transaction as December 3 to December 24, 1984,  Any person who sold the moveable property within the specified period for a consideration which he feels was not commensurate with the prevailing market price may apply to the competent authority to be appointed by the state Government for declaring the transaction of sale to be void.  The applicant will furnish in his application the name and address of the purchaser, details of the moveable property sold, consideration received, the date and place of sale and any other particular which may be required.  The competent authority, on receipt of such an application, will conduct...

पलक मुछाल: नन्ही जीवनदाता

Palak Muchhal


एक छोटी-सी लड़की अपने गायन से पैसे जुटाकर हृदयरोगी गरीब बच्चों का जीवन बचाने के भगीरथ कार्य में जुटी हुई है


NK SINGH



पलक सुंदर है। आठ साल की इस बच्ची के घुंघराले बाल इतने लुभावने हैं कि आप उसे सहलाने का लोभ संवरण नहीं कर सकते। चमकीली आंखें और मधुर मुस्कान इस लड़की की निष्छल सुंदरता में जैसे चार चांद लगा देती हैं।

लेकिन वह सिर्फ सुंदर ही नहीं है, उसके गले में मधुर सुरों का भी वास है। पलक कल्याणजी आनंदजी लिटिल स्टार ग्रुप की सदस्य है। वह अपनी मधुर आवाज से श्रोताओं को घंटों मंत्रमुग्ध रख सकती है।

लेकिन पलक मुछाल दूसरे नन्हें कलाकारों जैसी नहीं है। उसके जीवन का एक पावन लक्ष्य है। और यह लक्ष्य, जो हाल में ही उसके ध्यान में आया, उन गरीब बच्चों की सहायता करने का है, जो दिल की बीमारी से लाचार हैं।

पिछले कुछ महीनों में इंदौर की यह नन्हीं परी चैरिटी शो आयोजित करके उससे होने वाली आय से दिल के मरीज करीब आधा दर्जन बच्चों के आॅपरेशन के लिए पैसे जुटा चुकी है।

इस नेक लड़की की ख्याति इंदौर और आसपास के कस्बों और गांवों की झुग्गी बस्तियों में इस कदर फैल चुकी है कि वहां के 20 से ज्यादा बच्चे मदद की आस में उसकी शरण में आ गए हैं। उनमें सबसे छोटा तो सिर्फ सात माह का बच्चा है और सबसे बड़ा 10 साल का।

गरीबों का सहारा 

ये सभी बच्चे मजदूर वर्ग के गरीब परिवारों के हैं, जिनके माता-पिता अपने दुखियारे बच्चें के आॅपरेशन पर आने वाला भारी-भरकम खर्च जुटा सकने की स्थिति में न होने के कारण पूरी तरह नाउम्मीद हो चुके थे।

छह वर्षीय पूजा का ही उदाहरण लें जिसका वजन सिर्फ 10 किलो है। जब वह मात्र 45 दिन की थी तो उसके पिता अमर सिंह को पता चला कि जन्म से ही पूजा के हृदय में एक सुराख है। अमर सिंह खेतिहर मजदूर ठहरे जिनकी रोजाना की आमदनी कुल 50 रू. है।

डाॅक्टरों ने उन्हें बच्ची का आॅपरेशन कराने को कहा जिसका खर्च करीब 40,000 रू. आता था। दो और बच्चों के पिता अमर सिंह के लिए इतना महंगा इलाज कराना नामुमकिन ही था। वे कहते हैं, ‘‘मैं इतना पैसा कभी नहीं जुटा सकता था। हम तो सिर्फ दिन गिन रहे थे।"

तभी पलक किसी फ़रिश्ते की तरह अवतरित हुई और उसके आॅपरेशन के लिए पैसे जुटा दिए। पिछली मई में पूजा का आॅपरेशन हुआ और अब वह इंदौर जिले के अपने गांव अहिरखेड़ी में है। अमर सिंह कहते हैं, ‘‘पलक ने मेरी लड़की को बचा लिया।‘‘

लेकिन मदद की चाह में आने वालों की कतार लंबी होती जा रही है। पलक के लिए इस बढ़ती मांग को पूरा कर पाना आसान नहीं है। एक स्थानीय अस्पताल  के छूट देने के बावजूद प्रत्येक आॅपरेशन का खर्च करीब 80,000 रू. बैठता है।

लेकिन पलक इससे विचलित नहीं है। यह धैर्यवान बालिका कहती है, ‘‘मुझे पूरा भरोसा है कि मैं सभी के लिए पैसे जुटा लूंगी।"

