Posts

Showing posts from June, 2022

NK's Post

एमपी इलेक्शन: सर्वे की कोख से निकली लिस्ट

Image
  Kamal Nath is going out of way to prove he is not anti-Hindu MP Assembly Election Update: 14 October 2023 NK SINGH कमलनाथ के प्लान के मुताबिक काँग्रेस की लिस्ट इस दफा सर्वे-नाथ ने बनाई है। प्रदेश के नेताओं में आम तौर पर सहमति थी कि लिस्ट इस बार सर्वे के आधार पर बनेगी। पर क्या यह महज संयोग है कि यह लिस्ट राहुल गांधी के गेम-प्लान के मुताबिक भी है? वे अपनी पार्टी के क्षत्रपों के कार्टेल को ध्वस्त करना चाहते हैं, जो 10-15 एमएलए के बूते पर प्रदेश की पॉलिटिक्स चलाते हैं। सर्वे की कोख से निकली लिस्ट कमोबेश जीत की संभावना के आधार पर बनी है। एनपी प्रजापति जैसे अपवादों को छोड़कर कोई सप्राइज़ नहीं। बीजेपी की लिस्ट देखते हुए, काँग्रेस इस बार फूँक-फूक कर कदम रख रही थी। भाजपा उम्मीदवारों की पांचों लिस्ट 2018 के मुकाबले काफी बेहतर थी। नाम दिल्ली ने तय किए, प्रदेश के किसी भी नेता के प्रभाव से परे। चयन का आधार गुटबाजी नहीं, जीत की संभावना रही। इसलिए, दोनों तरफ के उम्मीदवारों का लाइन-अप देखकर लगता है, मुकाबला कांटे है। टिकट न मिलने से निराश नेताओं की बगावत का दौर शुरू हो गया है। यह हर चुनाव में होता है।

पत्रकारिता, आपातकाल में और मोदी युग में

Image
  Abu Abraham's iconic cartoon on the Emegency Emergency & Press Censorship : a journalist's memoir NK SINGH पत्रकारिता का मूल चरित्र सत्ता विरोधी होता है। यही वजह है कि पत्रकार अक्सर सत्ता से दो-चार हाथ करते दिखाई देते हैं। पूरी दुनिया में यह होता है। किसी भी अन्याय के खलाफ खड़े होने वालों में यह कौम सबसे आगे होती है। अगर पत्रकारिता का मूल चरित्र सत्ता विरोधी होता है तो दूसरी तरफ सत्ता का मूल स्वभाव निष्पक्ष पत्रकारिता के खिलाफ होता है। सत्ता में बैठे ज्यादातर लोग अपनी चाटुकारिता पसंद करते हैं। मैं किसी खास पार्टी की बात नहीं कर रहा। पाँच दशक से ज्यादा इस पेशे में गुजार दिए। अपनी आलोचना को लेकर कोई पार्टी कर टालेरेन्ट होती है , कोई ज्यादा। पर आलोचना बर्दाश्त करने वाले नेता , अफसर कम ही नजर आते हैं। अभी जो लोग सत्ता में बैठे हैं , वे दिल्ली में हों या भोपाल में , उनमें आलोचना बर्दाश्त करने का माद्दा थोड़ा कम ही नजर आता है। ज्यादातर लोग चीजों को ब्लैक या व्हाइट में देखते हैं। अगर आप सरकार के साथ नहीं हैं , तो इसका मतलब कि आप उसके खिलाफ होंगे। उनके लिए ग्रे एरिया है ही नहीं। ला

शिव अनुराग पटेरिया : पत्रकारिता जिनका पेशा था और किताबें लिखना पैशन

Image
Shiv Anurag Pateria (1958-2021) Shiv Anurag Pateria, a tribute NK SINGH   पता नहीं क्यों, अपने किसी भी मित्र, साथी या प्रियजन की मृत्यु के बाद मैं दो लाइन लिखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता हूँ। लिखने की बात तो छोड़ दीजिए, अपने फोन बुक उनके नंबर भी नहीं मिटा पाता हूँ। आज भी मेरे फोन में उनलोगों के नंबर पड़े हैं जिन्हे गुजरे दस साल से भी ज्यादा हो गया है।   मेरे मित्र राजकुमार केसवानी पिछले साल गए। उनके बारे में ढेरों किस्से, स्मृतियों का खजाना सहेज कर बैठा हूँ। लगता नहीं, इस जन्म में लिखने का साहस कर पाऊँगा। एम एन बुच साहब मेरे बड़े भाई जैसे थे। कोई सुबह नहीं जाती थी जब उनसे आधे-एक घंटे फोन पर बात नहीं होती थी। पर कभी उनके बारे में लिख नहीं पाया। राजेन्द्र माथुर मेरे पितातुल्य थे। उनके आकस्मिक निधन पर सारी रात ट्रेन में खड़े होकर यात्रा कि ताकि उनके अंतिक दर्शन कर सकूँ। पर आज तक एक लाइन नहीं।   कुछ लोग अपवाद हैं। सुदीप बनर्जी के जाने के लगभग दस साल बाद ही उनके बारे में हिंदुस्तान टाइम्स में लिख पाया। एक कस्बे के प्रेस क्लब ने प्रभाष जोशी की याद में एक फ़ंक्शन रखा था, उनके जाने के