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Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

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NK SINGH


मैं सातवें आसमान पर था. हमारी गाड़ी माधवराव सिंधिया खुद चला रहे थे. ड्राईवर को उन्होंने पीछे की गाड़ी से आने को कह दिया था. उनके बगल की सीट पर कला और संस्कृति की मशहूर शख्शियत पुपुल जयकर बैठी थी. और पीछे की सीट पर हम दो पत्रकार बैठे थे ---- मधु जैन, जो तब सन्डे में काम करती थी, और मैं खुद. 

ग्वालियर से शिवपुरी के पेंचदार रास्तों पर महाराज उस एम्बेसडर कार को बेहद तेज रफ़्तार से एक कुशल ड्राईवर की तरह चला रहे थे.कई दफा कांटा १०० तक पहुँच जाता था. इम्पोर्टेड लक्ज़री गाड़ियों समेत काफिले में पीछे चल रही दूसरी गाड़ियों को हमारे साथ चलने में पसीना आ रहा था. जाहिर था हम एक ऐसी हस्ती के साथ थे जिसे तेज रफ़्तार जिन्दगी जीने की आदत थी.

दिसम्बर १९८१ की उस सुबह हम ग्वालियर के भव्य जयविलास पैलेस से थोड़ी देर पहले ही रवाना हुए थे. रोबदार वर्दी में सजे ड्राईवर ने जब हमारे सामने उस एम्बेसडर कार को खड़ा किया था, तो मुझे थोडा विस्मय हुआ था. जयविलास पैलेस के गेराज में एक से एक शानदार कारें खड़ी थीं. फिर मुझे लगा कि या तो महाराज को एम्बेसडर पसंद थी या फिर वे पुपुल जयकर को अपनी सादगी से प्रभावित करना चाह रहे थे. 

सिंधिया जयकर को चंदेरी ले जा रहे थे, जो भूतपूर्व ग्वालियर रियासत का हिस्सा हुआ करता था. मक्सद था मनमोहक चंदेरी साड़ियाँ बनाने वाले बुनकरों से मिलकर वहां की प्रसिध्द हथकरघा कला की समस्याओं से रूबरू होना. जयकर भारत सरकार की आल इंडिया हेंडीक्राफ्ट बोर्ड की अध्यक्ष थीं.ग्वालियर रियासत कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए मशहूर था.

अपने यहाँ हर मांगलिक अनुष्ठान में ब्राह्मणों और नाईयों की जरूरत पड़ती है. आधुनिक युग में नाई की जगह पत्रकारों ने ले ली है. सो, मैं और मधु भी साथ थे. मधु जैन की मौजूदगी तो फिर भी समझ में आती थी. वे सन्डे पत्रिका के लिए कला और संस्कृति पर लिखा करती थीं. पर मुझे सिंधिया ने खास तौर पर न्योता देकर क्यों बुलाया था? मैं तब इंडियन एक्सप्रेस का मध्य प्रदेश संवाददाता हुआ करता था और ज्यादातर राजनीतिक विषयों पर लिखा करता था. बाद में समझ में आया कि उस दौरे का जितना मतलब सांस्कृतिक था, उससे कहीं ज्यादा राजनीतिक था.

पुपुल जयकर की ख्याति कला-संस्कृति के पारखी के रूप में जितनी थी, उससे ज्यादा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की सहेली के रूप में थी. इंदिराजी से उनकी खूब घुटती थी. अपनी माँ विजयाराजे सिंधिया की सलाह को दरकिनार करते हुए माधवराव ने १९७७ का लोकसभा चुनाव कांग्रेस-समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा था. बाद में, १९८० के चुनाव तक वे कांग्रेस में आ गए थे. पर अपनी साफ़-सुथरी छवि और जनाधार के बावजूद उन्हें तबतक मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई थी.