फीस माफ़, इलाज़ खर्च आधा 

इंदौर के सर्जन डाॅ. धीरज गांधी पलक की लगन से इतने प्रभावित हैं कि पलक के लाए मरीजों के लिए अपनी फीस माफ कर दी है। वे कहते हैं, ‘‘उसका असाधारण आत्मविश्वास  हैरत में डालने वाला है।‘‘

यह नन्हीं बच्ची हाल ही में गांधी के पास गई और उनसे कहा, ‘‘डाॅक्टर अंकल आप आॅपरेशन कीजिए, मैं पेसा इकट्ठा करूंगी।‘‘

महत्वपूर्ण बात तो यह है कि पलक खुद भी एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से है। उसके पिता एक निजी फर्म में एकाउंटेंट हैं। दो संतानों में सबसे बड़ी - उ सका छोटा भाई पलाश  भी बहन के साथ मंच पर गाता है - पलक ने चार साल की उम्र से ही स्कूल के कार्यक्रमों में गाना शुरू  कर दिया था।

उसे हमेशा  प्रोत्साहन देने वाले उसके गौरवान्वित पिता राजकुमार मुछाल याद करते हुए कहते हैं, ‘‘पलक पहले-पहल पारिवारिक कार्यक्रमों में गाती थी जैसा कि अक्सर उसकी उम्र के बच्चे करते हैं।‘‘

लेकिन परिवर्तन पिछले साल आया जब पलक ने कारगिल के शहीदों के लिए पैसा जुटाने की खातिर दुकान-दुकान जाकर गाना शुरू किया। उसने तब 25,000 रू. इकट्ठे किए थे।

उसकी मां अमिता कहती हैं, ‘‘यह सब उसने अपने आप ही किया। उसने पैसा इकट्ठा करने का बक्सा बनाया और निकल पड़ी।‘‘

इसके बाद उसके माता-पिता ने ओडीसा के पीड़ितों के लिए चैरिटी शो आयोजित करने में उसकी मदद की और 19,000 रू. जुटाए।

दिल की खातिर 

इंदौर के एक गरीब इलाके में चलने वाले स्कूल निधि विनय मंदिर के अध्यापक अपने स्कूल के पांच वर्षीय लोकेश  की बिगड़ती दशा  को असहाय होकर देखते रहते थे। जन्म से ही हृदय की बीमारी से ग्रस्त वह बच्चा अचानक दर्द से तड़पने लगता और हांफता था।

उसके पिता राधेश्याम  कुरील, जो जूते की दुकान में 60 रू. पर दिहाड़ी कर्मचारी के रूप में काम करते थे, चार जनों का बोझ ढ़ोते हुए महंगे आॅपरेशन के लिए 80,000 रू. की रकम नहीं जुटा सकते थे।

पिछली फरवरी में लोकेश के अध्यापकों ने पलक के बारे में सुना और अपने विद्यार्थी के आॅपरेशन के लिए पैसा जुटाने के वास्ते एक चैरिटी शो आयोजित करने के लिए उससे संपर्क करने का फैसला किया।

पलक ने मार्च में अपना पहला चैरिटी शो कर दिल के मरीज उस बच्चे के लिए 51,000 रू. एकत्रित किए। मीडिया में भी इस कार्यक्रम को खासा प्रचार मिला।

उसके बाद जब दूरदराज बंगलूर के मणिपाल हार्ट फाउंडेशन  के डाॅक्टरों को इस मामले की जानकारी हुई तो वे लोकेश का आॅपरेशन निःशुल्क करने को तैयार हो गए।

लोकेश का आॅपरेशन हो गया और मणिपाल हार्ट फाउंडेशन की दरियादिली  से पलक के इकट्ठा किए 40,000 रू. बच गए।

गरीब ने किया दान 

उसे यह रकम लोकेश को ही देनी चाही, पर गरीबी के बावजूद उसके मां-बाप ने पलक से यह रकम किसी अन्य गरीब हृदयरोगी बच्चे के आॅपरेषन पर खर्च करने को कहा।

जब पलक के मां-बाप ने यह खबर स्थानीय समाचार-पत्रों में प्रकाषित कराई तो उनके पास चारों ओर से आग्रह आने लगे और हफ्ते भर में ही गुजारिशों का अंबार लग गया। मुछाल कहते हैं, ‘‘हमें पता नहीं था कि शहर में इतने बच्चे हृदयरोगी हैं।‘‘

