NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

शिव अनुराग पटेरिया : पत्रकारिता जिनका पेशा था और किताबें लिखना पैशन

Shiv Anurag Pateria (1958-2021)

Shiv Anurag Pateria, a tribute

NK SINGH

 पता नहीं क्यों, अपने किसी भी मित्र, साथी या प्रियजन की मृत्यु के बाद मैं दो लाइन लिखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता हूँ। लिखने की बात तो छोड़ दीजिए, अपने फोन बुक उनके नंबर भी नहीं मिटा पाता हूँ। आज भी मेरे फोन में उनलोगों के नंबर पड़े हैं जिन्हे गुजरे दस साल से भी ज्यादा हो गया है। 

मेरे मित्र राजकुमार केसवानी पिछले साल गए। उनके बारे में ढेरों किस्से, स्मृतियों का खजाना सहेज कर बैठा हूँ। लगता नहीं, इस जन्म में लिखने का साहस कर पाऊँगा। एम एन बुच साहब मेरे बड़े भाई जैसे थे। कोई सुबह नहीं जाती थी जब उनसे आधे-एक घंटे फोन पर बात नहीं होती थी। पर कभी उनके बारे में लिख नहीं पाया। राजेन्द्र माथुर मेरे पितातुल्य थे। उनके आकस्मिक निधन पर सारी रात ट्रेन में खड़े होकर यात्रा कि ताकि उनके अंतिक दर्शन कर सकूँ। पर आज तक एक लाइन नहीं। 

कुछ लोग अपवाद हैं। सुदीप बनर्जी के जाने के लगभग दस साल बाद ही उनके बारे में हिंदुस्तान टाइम्स में लिख पाया। एक कस्बे के प्रेस क्लब ने प्रभाष जोशी की याद में एक फ़ंक्शन रखा था, उनके जाने के बहुत बाद। तो उनके और उनकी पत्रकारिता के बारे में लिख डाला। इसी कड़ी में आज श्री शिव अनुराग पटेरिया (जन्म 13 जनवरी 1958) की बारी है। 

पटेरिया जी मेरे से उम्र में काफी छोटे थे। वो लिहाज करते थे। सो, अरसे एक शहर में रहने के बाद भी हम कभी बेतकल्लुफ़ नहीं हो पाए। पर मेरा गर्भनाल उनसे जुड़ा था। 

हम दोनों अपने-आप को राजेन्द्र माथुर का शिष्य कहलाने में गर्व अनुभव करते थे। रज्जु बाबू इस देश के महानतम संपादकों में से थे। वे अपने साथ काम करने वाले हर साथी की प्रतिभा को तराशने और निखारने का काम करते थे। उस अवसर को और उनके सानिध्य को पटेरिया जी और राजेश बादल जैसे साथियों ने इबादत की तरह इस्तेमाल किया। 

उन्हे मिला एक पारस पत्थर 

पटेरिया जी के व्यक्तित्व और पत्रकारिता के कैरियर को पहले नई दुनिया और बाद में नवभारत टाइम्स में माथुर साहब के रूप में एक पारस पत्थर मिल गया। छतरपुर जैसी छोटी जगह से निकले शिव अनुराग पटेरिया देखते ही देखते कब मध्य प्रदेश के सबसे चर्चित राजनीतिक पत्रकारों की श्रेणी में शुमार हो गए पता ही नहीं चला। मध्य प्रदेश के राजनीतिक नब्ज पर उनकी गहरी पकड़ थी। सब उनको पहचाने थे और वे सबको अच्छी तरह पहचानते थे। 

उनकी एक प्रतिभा से मैं वाकई चमत्कृत था। पत्रकारिता अगर उनका पेशा था, तो किताबें लिखना उनका पैशन था। रोजमर्रा की रिपोर्टिंग की व्यस्तता और आपाधापी के बीच भी वे पुस्तकें लिखने के लिए समय निकाल ही लेते थे। शुरुआत में जब उनकी दो-चार किताबें ही आई थी, तो हर नई किताब छपने के बाद मेरा प्रिय शगल था उन्हे फोन लगाकर पूछना, “यह कितने नंबर की किताब है?” बाद में इतनी किताबें आ गईं कि हमारे जैसे पाठक गिनती भूलने लगे। बिरले लोग ही ऐसी लगन से काम करते हैं। 

जहां तक मुझे याद आता है, शिव अनुराग पटेरिया जी से मेरी पहली मुलाकात 1981 में छतरपुर में हुई थी जब वे यहाँ के एक दैनिक शुभ भारत में काम कर रहे थे। छतरपुर के कलेक्टर के दमनकारी रवैए के खिलाफ यहां के पत्रकार एकजुट होकर बड़े जीवट के साथ लड़ रहे थे। उसकी रिपोर्टिंग करने मैं यहाँ आया था। मैं उन दिनों इंडियन एक्सप्रेस में भोपाल में काम करता था। 

इंडियन एक्सप्रेस में छपी उस खबर की कतरन मैंने आज भी संभाल कर रखी है। फ्रंट पेज पर काफी लंबी खबर छपी थी। इंडियन एक्सप्रेस के सारे संस्करणों ने प्रमुखता के साथ उस खबर को छापा था। खबर के साथ हमने दैनिक शुभ भारत और दैनिक राष्ट्र भ्रमण के 24 फरवरी 1981 के अंक की तस्वीर छापी थी। उस दिन दोनों अखबारों ने अपना पहला पेज खाली छोड़कर विरोध दिवस मनाया था।

छोटे शहरों के हाल से हम सभी वाकिफ हैं। कई कलेक्टर और एस पी अपने आप को खुदा समझने लगते हैं। वहां इस तरह की लड़ाई के लिए बड़ा जिगरा चाहिए। उस ऐतिहासिक लड़ाई के कई योद्धा आज भी मौजूद हैं। उस लड़ाई में स्वस्थ्य पत्रकारिता में यकीन रखने वालों की एकजुटता ने ऐतिहासिक विजय हासिल की। पर पटेरिया जी आज हमारे बीच नहीं हैं। 12 मई 2021 को कोरोना ने बड़ी निर्ममता के साथ उन्हे हमसे छीन लिया। उनका असामयिक निधन मध्य प्रदेश की पत्रकारिता के लिए बड़ी क्षति है। 

This article is based on a tribute published in Hindi daily Shubh Bharat of Chhatarpur on 12 May 2022 and excerpts from a lecture delivered at Chhatarpur on 12 May 2022

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