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Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

राज परिवारों में झगड़े: सब माया का खेला

 

Rajmata Gayatri Devi of Jaipur, Pi credit - Economic Times

Royal fights in former princely families

NK SINGH 

Published in India Today (Hindi) 31 January 1994

देश भर के राजपरिवारों में इन दिनों महलों के भीतर चलने वाले षडयंत्रों का केंद्र बिंदु खुद इन भव्य महलों की बेशकीमती जमीन-जायदाद बन गई है।

कहते हैं खून के रिश्ते बड़े गहरे होते हैं। जब तक संपत्ति का मामला बीच में न आए।

सरकार ने 1972 में प्रिवी पर्स खत्म करके सूर्य, चंद्रमा और देवताओं के कथित वंशजों को आम आदमी बना दिया. तभी से यह माना जा रहा था कि देश के पूर्व राजाओं-महाराजाओं के महलों से जुड़ी षड्यंत्रों की कहानियां अब इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएंगी।

लेकिन लगता है 21वीं सदी में भी राजपरिवारों में साजिशों और आपसी झगड़ों का दौर चलता रहेगा।

565 राजपरिवारों में झगड़े

कभी देश के एक-तिहाई हिस्से पर राज करने वाले 565 राजपरिवारों में से कई के वंशज पारिवारिक संपत्ति के झगड़े में अपने रिश्तेदारों से उलझे हुए हैं।

यह सब मध्यकाल का दोहराव ही लगता है जब राजा-महाराजा सत्ता और संपत्ति पर कब्जा बनाए रखने के लिए अपने बेटों और भाइयों को विरासत से महरूम कर देते थे।

लेकिन आज उनकी लड़ाई किसी भव्य राजदरबार में नहीं बल्कि अदालतों में चल रही है।

इन झगड़ों में बहुत महंगी जमीनें, शानदार कारें, महान कलाकारों के बनाए चित्र, अनूठी कलाकृतियां, दुर्लभ जेवरात और विदेशी बैंकों में जमा धनराशि शामिल है।

और जहां भी भारी संपत्ति का सवाल आता है वहां पारिवारिक धरोहरों को विदेशियों के हाथ बेचने, कीमती चीजों को गायब करने, ताले तोड़ने, कुटिल दरबारियों द्वारा उम्रदराज राजा को फुसलाकर संपत्ति लिखा लेने और प्रतिद्वंद्वियों को किनारे करने के लिए साजिशें रचने जैसे बेशुमार आरोप लोग एक दूसरे पर लगाते हैं।

इन विवादों में भारी बढोतरी की बड़ी वजह है जमीन-जायदाद की दिन दूनी रात चैगनी बढ़ती कीमतें। पंजाब के एक सामंती परिवार के वंशज और इंका सांसद विश्वजीत सिंह कहते हैं, ‘‘पूर्व राजकुमारों के कब्जे में अंतिम संपत्ति अब महल ही बचे हैं, इसलिए उन पर विवाद खड़े हो रहे हैं।"

जयपुर राजघराना

शायद सबसे कड़वा विवाद जयपुर राजघराने में चल रहा हैं । ब्रूनेई में भारत के राजदूत ब्रिगेडियर भवानी सिंह अपनी सौतेली मां गायत्री देवी और सौतेले भाइयों पृथ्वी सिंह, जय सिंह और जगत सिंह के साथ विवाद में उलझे हैं।

इस विवाद के घेरे में 500 करोड़ रू. कीमत की अचल संपत्ति है, जिसमें जयपुर सिटी पैलेस, मोती डूंगरी पैलेस, राजमहल पैलेस, तख्तेशाही पैलेस, रामबाग पैलेस और दिल्ली स्थित जयपुर हाउस शामिल हैं। जयपुर के पूर्व महाराजा मान सिंह की मृत्यु के बाद 1970 से ही संपत्ति को लेकर मुकदमे चल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अब मामले में हस्तक्षेप किया है और विवादित संपत्ति को अधिग्रहित करने के लिए रिसीवर नियुक्त कर दिया है। अदालत के आदेष के साथ 150 पृष्ठों की फेहरिस्त है, जिसमें 1,000 करोड़ रू. मूल्य की संपत्ति का ब्यौरा दर्ज है। साथ ही, हीरों, कीमती रत्नों और जेवरात की सूची के चार पृष्ठ भी शामिल हैं।

बड़ौदा के गायकवाड

बड़ौदा में तो और भी ऊंचा दांव लगा है। विवादित खानदानी जायदाद और संपत्ति 1,500 करोड़ रू. की है। 

