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Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

दिल की लालटेन तो हर हाल में जलेगी: जीते या हारें, लालू नेता नहीं स्टाइल हैं

Laloo Yadav, credit - KV Gautam

Secret behind Laloo Yadav’s success, and failure

NK SINGH

Published in Aha Zindagi, March 2005

अहा! जिंदगी के लिए पटना में लालू प्रसाद यादव के साथ नरेन्द्र कुमार सिंह

बिहार के गांवों में छोटीजाति के गरीब-गुरबों में मनोरंजन के दो सबसे लोकप्रिय साधन हैं. एक है बिदेसिया जो गीत-संगीत और नाच-गाने से भरपूर नौटंकी का एक फार्म है. दूसरा है लौंडा नाच, जिसमें बाईजी की जगह लड़कियों की वेष-भूषा में - कमसिन लड़के पेट्रोमेक्स की रोशनी में नाचते हैं।

पर वह बिदेसिया हो या लौंडा नाच, एक चरित्र उसमें अनिवार्यतः रहता है - लबरा, विकटा या नकटा।

नकटे की भले ही नाक कटी हो, चेहरा आड़ा-टेढ़ा हो, पर बड़ों-बड़ों पर अपना मसखरापन आजमाने से वह बाज नहीं आता।

जब विकटा स्वागत शैली में क्रूर, कंजूस जमींदार पर अपने व्यंग्यबाण छोड़ता है तो उसकी बोली न केवल लोगों को गुदगुदाती है बल्कि कही अंदर गहराई तक छू भी जाती है।

पारदर्शी धूर्तता से भरपूर नकटा बुरी ताकतों से लड़ता है और हीरो की अनुपस्थिति में बीच-बीच में नाचकर भी लोगों का मनोरंजन करता है।

भारतीय राजनीतिक रंगमंच पर एक हीरो की लगातार चल रही अनुपस्थिति का लालू यादव भरपूर फायदा उठा रहे हैं। वे अपना और अपनी विकटा शैली का महत्व अच्छी तरह पहचान गए हैं।

समोसा में आलू

वे पटना के स्थानीय पत्रकारों को मजाक-मजाक में कहते हैं, ‘हम नहीं रहेंगे तो तुम लोग को कोई पूछेगा? नौकरी खत्म हो जाएगी।लालू पटना के पत्रकारों को हमेशा पहले पेज की कापीमुहैया कराते हैं। लालू-विहीन बिहार पेज नंबर 17 की सिंगल कालम खबर है।

चौबीस घंटों के प्रतिस्पर्धी न्यूज चैनलों के इस युग में लालू जैसे घुटे हुए नेता को यह भी मालूम है कि जितनी उन्हें चैनलों की जरूरत है उससे ज्यादा चैनलों को उनकी जरूरत है। एक गृहणी कहती है, ‘चैनल सर्फिंग के दौरान आपको अगर कहीं लालू का चेहरा नजर आ जाता है तो आप एक मिनट के लिए वहीं थम जाते हैं।

पत्रिकाओं के कवर पर दाढ़ी बनाते हुये लालू की फोटो उसकी बिक्री बढ़ने की उसी तरह गारंटी है, जिस तरह वस्त्र विहीन मल्लिका षेरावत या साटिन के डबल बैड पर आमंत्रित करती नेहा धूपिया का ग्लैमरस फोटो। उनके नाम में ही जादू है। कम से कम पद्मश्री लालू प्रसाद यादव फिल्म के निर्माता को तो इसका विश्वास है ही।

क्या ऐसा केवल इसलिए है कि एक भुच्च-गंवार चेहरा हमें जमीन की सौंधी गंध की याद दिलाता है? कानों पर मफलर बांधकर ओढ़ना में लिपटे लालू का फर्श पर बैठकर घूरा तापना उतना ही सहज है जितना फायरप्लेस की आंच के सामने आरामकुर्सी पर लेटे प्रमोद महाजन का नफीस कट ग्लास से गला तर करना।

दाढ़ी बनाते या अधनंगे होकर मालिश करवाते किसी और नेता का फोटो खींचने की आप कोशिश तो करें! (राजनारायण अपवाद थे.) लालू न केवल ऐसा करते हैं बल्कि होली की हुड़दंग में अपने मंत्री के पूरे कपड़े उतारने में भी नहीं हिचकिचाते । उनकी होली में रंग-अबीर-गुलाल ही नहीं, बल्कि कीचड़ और गोबर भी शामिल होता है, जैसा कि पूर्वी भारत के गरीब ग्रामीणों में परपंरा है।

भदेस चेहरे तो हिंदुस्तान की राजनीति में और भी कई हुए हैं – चौधरी चरण सिंह, देवीलाल, ओमप्रकाश चौटाला। मुख्यमंत्री निवास को गाय-भैंसों के तबेले में तब्दील करने वाले लालूजी पहले राजनेता नहीं हैं। प्रेसिडेंट इस्टेट के अभिजात्य इलाके में गाय-भैंस पालकर जमीन से जुड़े नेता अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश पहले भी कर चुके हैं।

थ्री-इन-वन

इस भीड़ में लालू कहीं नजर आते हैं तो अपने थ्री-इन-वनगुण की वजह से। उनमें तीन अनोखे गुणों का मिश्रण हैः

