NK's Post

Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

स्मृति के पुल : गंगा बहती हो क्यों . . . Part 3

Raj Kapoor and Waheeda Raehman in Shailendra's immortal classic, Teesari Kasam, a poignant love story of a bullock-cart driver and a nautanki artist

Ganga and her people - 3

 NK SINGH

Published in Amar Ujala of 6 February 2022

पटना में १९८२ में गंगा पर पुल बनने के साथ ही पहलेजा घाट विस्मृति के गर्त में समा गया. उसके साथ ही पहलेजा घाट से सोनपुर तक चलने वाली घाट गाड़ी भी बंद हो गयी. आज ये सारी जगहें सुनसान और उजाड़ पड़ी हैं। तीसरी कसम वाले अपने हीरामन गाड़ीवान देखते तो कहते, जा रे जमाना! 

मीटर गेज की घाट लाइनों पर छुक-छुक चलती इन घाट गाड़ियों की अलग ही दास्तान है, जो रेल-इतिहासकारों को आज भी लुभाती हैं. इस घाट गाड़ियों का काम था मेन लाइन के स्टेशनों से यात्रिओं को जहाज तक पहुँचाना. 

आज भी इन घाटों के नाम रोमांच जगाते हैं. आज वीरान पड़े मनिहारी घाट, बरारी घाट, मुंगेर घाट ऐसी जगहें हैं जहाँ कभी दिन-रात चहल-पहल रहती थी.

इन घाटों से जुड़े एक  किस्से की चासनी ।  मनिहारी घाट के दूसरे किनारे है साहिबगंज, जहां के घाट पर  बंदिनी का आखिरी दृश्य फिल्माया  गया था। 1960 के दशक में, जब बंदिनी बनी थी, साहिबगंज  बिहार में था। अब राज्य के बंटवारे के बाद वह झारखंड में है।

Iconic Golghar at Patna, as seen from Ganga in 1814, by Robert Smith, Courtesy - British Library 

हुगली से गंगा तक

बंदिनी की शूटिंग के लिए साहिबपुर घाट का लोकेशन चुनने  में शायद इस जानकारी ने भी मदद की होगी कि वहाँ बांग्ला-भाषी लोग भी काफी हैं।

बंगाली आबादी गंगा किनारे थोड़ी ऊपर बसे भागलपुर में भी थी, जहां की जेल में भी बंदिनी की शूटिंग हुई थी। वैसे, उसी शहर में 1911 में कुमुदलाल गांगुली का जन्म हुआ था, जो आधी सदी बाद अशोक कुमार बनकर बंदिनी की शूटिंग करने वापस आए।

मेरे-आपके-सबके प्रिय लेखक शरतचंद्र भागलपुर के ही दुर्गा चरण हाई स्कूल के छात्र थे। उसी स्कूल से बांग्ला और हिन्दी के एक और बड़े फिल्मकार निकले थे – तपन सिन्हा। एक समय भागलपुर में 50,000 से ज्यादा बांग्ला भाषी रहते थे।

गंगा के उस पार पूर्णिया शहर में सतीनाथ भादुडी रहते थे -–  ढोंढायचरित मानस नामक बांग्ला उपन्यास के रचीयता और अपने रेणु के गुरु।

वास्तव में, 1905 में बंगाल को तीन प्रांतों में बांटा गया। उसके पहले तक बिहार और ओडिसा बंगाल प्रेज़िडन्सी का ही हिस्सा हुआ करते थे।

NE Railway's steamer P.S. Yamuna that plied between Mahendru and Pahleza Ghat, credit - R Smith

गंगा के घटवार: जिम कार्बेट

आज इन वीरान पड़े घाटों में से एक था सिमरिया घाट, जहाँ १९५९ में बिहार का पहला गंगा पुल बना। पटना में गंगा टपने से भी ज्यादा रोमांचक होता था, मोकामा घाट से गंगा पार सिमरिया घाट जाना।

आधुनिक भारत के विश्वकर्मा मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने इस पुल के निर्माण के लिए हाथीदह नामक जगह का चुनाव किया था. पाट छोटा, पर पानी इतना गहरा था कि हाथी दह जाये. 

बचपन में एक दफा मैंने भी मोकामा घाट से स्टीमर पर गंगा पार किया है. तब हम नासिक में रहते थे. ढेर सारी गाड़ियाँ बदलते हुए तीन दिन के सफ़र के बाद मोकामा घाट पहुंचे थे - होल्डाल, टीन के बक्से, बेंत की डलिया और मिट्टी की सुराही से लैस।

रात के अंधेरे में नदी के किनारे एक जगमगाता जहाज खड़ा था, रहस्यमय और विशाल। उस पर सवार होकर सिमरिया घाट पहुंचे। फिर घाट गाड़ी से बरौनी जंक्शन, जहाँ से दूसरी गाड़ी पकड़ कर अपने घर, खगड़िया। किसी भी जहाज़ पर वह मेरी पहली यात्रा थी. अब वैसी यात्राएँ आपको स्वप्नलोक में ले जाती हैं.

यह तो बाद में मालूम पड़ा कि इस जहाज के नियमित यात्रियों में एक थे रामधारी सिंह दिनकर, जो मोकामा के जेम्स वाकर हाई स्कूल के छात्र थे। घर गंगा पार सिमरिया में था। रोज स्टीमर से या नाव से अप-डाउन करते थे।

जेम्स वाकर हाई स्कूल का इतिहास जानना भी अपने आप में रोमांचक है। जिम कार्बेट 18 साल की उम्र में ही रेलवे की नौकरी करते हुए मोकामा के घटवार बन गए थे। उन्होंने ही 1910 में यह स्कूल खोलने में मदद की थी। अपनी पुस्तक, माई इंडिया, के एक अध्याय – लाइफ एट मोकामा घाट – में उन्होंने फक्र के साथ इसका जिक्र किया है।

और, बाद में इस स्कूल के सबसे प्रसिद्ध छात्र हुए दिनकर जी! जीवन की पगडंडियाँ कैसे जुड़ती हैं!!

Amar Ujala 6 February 2022

आगे पढिए: गंगा बहती हो क्यों - पार्ट 4 ; बिदेसिया

पिछला हिस्सा : गंगा बहती हो क्यों - पार्ट 2 ; पटना में 62,000 नौकाएं

Amar Ujala 6 February 2022

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