उसके बाद उन्होंने केवल उन्हीं बच्चें को मदद के लिए चुनने का निष्चय किया जो बहुत ही गरीब और 11 वर्ष से कम के थे।

और पलक ने यह कर दिखाया। 40,000 रू. के कोष के बल पर उसने अपने पास आए 20 बच्चों की सहायता करने का निश्चय  किया। ये वे बच्चे हैं जिनका पैसे न होने से कभी आॅपरेशन न हो पाता , ऐसे नन्हें जो निश्चित ही भगवान के घर चले जाते।

पलक ने आश्चर्यचकित मां-बाप के सामने घोषणा की, ‘‘मैं उन सबके लिए पैसे जुटाऊंगी,‘‘ उसने यह कर दिखाया। एक-के बाद एक कार्यक्रम कर उसने 2.25 लाख रू. इकट्ठा किए और पांच बच्चों का बंगलूर और इंदौर में आॅपरेशन करने में मदद दी।

डाॅक्टरों ने हाथ बंटाया। मणिपाल हार्ट फाउंडेशन ने 11 वर्ष से नीचे के बच्चों के इलाज के लिए अपनी फीस आधी कर दी। इंदौर के चोइथराम अस्पताल में किए जाने वाले आॅपरेशन के लिए डाॅ. गांधी ने अपनी फीस माफ कर दी।

सहपाठियों की मदद 

पलक के कार्यक्रम से जिन बच्चों को लाभ मिला है उनमें विधवा मां का सात वर्षीय अभिषेक भी है जिसमें मई में आॅपरेशन होने तक बैठने की भी ताकत नहीं थी।

पलक के स्कूल के और बच्चे - वह चौथी  कक्षा की विद्यार्थी है - जहां गर्मियों की छुट्टियों में खेलने में मस्त थे, यह नन्हीं परी अपने ‘मित्रों‘ का हालचाल पूछने बिना नागा किए रोज अस्पताल जाती। अमिता कहती है, ‘‘एक अच्छे काम के लिए समय देना हमें बुरा नहीं लगता।‘‘

पर अब परेशानी यह है कि गर्मियों की छुट्टियां समाप्त हो जाने के कारण पलक चैरिटी शो के लिए ज्यादा समय नहीं दे पाएगी। उसके सामने चुनौती सचमुच बहुत बड़ी है - तकरीबन 17 लाख रू. जुटाना।

पलक की मदद की आस में इंदौर निवासी दर्जी अनिल काले की तीन साल की बेटी रोशनी भी है। बमुश्किल 50 रू. रोज कमाने वाले काले को बेटी के आॅपरेशन के लिए 90000 रू. की जरूरत  है।

उसने स्थानीय दैनिक में पलक का प्रस्ताव पढ़ उससे संपर्क किया थ। काले कहते हैं, ‘‘मेरी बेटी छह महीने की आयु से ही इस बीमारी से ग्रस्त है। अब पलक ही हमारी उम्मीद हैं।‘‘

परी या देवदूत?

विशाल के मां-बाप भी इसी तरह भावविभोर हैं। उसके पिता राजू इंगले श्रमिक हैं और मां घरों में काम करती है। जब उन्हें पता लगा कि उनके बेटे के दिल में दो छेद हैं और आॅपरेशन पर बहुत पैसा लगेगा तो वे हिम्मत हार बैठे थे।

पिछले महीने पलक ने उनके बेटे की सहायता के लिए चैरिटी शो किया। काले कहते हैं, ‘‘हमारे लिए तो पलक देवदूत की तरह आई।‘‘

पलक यह सब क्यों कर रही है? कौन-सी बात उसे प्रेरित कर रही है? आठ वर्षीया यह बच्ची अपने कंधे उचका देती है, ‘‘मैं उनकी मदद करना चाहती हूं बस। उन्हें भी जीने का अधिकार है।‘‘

सचाई जाननी हो तो कोई अस्पताल और झुग्गी बस्तियों में जाए जब पलक अपने मित्रों का हालचाल पूछने वहां जाती है, जब पलक गले मिलती है तो रोशनी की आंखों में कैसी चमक आ जाती है, और आॅपरेशन के बाद ठीक हो रही वह छोटी-सी पूजा, जो उसे देखते ही चहक उठती है, ‘‘पलक दीदी आ गई।‘‘

 किसी भी मनुष्य के लिए संबंधों की ऐसी उष्मा से बड़ा और पुरस्कार क्या हो सकता है।y

India Today (Hindi) 12 July 2000

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