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Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

तेलंगाना में रहने वाले हजारों लोग वोट देने आंध्र आये

Jagan Mohan Reddy campaign at Guntur



Thousands of voters travel from Telangana to Andhra for polling

NK SINGH

Vijayawada 11 April 2019

चुनाव आन्ध्र में हो रहे थे. पर लग रहा था जैसे पूरा तेलंगाना ही उठकर वहां वोट देने आ गया हो! तेलंगाना में रहने वाले लाखों मतदाता आंध्र विधान सभा की १७५ सीटों और लोक सभा की २५ सीटों के लिए आज हुए चुनाव में वोट देने के लिए पहुंचे. 

तेलंगाना से आंध्र की सारी सड़कों पर दो दिनों से जाम लगा था. टोल नाकों पर मीलों लम्बी कतारें लगी थी. हैदराबाद/ सिकंदराबाद से तेलंगाना की तरफ रोजाना करीब ४० ट्रेनें चलती हैं. रेलवे ने पिछले दो दिनों में ३६ स्पेशल ट्रेनों की घोषणा की थी. 

आन्ध्र प्रदेश रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन ने भी किराया बढ़ा कर ५०० स्पेशल बसों का इंतजाम किया था. पेसेंजर की भारी भीड़ देखकर प्राइवेट बस वालों ने तो अपना किराया चार गुना बढा दिया था.

“आंध्र के चुनाव में इस दफा लोगों की दिलचस्पी इस कदर थी कि तेलंगाना में रहने वाले लोग दो पहिया वाहनों पर सवार होकर भी यहाँ वोट देने पहुंचे,”  युवजन श्रमिक रैयत कांग्रेस के समर्थक क्रांति कुमार रेड्डी कहते हैं. 

हैदराबाद और उसके आस-पास आंध्र मूल के २० से २५ लाख लोग रहते हैं. लगभग २० लाख वोटर ऐसे हैं जिनके पास तेलंगाना और आंध्र दोनों प्रदेशों के वोटर कार्ड हैं. इसीको ध्यान में रखकर वाईएसआर कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों ने दोनों राज्यों में एक ही दिन मतदान कराने की मांग की थी.

इस दफा आन्ध्र के चुनाव खास थे. पांच साल पहले हुए प्रदेश के विभाजन के बाद से क्षेत्रीय भावनाएं उफान पर हैं. राष्ट्रीय पार्टियाँ हाशिये पर पहुंच चुकी हैं. 

विभाजित आंध्र में बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरे वाईएसआर कांग्रेस के सुप्रीमो जगन मोहन रेड्डी के मुताबिक, “यहाँ न मोदी फैक्टर है, न राहुल फैक्टर, यहाँ केवल आंध्र फैक्टर है.” 

सत्तारुढ़ तेलुगु देशम और मुख्य विपक्ष वाईएसआर कांग्रेस दोनों क्षेत्रीय भावनाओं के ज्वार पर सवार चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं. 

इस दफा आंध्र में मतदान के दौरान जगह-जगह हुई हिंसा के पीछे भी यही भावनात्मक ज्वार था, जिसको लेकर लोगों का गुस्सा पिछले पांच साल से यदा-कदा फूटता रहा है.  

आंध्र की राजनीति पर चार दशकों से छाये मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू ने पिछली दफा बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. इस दफा वे वाईएसआरसी, भाजपा और कांग्रेस के अलावा फिल्म स्टार पवन कल्याण की क्षेत्रीय पार्टी जनसेना का भी मुकाबला कर रहे हैं. 

नायडू भले अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर देश में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने के सपने देख रहे हों, पर आन्ध्र के चक्रव्यूह में वे अकेले नजर आये. 

नायडू को जगन कड़ी चुनौती दे रहे हैं. पिछले विधान सभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी के बीच एक परसेंट से भी कम वोटों का फासला था. एंटी-इनकम्बेंसी की वजह से सारे सर्वे वाईएसआर कांग्रेस की सरकार बनने की भविष्यवाणी कर रहे हैं.

चुनावी अखाड़े का सबसे दिलचस्प किरदार है, पवन कल्याण जो पांच साल पहले तक टीडीपी के साथ थे. उनकी जनसेना कम्युनिस्ट पार्टियों और बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. 

आंध्र में फिल्म सितारों को लेकर दीवानगी का आलम रहा है, जिसके सबसे बड़े उदारहण तेलुगु देशम के संस्थापक एनटी रामा राव थे. 

पवन जिसके भी वोट ज्यादा काटेंगे, वह पार्टी हारेगी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का ख्याल है कि एंटी-इनकम्बेंसी वोटों में सेंध लगाकर वे टीडीपी को फायदा पहुंचाएंगे. 

फायदा जिस को भी हो, आन्ध्र उन राज्यों में शामिल हो गया है जहाँ क्षेत्रीय पार्टियाँ राष्ट्रीय पार्टियों पर भारी हैं.

On special assignment for Dainik Bhaskar

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