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Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

Comments : चिठिया बाँचे सब कोई - 2

 

P.S. Bhopal, built 1944, Credit - Times of India

Comments on Ganga and her people - 2

पाठकों से गप-शप – 2   

पटना में 62,000 नौकाएं

Bidya Shankar Bibhuti : डूब गया शोर में, उम्दा लेखन और इतिहास के पन्ने पलटती याददास्त

Arif Mirza: बंदिनी के कालजयी दृश्य को आपने खूब याद दिलाया। गंगा पर अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।

NK Singh: बिमल राय का कमाल था कि वे कालीख भरे मिट्टी के चूल्हे को भी अपनी फिल्म में डालते थे वो परदे पर पेंटिंग की तरह दिखता था!

Arif Mirza: उनकी फिल्मों में संवाद कम दृश्य अधिक बोलते थे।

Vijay Dutt Shridhar: बोलते शब्द बाँधते भाव ।

डा.अजय खेमरिया: Vijay Dutt Shridhar 100 प्रतिशत सच

Jitendra Yadav: बहुत खूब सर

Vishal Chouhan: बेहद सुंदर सृजन

Madan Shandilya: धन्यवाद सर, मै भोपाल से हूं।

B.N. Gupta: अति उत्तम शानदार आलेख। अगली किश्त के इंतजार में…….

Rajkumar Jain: बहुत प्रभावी लिखा है

Anil Pandey: मैंने भी पढ़ा। पढ़कर अच्छा लगा। लेकिन, मन में एक सवाल अनायास कौंध उठा कि आपने लिखा हिंदी में है। छपा भी हिंदी दैनिक में है और पाठकों की प्रतिक्रियाएं भी हिंदी में ही हैं। फिर, फेसबुक पोस्ट अंग्रेजी में क्यों??? अन्यथा न लें। मन में आया, तो पूछ लिया। सादर

NK Singh: टाइप करने में आसानी होती है। अन्यथा मात्रा की गलतियाँ ठीक करते करते पसीना छूट जाता है। इसी मैसेज को लिखने में मुझे 1 मिनट लग गया। अंग्रेजी में शायद 15/20 सेकंड लगते।

B.N. Gupta: सर, जब आप दैनिक भास्कर भोपाल में संपादक हुआ करते थे, मैं और मेरे मित्र कैलाश शर्मा जी सन 2000 में एमसीजे कर रहे थे, तब “प्रिंट मीडिया के समक्ष चुनौतियां ” विषय पर आपका इंटर व्यू लिया था, इस हेतु आपने एक घंटे का समय दिया था । बहुत ही सुखद अनुभव रहा …

NK Singh: Glad that you remember such an old incident.

Khandelwal Braj: बेहतरीन, thanks for this beautiful story, reviving memories

Balesh Tiwari: शानदार लेखन।

Vinod Purohit: बेहतरीन और रोचक।

Ramesh Mishra Chanchal: कृपया आपकी श्रृंखला को फेसबुक पर पढ़कर मन प्रफुल्लित हो उठता है।

Jagdish Kaushal: इतने अच्छे शब्द चित्र वर्तमान समय में हिंदी में बहुत कम ही देखने को मिलते हैं मान्यवर एनके सिंह जी निश्चय ही बधाई के हकदार हैं शत शत वंदन अभिनंदन

NK Singh: जर्रा नवाज़ी का शुक्रिया।

Sachin Kumar Jain: बहुत सुंदर। इसे थोड़ा और लंबा होना चाहिए। कड़ी रमते रमते ही समाप्त हो जाती है।

NK Singh: I agree. But which newspaper publishes such stuff nowadays!

