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भारतीय लोकतंत्र का स्वर्णिम काल
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Power of a vote
NK SINGH
चुनाव लोकतंत्र का महायज्ञ है। पर आम तौर पर मिडल क्लास इस यज्ञ में आहूति नहीं डालता । वे दूर से ही तमाशा देखने में यकीन रखते हैं।
मेरा भी लगभग वही हाल था। मुझे लगता था कि चुनाव से कुछ नहीं हो सकता।
पर मेरी इस धारणा को 1977 के चुनावों ने पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। पहली दफा मुझे एक वोट की ताकत का पता चला।
अनपढ़, गरीब, मजलूम खेतिहर मजदूरों, किसानों, शहर में दिहाड़ी कमाने वाले श्रमिकों और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले समाज के हाशिये पर बैठे लोगों ने अपनी ताकत दिखाई। उन्होंने हमें यह भी दिखाया कि उनकी राजनीतिक समझ कितनी शार्प है।
उन्होंने हमें एक वोट की ताकत दिखाई।
1977 के चुनाव भारतीय लोकतंत्र का स्वर्णिम काल था।
सत्तारूढ़ दल चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने के लिए बदनाम हैं। कोई भी पार्टी सिंहासन पर बैठे, चुनाव के वक्त उसके नेताओं का जी ललचाता ही है।
इसलिए संविधान ने इलेक्शन कमिशन का प्रावधान किया है, ताकि लोकतंत्र का यह महायज्ञ निष्पक्ष ढंग से सम्पन्न हो सके।
पर हम इसे आम तौर पर एक टूथलेस हौवा मानते थे। लोग समझते थे कि इलेक्शन कमिशन घुड़की तो दे सकता है, पर सत्ता में बैठे लोगों का कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
फिर भारतीय चुनाव के परिदृश्य पर धूमकेतु की तरह टीएन शेषन का उदय हुआ। इलेक्शन कमिशन कितना पावरफुल हो सकता है, यह हमें पहली दफा पता चला।
पॉलिटीशियन और अफसर उनके नाम से काँपते थे। संवैधानिक शक्तियों से लैस सर्वशक्तिमान इलेक्शन कमिशन के विराट स्वरूप के हमें दर्शन हुए।
शेषन की वजह से चुनाव की पवित्रता में हमारा यकीन और गहरा हुआ।
राजनीतिक दल चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते रहते हैं। फिर जब वे सत्ता में आ जाते हैं तो आसानी से उन सवालों को भूल जाते हैं।
इसका एक अच्छा उदाहरण है। एक राजनीतिक पार्टी के बड़े नेता हैं। पार्टी में कई पदों को सुशोभित करने के बाद वे आजकल राज्य सभा पहुँच गए हैं। टीवी का जाना माना चेहरा है।
उन्होंने 2010 में एक किताब लिखी थी – Democracy at Risk: Can we trust our electronic voting machines. उसका सब टाइटल था – Shocking expose of the Election Commission’s failure to assure the integrity of India’s electronic voting machines.
उन दिनों उन्होंने भोपाल में अपनी किताब के साथ एक प्रेस कॉनफेरेंस की थी। उस समय उन्हे New York Times, Washington Post, Newsweek जैसे अमेरिकी अखबार और मैगजीन निष्पक्ष नजर आते थे।
तो उन्होंने वहाँ छपे लेखों के हवाले से हमें बताया कि भारत तो दूर, अमेरिका में भी EVM मशीन फैल हो गई है।
फिर उनकी पार्टी सत्ता में आ गई। और वे अपने आरोपों को पूरी तरह भूल गए। यह राजनीति का चरित्र है।
जरूरत है कि चुनाव की शुचिता को लेकर और इलेक्शन कमिशन की निष्पक्षता को लेकर हम पूरी तरह सजग रहें। इसको लेकर कई तरह के खतरे सामने हैं।
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