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Dainik Bhaskar 22 November 2018 |
Fragmented
Opposition is benefitting BJP in Vindhya
NK
SINGH
चित्रकूट: तुलसीदास ने लिखा है कि राम जब इन
जंगलों से गुजरे थे तो उन्हें पहचान कर नदी, वन, पहाड़ और दुर्गम घाटियों ने खुद
रास्ता दिया और बादलों ने आकाश में छाया की. मानस से शुरू यह सफ़र विन्ध्य की
टूटी-फूटी सड़कों की धूल फांकते हुए कब राग दरबारी के विद्रूप में बदल गया, पता ही
नहीं चला.
यह पूरा इलाका राग दरबारी के “देहात का महासागर”
है. जगमाते रीवा शहर और उसके बाहर १,६०० एकड में फैले विशाल सोलर पॉवर प्लांट को
छोड़ दें तो १५ साल की उपलब्धियों के नाम पर भाजपा सरकार के पास बहुत कम है.
सिंगरौली के पॉवर प्लांट और सतना के आस-पास के सीमेंट कारखाने तो कांग्रेसी राज
में ही बन चुके थे.
सफ़र के दौरान रह-रह कर एंटी इनकम्बेंसी की घंटी
बजती रही. लोगों में नाराजगी की वजह थी – रोजगार की कमी, ख़राब सड़कें, स्थानीय
विधायक के काम से असंतोष, एससी एसटी एक्ट और घोषणाओं पर आधा-अधूरा अमल. व्यापारी
नोटबंदी और जीएसटी का बात करते हैं.
पर क्या नाराजगी वोट में बदलेगी?
“लोग-बाग अंडरकरंट की बात करते हैं,” भूतपूर्व
भाजपा विधायक प्रभाकर सिंह कहते हैं. रामपुर बघेलान में अपने पुरखों की २५० साल
पुरानी गढ़ी में बैठे सिंह चुनावी माहौल समझाने की कोशिश कर रहे हैं: “अब अंडरकरंट देख
तो सकते नहीं, फील ही कर सकते हैं. अदृश्य से कैसे लड़ें? मरमरिंग सुन रहे हैं, जो
डेंजरस हो सकती है.” सोशलिस्ट पार्टी से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू कर इमरजेंसी
में जेल जाने वाले सिंह की गिनती इलाके के संजीदा और विचारशील नेताओं में होती है.
मिडिल क्लास भले परिवर्तन फुसफुसा रहा हो, पर
गरीबी रेखा से नीचे वाला तबका भाजपा राज से खुश है. “डेढ पसली क मनई” शिवराज मामा को
सब जानते हैं.
भाजपा को कई विधान सभा क्षेत्रों में तिकोने
मुकाबलों का भी फायदा है. बसपा को ३० में से केवल २ सीट मिली थी, पर उसे १६ परसेंट
वोट मिले थे – कांग्रेस का ठीक आधा.
इस इलाके में आकर मालूम पड़ता है कि बसपा, सपा और
गोंडवाना से हाथ नहीं मिलाकर कांग्रेस ने कितनी बड़ी गलती की.
नागौद, सतना, चित्रकूट, अमरपाटन जैसी कुछ सीटों से बागी जरूर भाजपा को नुकसान
पहुंचा रहे है.
जातियां यहाँ इतनी ज्यादा है कि उनका गुणा-भाग
करने कहा जाये तो शायद समाजशास्त्री एमएन श्रीनिवास का भी माथा चकरा जाये. सिंघाड़ा
उगाने वाले सिंघरहा को आपने अपने पाले में कर लिया तो हो सकता है कि मिट्टी खोदने
वाले मुड़हा नाराज हो जाएँ.
सामंती इलाका होने की वजह से अभी भी आप पान की
दुकानों पर राजपूतों के बारे में लोकोक्तियाँ सुन सकते हैं – “पास रहे तो धन हरे,
दूर रहे तो प्राण, ठाकुर-ठाकुर हे भगवान.” उम्मीदवारों की पहचान उनकी पार्टी से कम, जाति से
ज्यादा होती है.
सामंती कायदों की लड़ाई में आम शिष्टाचार का पालन होता
है. नागौद सीट के लिए भाजपा से बगावत करने वाली रश्मि सिंह सामने पड़ने पर भाजपा उम्मीदवार
नागेन्द्र सिंह को प्रणाम करती हैं तो वे भी मुस्कुराकर शालीनता से उन्हें
आशीर्वाद देते हैं.
रैगांव के भाजपा उम्मीदवार जुगुलकिशोर बागरी के
पैर छूकर कांग्रेस की कल्पना वर्मा आशीर्वाद लेती हैं.
ज्यादातर उम्मीदवार किसी न किसी राजनीतिक खानदान से हैं. श्रीनिवास तिवारी
के परिवार की तरह कई तो आपस में रिश्तेदार हैं!
याद रखें, इन्ही जंगलों में तैयार वानरसेना की
मदद से राम ने रावण को परास्त किया था. यह तो जनता को तय करना है कि रावण कौन है.
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Dainik Bhaskar 22 November 2018 |
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