Sachin Kumar Jain: सहमत सर।

Ravi Sharma: पहले तो बस धन्यवाद ।

Zafar Aalam Hashmi: बहुत खूब

Vijay Tiwari: बहुत सुंदर भाई साहेब

Sushil Kumar: बहुत ही सारगर्भित ,मनोरंम दृष्टिकोण है, जिस भी नजर से देखे वैसा ही दिखाई देता है। यादों की लम्हें ने फिर कुरेदा है:मेरे साजन है,उस पर,मैं मॅन मार हूॅ इस पर…सर

Shashi Shekhar: अतिसुंदर

Shailendra Singh Bhadauria: Sateek evam samayik

Prashant Soni: शानदार लिखा सर

Anil Karma: बहुत रोचक सर

Ramendra Kumar Sinha: बेहतरीन और दिलचस्प सर

Arvind Malviya: सचिन भाई से सहमत

NK Singh: मेरे से भी सहमत हो जाइए, मित्रवर! मैने सचिन जी को कहा आजकल वैसे अखबार हैं कहां जो ऐसी चीजें छापते हैं। धर्मवीर भारती वाला धर्मयुग, मनोहर श्याम जोशी वाला साप्ताहिक हिंदुस्तान, राजेन्द्र माथुर वाला नई दुनिया, एस पी सिंह वाला रविवार तो अब बचा नहीं।

Arvind Malviya: सच है,पहले पत्र-पत्रिका संपादक के नाम से जाने जाते थे और अब व्यावसायिक घरानों के नाम से

दीपक शर्मा शांडिल्य: अति सुंदर आलेख

Anand Kumar Sharma: दिलचस्प कथाएँ मनमोहक शैली

Yogiraj Yogiraj Yogesh: सही जगह, सही समय पर संगीत सुनें तो कोई भी भीमसेन जोशी लगने लगता है इस वाक्य से हंड्रेड परसेंट एग्री। आपको पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है कोई फिल्म चल रही हो। बहुत ही अद्भुत और शानदार।

NK Singh: सही जगह, सही समय पर संगीत सुनें तो सोनू निगम भी भीमसेन जोशी लगने लगते हैं।

Yogiraj Yogiraj Yogesh: शायद इसीलिए शास्त्रीय संगीत में रागों के गाने का समय और प्रहर निश्चित किया गया है। शास्त्रीय संगीत का विद्यार्थी हाेने के नाते मुझे भी भीमसेन जोशी जी को सुनने और दैनिक भास्कर के लिए उनसे साक्षात्कार करने का अवसर मिला। भास्कर में आपसे इतना कुछ सीखने को मिला कि अभी तक काम आ रहा है और हमेशा आएगा। आपका म्यूजिक के प्रति लगाव देखकर बहुत खुशी हुई।

Bhopendra Sharma: ‘ गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा…’ समय की यात्रा के बीते पड़ाव की यादगार स्मृति।

Hari Agrahari: सर, रोचक, शब्द नहीं है।

Vijaya Kumar Tewari: काफी शोध है ।कैसे थे हम –आत्मनिर्भर थे ।पर अब टोल टैक्स दीजिए और भुगतिये । गडकरी जी अगर जल मार्ग को सुगम कर दे तो जनता का पैसा बचेगा और सरकार का बोझ कम होगा । अति उत्तम आलेख ,बधाई हो

NK Singh: पंडित जी, सरकार का क्या है, वह तो गंगाजी पर भी टोल लगा दे।

Satyendra Tiwari: 62000. यही आंकड़ा बहुत है उस समय के व्यापार को समझने के लिए । बहुत अच्छा लेख.

NK Singh: thanks. I think Mr Verghese was referring to the period when East India Company had started its operation in Bengal. Bihar was part of Bengal, of course.

Sameer Fakira: बहुत ही उम्दा दद्दा. एक दृश्य आंखों में बस गया

Mohan Manglam: बहुत ही सुन्दर और प्रवाहपूर्ण आलेख. विशेषकर आपके इस कथन “सही जगह, सही समय पर संगीत सुनें तो कोई भी भीमसेन जोशी लगने लगता है” की अनुभूति कई बार रेलयात्रा के दौरान या फिर मेले में हो ही जाती है।

NK Singh: सही जगह, सही समय पर संगीत सुनें तो सोनू निगम भी भीमसेन जोशी लगने लगते हैं!