पारिवारिक विरासत में कई बड़े भूखंड और भवन, जिसमें लक्ष्मी विलास पैलेस के चारों ओर 700 एकड़ जमीन भी शामिल है; मशहूर कोहिनूर से भी बड़ा एक हीरा जिसके बारे में माना जाता है कि वह कभी अकबर के पास था; करीब 100 किलो वजन वाले सोने और चांदी के रथ तथा तोपें; 1800 ई. के करीब किसी गायकवाड़ राजा द्वारा बनवाया गया मोतियों का सतलड़ा हार; सोने-चांदी के बर्तन और पांच पुरानी कारें हैं। 

इस लड़ाई में एक तरफ पूर्व शासक प्रताप सिंह की पत्नी शुभांगिनी देवी, बड़ी बहन मृणालिनी देवी पौर, जिन्हें अक्का राजे के नाम से जाना जाता है और राजमाता शांता देवी हैं। दूसरी ओर  बड़ौदा रेआन लि. के मालिक हैं।

यह विवाद 1989 में अंतिम महाराजा और रणजीत सिंह के निस्संतान बड़े भाई फतेह सिंह राव गायकवाड़ की मृत्यु के तुरंत बाद शुरू हुआ। 

संग्राम सिंह ने स्थानीय अदालत में यह आरोप लगाते हुए मामला दायर किया कि अक्का राजे ने परिवार के स्वामित्व वाली अलौकिक ट्रेडिंग प्रा. लि. की मानद निदेशीका के बतौर उनसे कंपनी का अधिकार हथियाने के लिए 1,500 अतिरिक्त शेयर गैरकानूनी ढंग से अपने नाम कर लिए। 

अक्का राजे और शांति देवी के समर्थन से रणजीत सिंह ने जवाबी हमले में संग्राम सिंह पर परिवार के स्वामित्व वाली दूसरी कंपनियों में गड़बड़ी करने का आरोप लगाते हुए दर्जन भर से ऊपर मुकदमें ठोंक दिए।

यह विवाद इस कदर तीव्र हो चुका है कि प्रधानमंत्री नरसिंह राव और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार से समझौता कराने के लिए संपर्क किया गया।

बताया जाता है अक्का राजे इस बारे में कुछ बताने से इनकार करती हैं जबकि रणजीत सिंह सतर्कता भरा जवाब देते हैं, ‘‘हम किसी भी सर्वमान्य और सम्मानजनक समझौते के लिए तैयार हैं। हम संग्राम के साथ वैसा बर्ताव नहीं करना चाहेंगे जो उसने हमारे साथ किया है।‘‘

मेवाड़ महाराणा

झगड़े की जड़ यह भी है कि राजघरानों में संपत्ति का उत्तराधिकारी ज्येष्ठता के आधार पर तय किया जाता था। सामान्य परिवारों के विपरीत, जिनमें संपत्ति सभी में बराबर बांटी जाती है, राजघरानों में बड़े  बेटे को ही पिता की गद्दी और संपत्ति मिलती थी। 1972 में हालांकि राजघरानों के सदस्य नागरिक संहिता के अंतर्गत शामिल  कर लिए गए थे मगर उनमें से कई अब भी यह दावा करते हैं कि उन पर जयेष्ठता का कानून ही लागू होता है।

इसी आधार पर 2,000 वर्षों से चले आ रहे मेवाड़ के सिसौदिया वंश  में विवाद छिड़ा है। महाराणा प्रताप के वंषज न केवल 450 करोड़ रू. की विरासत के लिए, जिसमें उदयपुर का मशहूर लेक पैलेस होटल भी शामिल है, बल्कि उत्तराधिकार के मुद्दे पर भी लंबे अरसे से मुुकदमे में उलझे हए हैं।

पूर्व महाराणा भागवत सिंह ने , जिनकी मृत्यु 1984 में हुई, अपने बड़े बेटे महेंद्र सिंह को वसीयत से खारिज कर दिया था और तमाम होटल, महल और ट्रस्ट छोटे बेटे अरविंद सिंह के नाम कर दिए। 

मगर महेंद्र सिंह के साथ इस तरह का सलूक मेवाड़ की जनता को स्वीकार नहीं था।शाही रियासत से जुड़े अधिकांश  कुलीन घरानों की मौजूदगी में हुए एक सार्वजनिक समारोह में महेंद्र का राजतिलक कर उन्हें मेवाड़ का 76वां महाराणा बना दिया गया। 

