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Ordinance to restore Bhopal gas victims' property

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NK SINGH Bhopal: The Madhya Pradesh Government on Thursday promulgated an ordinance for the restoration of moveable property sold by some people while fleeing Bhopal in panic following the gas leakage. The ordinance covers any transaction made by a person residing within the limits of the municipal corporation of Bhopal and specifies the period of the transaction as December 3 to December 24, 1984,  Any person who sold the moveable property within the specified period for a consideration which he feels was not commensurate with the prevailing market price may apply to the competent authority to be appointed by the state Government for declaring the transaction of sale to be void.  The applicant will furnish in his application the name and address of the purchaser, details of the moveable property sold, consideration received, the date and place of sale and any other particular which may be required.  The competent authority, on receipt of such an application, will conduct...

मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव २०१८ : कांग्रेस ने कैसे सुनहरा मौका खोया

Dainik Bhaskar 13 December 2018


How Congress missed a golden opportunity in 2018 MP assembly election

NK SINGH

कांग्रेस अगर २०१३ के मुकाबले अपनी सीटों में लगभग दोगुना इजाफा कर पाई है तो इसपर उसे इठलाने की जरूरत नहीं. भले उसे भाजपा से ५ सीटें ज्यादा हासिल हुई हों, पर वोटिंग परसेंटेज देखें तो कांग्रेस को भाजपा से कम वोट मिले हैं!

सही है, पांच साल पहले उसके और भाजपा के बीच आठ परसेंट वोटों का फासला था और उस बड़े अंतर को पाटने में वह कामयाब रही है. पर बहुमत से दो सीट पीछे रह जाना उसे हमेशा सालता रहेगा.

इस खंडित जनादेश के लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार है. वह अपने पत्ते अच्छी तरह खेलती तो नतीजे अलग हो सकते थे.

मध्य प्रदेश में १५ साल से भाजपा बनाम अन्य का माहौल है. मैदान में ज्यादा खिलाड़ी होने का फायदा भाजपा को मिलता है. एक ज़माने में यही फायदा कांग्रेस को मिलता था.

गोंडवाना, बसपा और समाजवादी पार्टी से चुनावी समझौता न करके कांग्रेस ने एक ऐतिहासिक भूल की. इन छोटी पार्टियों को भले तीन सीटें मिली हों पर वे ८.१ परसेंट वोट ले गयीं. भाजपा-विरोधी वोट बाँटने से कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ.

कांग्रेस से गठबंधन की बातचीत टूटने पर सपा चीफ अखिलेश यादव ने कहा था, “बड़ा दल होने के नाते कांग्रेस को बड़ा दिल दिखाना चाहिए था.” बड़ा दिल उसे बड़ी जीत दिला सकता था.

उत्तर प्रदेश से सटे विन्ध्य, बुंदेलखंड और चम्बल में बसपा और सपा ने उसे जो नुकसान पहुँचाया उसे केवल आंकड़ों के मकड़जाल से नहीं समझा जा सकता है.

इन पार्टियों को मिले वोटों का गुणा-भाग करते वक्त कांग्रेस भूल गयी कि राजनीति में दो और दो बीस भी हो सकते हैं.

इस बार भाजपा के वोटों में लगभग चार परसेंट की गिरावट आई. पर भाजपा-विरोधी वोट बंट जाने की वजह से कांग्रेस को इसका अपेक्षित फायदा नहीं मिला.

कांग्रेस को सबसे बड़ा गड्ढा विन्ध्य में हुआ, जहाँ उसे ३० में से केवल ६ सीटें मिली. इन ३० में से १७ सीटें तो वह महज इसलिए हारी कि बसपा, गोंडवाना या सपा ने उसके वोट कटे. बसपा की अपनी सीटें भले कम हो गयी हों, पर उसने कांग्रेस का विजय रथ थाम लिया.

लगभग आधे मंत्रियों की हार से दिखता है कि एंटी इनकम्बेंसी का अंडर करंट काम कर रहा था. कांग्रेस को उसका फायदा मिला.

ग्रामीण इलाकों में उसे इस  दफा ३० सीटें ज्यादा मिलने की वजह किसानों का असंतोष और कर्ज़ माफ़ी का ऐलान था. इसके संकेत उसी समय मिल गए थे जब चुनाव के पहले किसानों ने मंडी में अनाज लाना बंद कर दिया था ताकि वे बाद में वे क़र्ज़ माफ़ी का फायदा उठा सकें. मन्दसौर गोलीकांड  प्रदेश की राजनीति का वॉटरशेड था; उसके बाद से ही भाजपा एक के बाद एक चुनाव हारती रही है.

सिंधिया के लोकप्रिय चेहरे, कमल नाथ की मैनेजमेंट स्किल और दिग्विजय सिंह की नेटवर्किंग कला का कांग्रेस ने उचित उपयोग किया। वे कांग्रेस की चिर-परिचित शैली में आपस में लड़े, पर एक साथ खड़े रहे।

वारासिवनी में संजय मसानी जैसे एक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर इस बार टिकट भी कांग्रेस ने बेहतर बाँटे. दिग्विजय सिंह का जमीनी काम बाग़ियों की तादाद कम करने में कामयाब रहा.

सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर वामपंथी कितना भी नाक-भौं सिकोंड़े, पर कांग्रेस की यह रणनीति भाजपा का धार्मिक विकेट गिराने में सफल रही.

पर यह खंडित जनादेश दिखाता है कि इतना भर काफी नहीं. बसपा, सपा और गोंडवाना अगर साथ नहीं आये तो २०१९ के लोक सभा चुनाव में नतीजे बदल सकते हैं.

Dainik Bhaskar 13 December 2018



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