Gurudas Upadhaya: संग्रहणीय आलेख

Vinod Sharma: सुंदर आलेख… रोचक शब्द बिम्ब

Praveen Chitransh: लाइव चित्रण

Umashankar Mishra: सजीव चित्रण

Shashi Kumar Keswani: भाई शानदार

Ganga Prasad: बहुत अच्छा लग रहा है ।

Suresh Mahapatra: इस विचित्र समय में यह आलेख निश्चित तौर पर मानसिक शांति का एहसास करा रहा है… मीडिया संस्थान बदनाम हैं। …

NK Singh: कुछ चीजें शाश्वत होती हैं।

Nachiketa Desai: गजब लिखा है सिंह साहब

Narendra Kumar Tripathi: Very interesting

Rajan Sikka: Great

Shrikant Sharma: Great of you Sir like always Ji

Mohd Yunus: मै तो आपको अंग्रेजियत वाला समझता था। हिन्दी मे इतनी सारगर्भित भावाव्यक्ति। सैलूट।

NK Singh:  thanks for the appreciation. My English was inadequate to tackle a subject like this one.

Dinesh Joshi: सटीक व सजीव लेखन। प्रणाम सर

Srijnesh Silakari: सरलता, सहजता, रोचकता के साथ गंभीर प्रस्तुति।

Soumitra Roy: सर की हिंदी भी माशाअल्लाह है। सर के मार्गदर्शन में काम कर काफी सीखा है।

Soumitra Roy सुभान अल्लाह

Aatm Deep: बढ़िया प्रस्तुति

Om Prakash Goel: बहुत खूब। स्टीमर क्यों बन्द हो गए? यात्री नहीं तो माल ढो सकते थे? विकास का चक्र तो चलते रहता।

NK Singh: Om Prakash Goel The British companies that had invested in railways persuaded the Government to give preferential treatment to rail transportation. And of course the Govt needed the railway for movement of troops to govern India.

Ashok Chaturvedi: बहुत सुंदर

Shishir Sharan: XCELLELNT SIR

Santosh Manav: दो बच्चा सिंह थे-बाघ बच्चा और जहाज बच्चा. उन पर भी कुछ —. आपने छुटपन में गोता लगवा दिया. प्रणाम

NK Singh: प्रणाम। वैसे बाघ बच्चा आप ही से सुन रहा हूँ। आप ही प्रकाश डालें। या फिर मुझे इस विषय पर जानकारी रखने वाले सुरेन्द्र किशोर जी से पूछना पड़ेगा।

Santosh Manav: खूब प्रचलित था सर -बाघ बच्चा और जहाज बच्चा

Renu Sharma: keep it up NK

Raghuraj Singh: बहुत बढ़िया है।

Dilip Jha: Fantastic sir. Congratulations. Jay ho.

Dr-Deepak Rai: Bahut sunder lekhan sir

Ghanshyam Das Agrawal: Very good well xone

Neelmegh Chaturvedi: Heart touching. Excellent. Your experience bearing fruits for knowledge society.

Laxman Bolia: वाह, आपने तो गंगा के बहाने फिल्म, इतिहास , बहादुर शाह ज़फर और स्टीमर की आंतरिक विगत के साथ काले धुंए सहित सभी रंगो से रूबरू करा दिया। आपकी धारा प्रवाह शैली आलेख को जवां बना देती है। अगली किस्त के इंतजार में…..!

Bharat Chhaparwal: Incredible.

Sanjeev Acharya: सजीव चित्रण, मोहक वर्णन

Kumar Alok Pratap: Sdhnyawad pranam

Nidhi Roy: Good

नई पाती : चिठिया बाँचे सब कोई – 3

पुरानी पाती : चीठिया बाँचे सब कोई – 1

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CATEGORIESART & LITERATURE, FILMS, MEMOIR


 

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