महेंद्र  सिंह ने अब ज्येष्ठता के कानून के आधार पर अपने पिता के वसीयतनामे  को चुनौती दी है और मांग की है कि वसीयत में उन्हें बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए। उन्होंने अपने भाई पर पुरानी कलाकृतियां बेचने का भी आरोप लगाया हैं उनके शब्दों में, ‘‘मैंने शि कायत दर्ज की है मगर पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही।‘‘

महेंद्र सिंह की मां सुशिला कुमारी ने उनका साथ देकर इस कानूनी संघर्ष में उनका पक्ष मजबूत किया है। वे भी संपत्ति में अपना हिस्सा मांग रही हैं। इस तरह तीनों लोग कुल मिलाकर 55 मुकदमों में उलझे हुए हैं।

सिंधिया राजघराना

कई बार राजघराने के सदस्यों के बीच संपत्ति का झगड़ा सिद्धांतों के टकराव और राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते और भी पेचीदा हो जाता है। 

टकराव का सबसे उम्दा उदाहरण तो ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का है, जिसकी राजमाता विजयाराजे सिंधिया (भाजपा उपाध्यक्ष) और उनके बेटे, इंका सांसद माधव राव सिंधिया के बीच खुली जंग छिड़ी है। 

पन्ना और खैरागढ़

मध्य प्रदेश  की पन्ना और खैरागढ़ रियासतों के राजघरानों में भी संपत्ति को लेकर शुरू हुए झगड़ों ने राजनैतिक द्वंद्व का रूप अख्तियार कर लिया है। 

पन्ना के बुंदेला राजवंश  की ख्याति छत्रसाल जैस वीर योद्धाओं के कारण रही है। मगर इन दिनों पन्ना रियासत का नाम इंका विधायक लोकेन्द्र सिंह और उनके पिता तथा पन्ना के पूर्व महाराजा और भाजपा नेता नरेंद्र सिंह के एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने के कारण ही आ रहा हैं । 

1991 लोकसभा चुनावों की पूर्वसंध्या पर भाजपा छोड़ने वाले लोकेंद्र सिंह ने अपने पिता पर आरोप लगाया कि उन्होंने राजनैतिक मतभेदों के कारण बदले की भावना से अधिकांश  संपत्ति बड़े बेटे मानवेंद्र सिंह और उनकी पत्नी दिलहर कुमारी के नाम कर दी है।

लोकेंद्र इस बात को लेकर अपने पिता से बेहद नाराज हैं कि उन्होंने 2,000 एकड़ जमीन समेत तीन-चौथाई  संपत्ति बेच दी है और अब बीस करोड़ रूपए में पन्ना महल भी बेचने की कोषिष कर रहे हैं। मगर नरेंद्र सिंह कहते हैं कि उन्होंने संपत्ति का बंटवारा 1969 में ही कर दिया था।

रीवा रियासत

ऐसा ही राजनैतिक पहलू रीवा में छिड़े पारिवारिक विवाद से भी जुड़ा है, जिसका केंद्र रीवा के पूर्व महाराजा और इंका सांसद मार्तंड सिंह हैं, जो केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के परिवार द्वारा संचालित चुरहट बाल कल्याण सोसायटी के अध्यक्ष भी हैं। 

1 992 में मार्तंड सिंह को इलाज के लिए विशेष  विमान से नई दिल्ली लाया गया तो भाजपा में शामिल हो चुकीं उनकी पत्नी प्रवीण कुमारी और बेटे पुष्पराज सिंह ने पुलिस में रपट दर्ज कराई कि उन्हें अर्जुन सिंह के इशारे पर ‘अगवा‘ कर लिया गया है। 

पिछली गर्मियों में मार्तंड सिंह के  निजी सचिव लक्ष्मण मिश्र ने नोटरी द्वारा प्रमाणित मार्तंड सिंह का एक वक्तव्य और उन्हीं की लिखावट में 1963 की एक डायरी की प्रतियां जारी कर सनसनी पैदा कर दी थी। 

वक्तव्य में महाराजा ने कहा है कि वे प्रवीण कुमारी के साथ कभी उनके पति की तरह नहीं रहे। उन्होंने इस बात पर भी शक  व्यक्त किया कि उनका इकलौता बेटा पुष्पराज सिंह उन्ही का खून है। 

दो दशक से भी पहले मार्तंड सिंह ने अपनी संपत्ति के कुछ अंश  को चार हिस्सों में बांट दिया था। उनकी पत्नी, बेटे, स्वयं को और संयुक्त परिवार को एक-एक हिस्सा गया था। समस्या आखिरी दो हिस्सों को लेकर पैदा हुई है। रीवा और इलाहबाद न्यायालयों में संयुक्त परिवार को मिले हिस्से को लेकर तीन मुकदमे चल रहे हैं।

