Rise of regional newspapers in India
जयपुर में ‘राजस्थान पत्रिका‘ का गढ़ भेदने की ‘दैनिक भास्कर‘ की कोशिश से हलचल
NK SINGH in Jaipur
गुलाबी शहर जयपुर जल्दी ही युद्धक्षेत्र बनने जा रहा है --- अखबारों का। अपनी आक्रामक मार्केटिंग की वजह से पिछले पांच वर्षो में मध्य प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्र के रूप में उभरने वाला भास्कर समूह जयपुर की तरफ कूच कर रहा है।
दिसंबर के अंत तक दैनिक भास्कर जयपुर से अपना नौंवा संस्करण निकालने का इरादा रखता है। वहां उसकी टक्कर होगी पूरे राजस्थान में एकाधिकार रखने वाले दैनिक राजस्थान पत्रिका से, जो पिछले दो दशकों से इस प्रदेश में सांस की तरह बसा है।
भास्कर का जयपुर से प्रकाशन हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में हाल के वर्षों में विकसित प्रवृत्ति की एक कड़ी है जिसके तहत तथाकथित राष्ट्रीय कहे जाने वाले अखबार तो सिकुड़ रहे हैं और क्षेत्रीय अखबार नई ऊंचाइयां छू रहे हैं।
भास्कर अपने गढ़ से निकलकर बाहर पांव फैलाने वाला पहला अखबार नहीं है। इसी साल जनवरी में राजस्थान पत्रिका ने बंगलूर से एक संस्करण आरंभ कर दक्षिण भारत से छपने वाले एकमात्र हिंदी दैनिक का गौरव हासिल किया।
भास्कर न केवल जयपुर शहर पर केंद्रित कर रहा है, बल्कि पत्रिका के गढ़ में सेंध मारने के लिए मार्केटिंग की आक्रामक तकनीकों का भी सहारा ले रहा है। कथाकार कमलेश्वर के संपादकत्व में निकलने वाला उसका जयपुर संस्करण पत्रिका से कम कीमत में उतने ही पेज देगा। टाइम्स आॅफ इंडिया दिल्ली में इस तरकीब से अपनी प्रसार संख्या काफी बढ़ा पाया था।
प्रचार पर 60 लाख रू. का बजट
भास्कर की आक्रामकता का अंदाज अससे लगाया जा सकता है कि छपने के पहले ही प्रचार, सर्वेक्षण आदि मदों पर उसने 60 लाख रू. का बजट तय कर रखा है। “यह देश के अखबारों के इतिहास में सबसे बड़ा प्री-लांच बजट है,” अखबार के मालिक और प्रधान संपादक रमेेश अग्रवाल गर्व से ऐलान करते हैं।
जयपुर शहर में पौने दो लाख घरों का दो बार सर्वेक्षण कर भास्कर ने शहर में अब तक अपरिचित अपने ब्रांड नाम को स्थापित कर लिया है।
भास्कर के पास एक और दलील है। उसके अपने सर्वेक्षण के मुताबिक पौने दो लाख पाठकों में से 78 प्रतिशत का कहना था कि जयपुर के मौजूदा अखबार निष्पक्ष नहीं हैं।
वास्तव में पत्रिका और राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के रिश्ते इतने मधुर हैं कि भाजपा में भी इसको लेकर आपत्तियां उठने लगी हैं।
इस साल की शुरूआत में पत्रिका के संस्थापक-सपांदक कर्पूरचंद कुलिश ने एक लेखमाला में भाजपा के असंतुष्ट गुट के कुछ नेताओं के खिलाफ लिखा था, तो नेताओं ने पलटकर आरोप लगाया कि कुलिश ने ऐसा अपने मित्र शेखावत के इषारे पर किया है।
हिंदी अखबार कमाऊ हो सकते हैं
भास्कर इस हालत का फायदा उठाना चाहता है। अपने आप को वह बाजार में एक “अच्छे और निष्पक्ष” अखबार के रूप में पेश करने का दावा करता है।
पर पत्रिका के प्रबंध निदेशक गुलाब कोठारी का कहना है कि उनके पाठकों को अखबार की निष्पक्षता पर कोई शक नहीं। “अगर ऐसा होता है तो पिछले एक साल में हमारी प्रसार संख्या 70,000 नहीं बढ़ती।”
भास्कर हो या राजस्थान पत्रिका, क्षेत्रीय हिंदी अखबारों के विस्तार ने कुछ स्थापित मिथ तोड़ें हैं। एक तो यह कि हिंदी अखबार कमाऊ हो सकते हैं। दूसरे, वे अपने इलाके के अंग्रेजी जानने वाले पाठकों की भी पहली पसंद हो सकते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोषी कहते हैं, “राष्ट्रीय हिंदी अखबार पीछे हट रहे हैं और क्षेत्रीय अखबार दिल्ली पर चढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन इससे हिंदी पत्रकारिता बेहतर नहीं हो रही।”
वजह यह कि राष्ट्रीय अखबारों से होड़ में टिकने के लिए पत्रकारीय कौशल बढ़ाने की जगह क्षेत्रीय अखबार बाजारू हथकंडों में पड़ गए।
- नरेंद्र कुमार सिंह, जयपुर में
India Today (Hindi) 21 Nov to 5 Dec 1996
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