NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

Image
NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

द्रविड़ पॉलिटिक्स की नब्ज पर कांग्रेस का हाथ




Congress captures essense of Dravid politics in Tamil Nadu

NK SINGH in Chennai

म्यूजिकल चेयर के खेल के लिए मशहूर तमिलनाडु की पॉलिटिक्स एक बार फिर करवट बदलती दिख रही है. दस सालों से सत्ता पर काबिज़ अन्ना द्रमुक में आपसी कलह और फूट का फायदा उसके परंपरागत प्रतिद्वन्धि द्रमुक को मिल रहा है. 

सहयोगी दल कांग्रेस की बांछे खिली हैं. यूपीए गठबंधन के विजय का भरोसा दिलाते हुए कांग्रेस नेता पी चिदाम्बरम कहते हैं, “जब भी डीएमके और कांग्रेस ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा है, १९८१ से आजतक वे कभी नहीं हारे हैं.” 

द्रविड़ पॉलिटिक्स में कभी द्रमुक की सरकार बनती है, तो कभी अन्ना द्रमुक का पलड़ा भारी हो जाता है. राष्ट्रीय पार्टियाँ आधी सदी से हाशिये पर हैं.

अपनी एकछत्र नेता जयललिता की मौत के बाद आन्तरिक कलह से तबाह अन्ना द्रमुक अभी पूरी तरह उबर नहीं पाया है. वह अम्मा के भीमकाय कटआउट से काम चला रहा है जबकि सामने द्रमुक के पास हाड़-मांस के स्टालिन हैं. 

थेनी से कांग्रेस उम्मीदवार इवीकेएस इलांगोवन, जो द्रविड़ राजनीति के जनक पेरियार के पौत्र हैं, बताते हैं: “अन्ना द्रमुक की हालत इस दफा खस्ता है.” कद्दावर नेता टीटीवी दिनाकरण ने पार्टी से विद्रोह कर नई पार्टी बनायीं है, जो वोट काट कर अन्ना द्रमुक को नुकसान पहुंचा रही है. 

अन्ना द्रमुक सरकार के लिए ये चुनाव जीने-मरने का प्रश्न है. लोक सभा की ३९ सीटों के लिए १८ अप्रैल को हो रहे इलेक्शन के अलावा १९ मई तक विधान सभा की २२ सीटों के लिए भी उप चुनाव होने वाले हैं. सत्ता में बने रहने के लिए अन्ना द्रमुक को इनमें से कम से कम आठ सीटें जीतनी होंगी.

तमिलनाडु में गठबंधन राजनीति के विराट स्वरुप के दर्शन होते हैं, और साउथ-नार्थ डिवाइड के भी. अन्ना-द्रमुक की अगुआई में चुनाव लड़ रहे एनडीए और द्रमुक के सहारे वैतरणी पार कर रही यूपीए के बीच एक फर्क साफ़ नजर आ रहा है. 

कांग्रेस नेता ए गोपन्ना कहते हैं, “यह पहला ऐसा चुनाव है जिसमें कांग्रेस को जितना फायदा द्रमुक से हो रहा है, उतना ही द्रमुक को कांग्रेस की वजह से हो रहा है.” 

यहाँ ओपिनियन पोल में राहुल गाँधी, नरेन्द्र मोदी से ज्यादा लोकप्रिय हैं. द्रमुक नेता स्टालिन चुनावी सभाओं में कहते नहीं थकते: “इस इलेक्शन का सुपर हीरो कांग्रेस घोषणापत्र है. वह द्रविड़ विचारधारा को प्रतिबिंबित करता है.”

द्रविड़ राजनीति की मनोग्रंथि समझने में और तमिल अस्मिता का कार्ड खेलने में कांग्रेस ने कुशलता दिखाई है. मेडिकल में दाखिले के लिए नीट को ख़त्म करने का सवाल हो या फ़ेडरल ढांचे का, कांग्रेस द्रविड़ पार्टियों के साथ खड़ी है. 

अपने भाषणों में भी राहुल गाँधी स्थानीय मुद्दों का पूरा ख्याल रखते है. वे द्रविड़ पॉलिटिक्स के जनक पेरियार का जिक्र करते हैं और नरेन्द्र मोदी के बारे में कहते हैं: “पता नहीं इस आदमी ने तमिल इतिहास के बारे में कुछ पढ़ा है या नहीं...”

तमिल अस्मिता से सम्बंधित ज्यादातर मुद्दों पर भाजपा कठघरे में है. अन्ना द्रमुक समेत सारी द्रविड़ पार्टियां नीट के खिलाफ हैं. पर भाजपा नेता पियुष गोयल ऐलान करते हैं: “नीट खत्म नहीं कर सकते. इससे प्राइवेट कॉलेज कैपिटेशन फीस मांगेंगे.” 

लोग अभी भी जीएसटी और नोटबंदी की बात करते हैं और पुलवामा हमले से ज्यादा कावेरी विवाद में दिलचस्पी रखते हैं.  

कई दशकों बाद यह पहला ऐसा चुनाव है जिसमें द्रविड़ राजनीति की दो कद्दावर शख्सियतें, जयललिता और करूणानिधि, मौजूद नहीं हैं. आधी सदी से तमिलनाडु पर छाई द्रविड़ राजनीति के लिए इसके अपने निहितार्थ हैं. 

तमिलनाडु पॉलिटिक्स चकाचौंध करने वाली भव्यता के लिए मशहूर थी. नेताओं के कद से कई गुना बड़े उनके कटआउट होते थे. उनके पीछे जनता इस तरह दीवानी थी कि एमजी रामचंद्रन की मृत्यु के बाद ३० लोगों ने आत्महत्या की! जयललिता और करूणानिधि जैसे करिश्माई शख्सियतों के न रहने से द्रविड़ पॉलिटिक्स की चमक फीकी पड़ी है. 

तमिलनाडु भाजपा के जेजे चंद्रू कहते हैं, “राष्ट्रीय पार्टियों के लिए यह शुभ संकेत है.” क्या वाकई ऐसा है?

Dainik Bhaskar 16 April 2019


Page 2

Comments