प्रवीण कुमारी और पुष्पराज चुप नहीं बैठे। उन्होंने मिश्र द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों को ‘फर्जी‘ करार दिया है। 

पुष्पराज कहते हैं, ‘‘मेरे पिताजी सज्जन आदमी हैं। उनके इर्द-गिर्द रहने वाले छुटभैये इस बात का फायदा उठाते हैं क्योंकि वे शक्की मिजाज के नहीं हैं।‘‘ 

इस नाटकीय घटनाक्रम के मुख्य पात्र मार्तंड सिंह दुबले से व्यक्ति हैं जो अब ठीक से बातें समझ भी नही पाते। वे न तो आसपास होने वाली घटनाओं पर कुछ टिप्पणी कर पाते हैं और न ही लोगों को पहचान सकते हैं। 

मार्तंड को हर समय घेरे रहने वाले मिश्र और उनके आदमियों को लेकर चिंतित प्रवीण कुमारी ने अपने पति की अभिरक्षा के लिए मुकदमा दायर कर दिया है। पिछले वर्ष रीवा की एक अदालत ने फैसला सुनाया था कि प्रवीण कुमारी ही अपने पति की अभिभावक हैं। 

इस बीच मिश्र, जो महल में मामूली कार चालक की हैसियत से आए थे और फिर बढ़ते-बढ़ते महाराजा के निजी सचिव हो गए, बहुत अमीर आदमी हो गए हैं।

इंदौर के होल्कर

दो सदी से भी ज्यादा समय तक इंदौर पर शासन करने वाले होल्कर राजघराने में भी ऐसी ही लड़ाई चल रही है। परच्युत राजकुमार तुकाजी राव होल्कर की मृत्यु 1978 में हुई थी। उन्होंने एक अमेरिकी महिला नैंसी मिलर से शादी की थी, जिनका नाम बदलकर शर्मिष्ठा बाई होल्कर कर दिया गया। 

पिछले वर्ष 13 अगस्त को उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही उनकी चारों बेटियों ने संपत्ति में अपने हिस्से के लिए दावा शुरु  कर दिया। इस लड़ाई ने इतना भद्दा रूप ले लिया कि उनकी सबसे बड़ी 64 वर्षीया अविवाहित बेटी शारदा  राजे होल्कर को घर से निकालने की कोशिशें  होने लगीं।

हालांकि वसीयतनामे के अनुसार संपत्ति (अनुमानतः 14 करोड़ रू.) उनकी चारों बेटियों और उनके बच्चों में समान रूप से वितरित की गई। लेकिन शारदा राजे ने इस आधार पर इसे चुनौती दी है कि यह वसीयत फर्जी है। पहले वसीयतनामे के अनुसार वे अकेले ही पूरी संपत्ति की वारिस थीं। 

उनका यह आरोप भी है कि उनकी एक भानजी गणेश  कुमारी को इस 'फर्जी' वसीयतनामें के मुताबिक अपने हक से ज्यादा संपत्ति मिली है, क्योंकि शर्मिष्ठा  बाई उनके प्रभाव में थीं। 

गणेश कुमारी तल्खी से कहती हैं, ‘‘इन्हीं लोगों ने मेरी नानी मां को बहुत सताया था।‘‘ संपत्ति के इस युद्ध में दो बहनें शारदा राजे और सीता राजे एक ओर हैं तो दूसरी दो -- सुमित्रा राजे और सुशिला राजे -- दूसरी ओर। 

कड़वाहट इस मुकाम पर पहुंच गई है कि शारदा राजे महल की चारदीवारी में बात करने को तैयार नहीं, ‘‘चलिए बाहर चलते हैं। ये लोग दरवाजों के पीछे कान लगाकर खड़े होंगे।"

हैदराबाद निजाम

इन लड़ाइयों की एक बड़ी वजह वे न्यास भी हैं, जिन्हें पूर्व शासकों ने आय और संपत्ति कर से निबटने के लिए बनाया था। 

मसलन, ब्रिटिश भारत की सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद के निज़ाम के उत्तराधिकारी शहजादा मुकर्रम ज़ाह और निज़ाम परिवार की देखभाल के लिए बनाए गए न्यास के बीच कई अदालती मामले लंबित हैं।

