NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

सवर्ण वोट : चम्बल, विन्ध्य और मध्यभारत में गेम चेंज़र बन सकते हैं

Dainik Bhaskar 9 October 2018


Upper caste votes may prove game changer in Madhya Pradesh

NK SINGH

विधान सभा चुनाव की विधिवत घोषणा भले ही ६ अक्टूबर को हुई हो, पर मध्यप्रदेश में इसकी बिसात जुलाई में ही बिछ चुकी थी, जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी जन आशीर्वाद यात्रा शुरु की. 

उस दिन से ही भाजपा और कांग्रेस अखाड़े में ताल ठोंक रहे हैं. इन 12 हफ़्तों में प्रदेश की राजनीति ने दो दिलचस्प करवटें ली हैं.

छह अक्टूबर को जिस दिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी दोनों मध्यप्रदेश के चुनावी दौरे कर रहे थे, दूर लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कांग्रेस से नाता तोड़ने की घोषणा कर रहे थे: “कब तक इंतजार करें, एमपी में हम चौथे नंबर की पार्टी हैं.” 

एक सप्ताह पहले ही बसपा सुप्रीमो मायावती कांग्रेस को बाय-बाय कर चुकी थीं. पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि बसपा के साथ आने से कांग्रेस को लगभग ४५ सीटों पर फायदा मिल सकता था.  

समझा जाता था कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस दूसरी पार्टियों को साथ लेकर इलेक्शन लड़ेगी ताकि सरकार-विरोधी वोटों का बंटवारा न हो. 

राजनीति में दो और दो हमेशा चार नहीं होते, चालीस भी हो सकते हैं. परसेप्शन का अपना महत्व होता है. वह हवा बनाने का काम करता है.

एमपी में १५ साल से भाजपा बनाम अन्य का माहौल है. ऐसे में जितने खिलाडी मैदान में होंगे, भाजपा को उतना ही फायदा है. 

गठबंधन नहीं होने से अब बसपा-सपा के अलावा गोंडवाना, आप, जयस, और एनसीपी जैसे ग्रुप भाजपा विरोधी वोटों को बाँटने का काम करेंगे. 

२०१३ में ये दल लगभग १४% वोट ले गए थे. चुनावी सर्वे बता रहे हैं कि इस दफा भी दूसरी पार्टियाँ और निर्दलीय उम्मीदवार १६% वोट ले जायेंगे.

भाजपा को खतरा एंटी-इनकम्बेंसी से है. इंडिया टुडे-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक 41% लोग सरकार के काम-काज से संतुष्ट हैं, पर ४0% ऐसे हैं जो घोर असंतुष्ट हैं और बदलाव चाहते हैं. 

यह असंतोष हाल के बाय-इलेक्शन के नतीजों में साफ़ झलक चुका है. मिस्टर बंटाधार का हौवा भी इस दफा काम नहीं आएगा. ताजा वोटर लिस्ट में लगभग एक-तिहाई मतदाता ऐसे हैं जो दिग्विजय सिंह के राज में महज ४ से १४ साल के थे.

एबीपी-सीवोटर सर्वे कांग्रेस के वोटों में ६% की बढ़त दिखा रहा है और उसकी सीटें ५८ से बढ़कर १२२ होने का अंदाज़ लगा रहा है. उसके मुताबिक केवल ४% वोटों के नुकसान की वजह से भाजपा की सीटें १६५ से घटकर १०८ रह जाएँगी. 

पर यह सर्वे भी मानता है कि कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले केवल ०.७% ज्यादा वोट मिलेंगे. मतलब एक परसेंट से भी कम का फर्क! जाहिर है, ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है.

भाजपा के हाथ में एक पत्ता है, जो वोटरों का असंतोष कम कर सकता है. सारे सर्वे मानते हैं कि शिवराज सिंह लोकप्रियता के मामले में कांग्रेसी नेताओं पर अभी भी भारी हैं. उनकी लोकप्रियता ४६% है, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की ३२%. 

बड़ा असंतोष ज्यादातर मौजूदा विधायकों को लेकर है. गुजरात में एक-तिहाई से लेकर दो-तिहाई तक एमएलए के टिकट काट कर भाजपा एंटी-इनकम्बेंसी का असर कम कर चुकी है. वह एमपी में भी उस फोर्मुले को अपना सकती है.

पिछले १२ हफ़्तों में आया दूसरा बड़ा बदलाव एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ आन्दोलन है. सवर्ण भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक रहे हैं, इसलिए इसे लेकर वहां ज्यादा घबराहट दिख रही है. 

वोटरों का यह तबका भले तादाद में केवल १५% हों, पर चम्बल, विन्ध्य और मध्यभारत के कुछ इलाकों में इस दफा उनके वोट गेम-चेंजर बन सकते हैं. जहाँ फर्क केवल ०.७% का हो, वहां एक-एक वोट मायने रखता है. 

देखना दिलचस्प होगा कि कौन सही पांसा फेंकता है.

Dainik Bhaskar 9 October 2018

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