NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

टीआरएस खैरात की लहर पर सवार, विपक्ष हताश


Dainik Bhaskar 30 March 2019

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NK SINGH from Hyderabad


तेलंगाना राष्ट्र समिति सरकार द्वारा पिछले पांच सालों में दोनों हाथों बांटी गयी खैरात के सैलाब में विपक्षी पार्टियाँ इस तरह बह गयी हैं कि इस चुनाव में उन्हें किनारा नजर नहीं आ रहा.

देश के सबसे नए राज्य में एक नया राजनीतिक फार्मूला उभरा है: विकास + खैरात + नेताओं की खरीद-फरोख्त = विपक्ष का सफाया.

“हम वेलफेयर स्टेट को एक नई ऊंचाई पर ले गए हैं और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की लोकप्रियता के सामने टिकने वाला कोई दूसरा नेता राज्य में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता है,” टीआरएस पालिट ब्यूरो के सदस्य केशव राव कहते हैं.

विपक्षी पार्टियों के नेता भी दबी जुबान से इससे सहमत नजर आते हैं. 

महज तीन महीने पहले संपन्न विधान सभा चुनाव में राजनीति के चतुर खिलाडी राव ने, जिन्हें यहाँ सब प्यार से केसीआर कहते हैं, ११९ में से ८८ सीटें हासिल की थी.

अगर लोकसभा सीटों के सन्दर्भ में उन नतीजों को देखें तो राज्य की १७ में से १५ सीटों पर टीआरएस और उसके सहयोगी दल मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन की बढ़त थी.

चालीस सदस्यीय विधान परिषद् में इस सप्ताह तक विपक्ष का एक ही मेम्बर था!

राजनीतिक विश्लेषक अरविन्द यादव कहते हैं: “केसीआर एकछत्र राज्य चाहते हैं. वे विपक्ष को नेस्तनाबूद करने में यकीन रखते हैं.”

२०१४ के विधान सभा चुनाव में टीआरएस ने ११९ में से ६३ सीटें जीती थी. पर सदन का कार्यकाल ख़त्म होने तक उसने दूसरी पार्टियों से बंटोर कर ८८ एमएलए जुटा लिए थे!

कट्टर राजनीतिक दुश्मन तेलगु देशम का एकमात्र एमपी अब केसीआर सरकार में मंत्री है! केसीआर की गलाकाट पॉलिटिक्स ने विपक्ष में हताशा पैदा कर दी है.

कांग्रेस ऑफिस में शाम ढलते ही ताला लग जाता है. दिन में भी इक्का-दुक्का लोग नजर आते हैं. पार्टी के नेता, खासकर विधायक, टीआरएस की ओर भाग रहे हैं. दिसंबर में कांग्रेस के पास १९ विधायक थे. तीन महीने बाद नौ बच गए हैं!

पलायन से परेशान कांग्रेस ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग की है. “विधायकों को ढोरों जैसे ख़रीदा जा रहा है,” खम्मम से कांग्रेस की लोकसभा उम्मीदवार रेणुका चौधरी कहती हैं. पांच विधायकों से एक पर सिमट गए भाजपा का दफ्तर भी दिन भर ऊँघता रहता है. न नेता नजर आते हैं, न कार्यकर्ता.

महज़ पांच साल पहले तक यहाँ राज करने वाली चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम ने टीआरएस को वॉक ओवर दे दिया है.

१९८३ में अपनी स्थापना के समय से पहली बार टीडीपी तेलंगाना में चुनाव नहीं लड़ेगी. वैसे भी यहाँ उसकी हालत खस्ता है. पिछले विधान सभा चुनाव में उसने ११८ उम्मीदवार खड़े किये थे और उनमें से केवल दो जीते थे.

सारे सर्वे और ओपिनियन पोल तेलंगाना में टीआरएस के तूफ़ान की चेतावनी दे रहे हैं.
पर ऐसा भी नहीं कि विपक्ष का जनाधार पूरी तरह ख़त्म हो गया है. पिछले महीने हुए पंचायत चुनाव में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों ने लगभग ३० प्रतिशत सीटें हासिल की थी. “कांग्रेस में यहाँ अभी भी दम है,” केशव राव कहते हैं जो टीसीआर में आने के पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे.  

विधान परिषद् के लिए हुए इस हफ्ते हुए चुनाव में टीआरएस समर्थित उम्मीदवार तीनों सीट बुरी तरह हारे.

भाजपा कमजोर जरूर रही है, पर नमो के अपने फैन हैं. हैदराबाद के राजू कहते हैं, “दो ही शेर होता, इदर केसीआर, दिल्ली में मोदी.” पर क्योंकि उनके सामने दो में से एक ही शेर चुनने की मजबूरी है, उनकी पसंद साफ़ है.

तेलंगाना के नतीजे भी शीशे की तरह साफ़ हैं.

Dainik Bhaskar, 30 March 2019

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