निज़ाम उसमान अली खान ने अपनी संपत्ति को अलग-अलग न्यासों को सौंपा था। इन न्यासों को यह संपत्ति परिवार की देखभाल, शिक्षा, मस्जिदों की सुरक्षा और धार्मिक कार्यों पर खर्च करनी थी। इसमें वह संपत्ति शामिल नहीं थी, जिसे निज़ाम ने अपने बच्चों को सौंपा था।

अब इस अकूत संपत्ति के दो दावेदार मैदान में हैं -- मुकर्रम जाह और उनके पिता की भतीजी फातिमा फौजिया। 

फौजिया दादा निज़ाम उस्मान अली की छोड़ी संपत्ति का बंटवारा चाहती हैं। उन्होंने याचिका दायर की है कि मुकर्रम उत्तराधिकार में मिली संपत्ति में से सिर्फ 20 फिसदी के हकदार है तथा न तो उन्हें, न उनके किसी सहायक को अपने लाभ के लिए इसे बेचने का हक है। 

फौजिया का आरोप है, ‘‘मुकर्रम ने परिवार की साझी संपत्ति और कुछ आभूषण बेच दिए हैं, और कुछ न्यासी इसे जानते हैं।‘‘ लेकिन मुकर्रम पक्ष की दलील है कि ‘‘आसिफ जाही खानदान की परंपरा जारी रखते हुए निज़ाम ने यह संपत्ति अपने पोते को उपहार में दी थी।"

बंबई के शंघाई और हांगकांग बैंक के लाॅकरों में बंद बेशकीमती जवाहरात की बिक्री में देरी भी इस कड़वाहट को बढ़ा रही है। इनकी कीमत 1,000 करोड़ रू. आंकी गई है। 

सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देष के अनुसार  सरकार उनके 180 करोड़ दे रही है। अब इस दावे ने विवाद को नया मोड़ दे दिया है कि ये जवाहरात निज़ाम की नहीं, बल्कि हैदराबाद रियासत की संपत्ति है। और इस तरह इन पर सरकार का अधिकार बनता है।

बहरहाल, अदालती याचिकाओं, मुकदमों के आधुनिक हथियारों से खेली जा रही इन शा         ही लड़ाइयों में दर्शकों को  कतई मजा नहीं आ रहा। पुराना जमाना होता तो तलवार या शराब के स्वर्णजड़ित प्यालों में विष घोलकर ऐसे झगड़े कब के निपटा लिए गए होते।

साथ में उदय माहूरकर अहमदाबाद में और अमरनाथ के. मेनन हैदराबाद में

-  With Uday Mahurkar in Ahmedabad and Amarnath K Menon in Hyderabad

India Today (Hindi) 31 January 1994





India Today 31 January 1994

BARODA ROYAL FAMILY, GAEKWADS OF BARODA, HOLKAR ROYAL FAMILY OF INDORE, HYDERABAD PRINCELY FAMILY, JAIPUR ROYAL FAMILY, KHAIRAGARH ROYAL HOUSE, MAHARAJA BHAWANI SINGH OF JAIPUR, MAHARAJA MADHAV RAO SCINDIA, MAHARAJA MAN SINGH OF JAIPUR, MAHARAJA MARTAND SINGH OF REWA, MAHARANA BHAGWAT SINGH OF UDAIPUR, MAHARANA OF MEWAD, MAHARANI GAYATRI DEVI, MAHARANI PRAVEEN KUMARI OF REWA, MRILINI DEVI PAUR OF BARODA, NIZAM OF HYDERABAD, PANNA ROYAL HOUSE, PRINCE JAGAT SINGH OF JAIPUR, PRINCE JAI SINGH OF JAIPUR, PRINCE LOKENDRA SINGH OF PANNA, PRINCE MAHENDRA SINGH OF UDAIPUR, PRINCE MANAVENDRA SINGH OF PANNA, PRINCE NARENDRA SINGH OF PANNA, PRINCE PRITHVI SINGH OF JAIPUR, PRINCE PUSHPRAJ SINGH OF REWA, PRINCE RANJIT SINGH OF BARODA, PRINCE SANGRAM SINGH OF BARODA, PRINCESS DILHAR KUMARI OF PANNA, PRINCESS SHARDA RAJE HOLKAR, PRINCESS SHARMISHTHA DEVI HOLKAR, PROPERTY DISPUTES IN FORMER PRINCELY FAMILIES, PROPERTY DISPUTES IN ROYAL FAMILIES, RAJMATA SHANTI DEVI OF BARODA, RAJMATA VIJAYA RAJE SCINDIA, REWA ROYAL HOUSE, SHUBHANGINI DEVI OF BARODA, SISODIYA ROYAL FAMILY OF MEWAD



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