हमारा काफिला शिवपुरी में लंच के लिए रुका, जहाँ उतरते के साथ ही महाराज ने गाडी से कूदकर जयकर के लिए कार का दरवाजा खोला. दरवाजा खोलने और बंद करने की मेहमाननवाजी लगातार चलती रही. ज़ाहिर था, आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, आक्सफ़ोर्ड से पढ़े, सुसंस्कृत युवा नरेश – तब वे ३६ साल के थे - अपनी तहज़ीब से अपने ख़ास मेहमान को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे।


शिवपुरी में लोगों का एक बड़ा हुजूम स्वागत के लिए खड़ा था, जिसमें दिग्विजय सिंह भी शामिल थे, जो तब मध्यप्रदेश की अर्जुन सिंह सरकार में कृषि मंत्री हुआ करते थे. उन्हें सिंधिया के कहने पर सरकार ने खास तौर पर पुपुल जयकर की गवानी के लिए भेजा था.

शिवपुरी में सिंधिया के पूर्वजों की याद में बनी कलात्मक छत्री देखने और वहीँ स्थित ग्वालियर रियासत के प्राइवेट गेस्ट हाउस में जल्दी-जल्दी खाना खाने के बाद हम चंदेरी के लिए रवाना हुए. जब वहां पहुंचे तो चंदेरी के खूबसूरत किले की ऊँची दीवारें ढलते सूरज की रोशनी में नहा रही थीं. उसकी सीढियों पर हमें चाय दी गयी और महाराज जयकर को किले का इतिहास बताते रहे. 

बाद में कस्बे में बुनकरों से और सरकारी अफसरों से मिलने के बाद हम ललितपुर के लिए रवाना हुए.वहां से रात को ट्रेन पकड़कर सिंधिया, जयकर और मधु जैन दिल्ली जाने वाले थे, जबकि मुझे दूसरी दिशा में भोपाल वापस लौटना था.

ललितपुर के सरकारी रेस्ट हाउस के डाइनिंग हॉल में मजमा जमा. वहां मौजूद लोगों में दिग्विजय सिंह के अलावा कांग्रेस के एक और एमएलए थे, जो महाराज के करीबी माने जाते थे और बाद में उन्हीके कोटे से मध्यप्रदेश में मंत्री भी बने. सिंधिया ने खड़े होकर सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और ऐलान किया, “दिल्ली जाने वाले सारे लोग खाना खा लें. ट्रेन आने वाली है.”

थोड़ी ही देर में हाल में भीमकाय हॉट केस अवतरित हुए, जिनपर ग्वालियर रियासत के चिन्ह बने हुए थे. जाहिर था मेहमानों के लिए शिवपुरी से ही खाना बनकर आया हुआ था. सबने खाना शुरू किया, सिवाय हम तीन लोगों के --- दिग्विजय, कांग्रेस के वे एमएलए और मैं. 

जैसे ही खाना ख़त्म हुआ, डब्बे वापस हॉट केस में वापस पैक कर दिए गए ताकि उन्हें शिवपुरी भेजा जा सके. दिल्ली की ट्रेन का समय हो चुका था. सिंधिया ने मुझसे हाथ मिलाया और विदा ली.मैं सातवें आसमान से ज़मीन पर आ चुका था।

दिग्विजय सिंह को कहीं और जाना था. वे निकल लिए, पर कांग्रेस के उन एमएलएको मेरे साथ ही बीना के लिए ट्रेन पकड़नी थी जहाँ से वे गुना जाने वाले थे। जाड़े की उस कुहासे भरी रात जब हम ललितपुर स्टेशन पहुँचे तो वह ऊँघ रहा था। खाने-पीने के सारे स्टाल बंद हो चुके थे।

आधी रात के बाद जब हम बीना पहुँचे तो जान में जान आयी। वहाँ खाई गरमा-गरम आलू-पूड़ी का स्वाद अभी तक ज़ुबान पर है।

Prajatantra 4 November 2018

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