·         मस्त भदेसपन और खैनी-सुरती वाली बिंदास लाइफ स्टाइल।

·         मसखरापन और हाजिर जवाबी।

·         भैंस, लालटेन, सत्तू, लिट्टी और कुल्हड़ की पालिटिक्स।

चुनावी यात्रा के दौरान चार्टर्ड प्लेन में बैठकर घरवाली सीएम राबड़ी देवी द्वारा पैक टिफिन से लिट्टी (सत्तू और लिट्टी बिहार में गरीबों का खाना है) चबाते लालू कब अपने भदेसपन को कुल्हड़ की राजनीति से जोड़ देते हैं, पता नहीं चलता।  बिहार के चीफ सेक्रेटरी को सबके सामने खैनी लगाने का आर्डर देकर लालू इस देश के करोड़ों भैंसपालकों को एक सीधा राजनीतिक संदेश दे रहे होते हैं -- अक्ल से भैंस बड़ी होती है।

सेंस ऑफ़ ह्यूमर

लालू यादव की जिंदादिली का एक राज उनके सेंस ऑफ़ ह्यूमर में छिपा है। वे केवल हसांना ही नहीं जानते, अपने उपर हंसना भी जानते हैं। उनके नेतृत्व में हास्य रस बिहार की राजनीति का मुख्य तत्व हो गया है। उनका नाम लीजिए और लोगों के चेहरे पर मुस्कान खिंच जाती है - ललुआ, वो जोकर!

वे  जान बूझकर ऐसा करते हैं। पिछले साल चुनाव के समय मुख्यमंत्री आवास के पोखर में मछलियों को चारा देते हुए वे मंत्र पढ़ते थे - साम्प्रदायिक शक्तियों का नाश हो - फिर एलान करते थे कि मछलियां तक यही चाहती हैं।

इस चुनाव में मछलियों की जगह उनके तबेले की एक गाय ने ले ली है। इस चमत्कारी गाय से वे पत्रकारों को, खासकर गोरी चमड़ी वाले पत्रकारों को मिलाने ले जाते हैं। आगंतुकों को लालूजी बताते हैं कि किस तरह इस गाय को उसकी मां की असामायिक मृत्यु के बाद उन्होंने बचपन (अपने नहीं, गाय के) से पाला । फिर भरपूर नाटकीयता के साथ वे एलान करते हैं, ‘हर बार यही मेरे चुनाव की सही भविष्यवाणी करती है।

फिर वे इस अनोखे भविष्यवक्ता के पास जाते हैं, अपनी मुट्ठियां भींचकर बांधते हैं और दोनों भुजाएं सीने पर बांध लेते हैं। गाय नजदीक आती है। लालू भी थोड़ा आगे बढ़ते हैं। गौमाता जीभ बाहर निकालकर राजद अध्यक्ष की मुट्ठी चाटने लगती है। लालूजी कहते हैं, ‘देखिए, हम कहे थे न ! इ गाय कह रही है कि हम फिर भारी बहुमत से जीतेंगे!

लालू यादव के जीवन दर्शन में हंसी का इस कदर महत्व है कि मुश्किल से मुश्किल समय पर भी उन्होंने अपना सेंस आफ ह्यूमर नहीं खोया। चारा घोटाले में 1997 में लालू के जेल जाते वक्त उनके राजनीतिक खात्मे की कहानी लिखी जा रही थी। उनकी जेल यात्रा पर विपक्ष ख़ुशी मना रहा था।

लालू प्रसाद ने उतनी ही आसानी से जेल यात्रा का मजाक उड़ाया - कृष्ण भगवान का जन्म ही जेल में हुआ था।ग्वाला नेता को कहने की जरूरत नहीं पड़ती कि कृष्ण का लालन-पालन भी ग्वालों के घर में ही हुआ था।

कमाल की हाजिर-जवाबी उनका एक गुण और है। दलित नेता रामविलास पासवान बड़े ठसके से रहते हैं - दो-दो बीबियां हैं, एक गांव में दूसरी शहर में! विधानसभा चुनाव भी उतने ही ठसके से लड़ा, पटना के सबसे महंगे होटल का पूरा फ्लोर उनके पास था और बिहार के आकाश में सबसे ज्यादा हैलीकाप्टर उन्हीं के मंडरा रहे थे। लालू ने उनका नाम रख दिया है - दलित कुमार।

अर्धान्गिनी राबड़ी देवी (जिसके प्रेम में उन्होंने बच्चों की फौज खड़ी कर दी) भी कम नहीं। आखिर 32 सालों का साथ रहा है। चुनाव के दौरान वे कहती फिर रही थी - लोग कहते हैं हम कठपुतली हैं। आपको क्या लगता है, सब काम लालूजी करते हैं? का सब पेपर पर वही साइन करते हैं?‘‘

कद्दू जैसा टमाटर

गंभीर से गंभीर विषयों को भी लालू आसानी से परोस देते हैं। पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार थी। डंकल प्रस्ताव की चर्चा होती थी। तत्कालीन जनता दल के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह वैशाली जिले की लालगंज में आयोजित एक सभा को गंभीरता से संबोधित कर रहे थे। अकादमिक जानकारी को जनता बेरूखी से ग्रहण कर रही थी।

बारी लालू प्रसाद की आई तो उन्होंने डंकल प्रस्ताव को कुछ इस अंदाज से समझाया - डंकल बड़ा खराब प्रस्ताव है। इ अगर पारित हो गया तो समझो जुलुम हो जाएगा। टमाटर होगा कद्दू जैसा बड़ा और उसे काटेगा तो निकलेगा गोबर।

भीड़ की प्रतिक्रिया उत्साहित करने वाली थी । भीड़ एकाग्रचित होकर सुनने लगी। तब लालू ने डंकल प्रस्ताव की खामियों के बारे में बताना शुरू किया। वी. पी. सिंह मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे।

लालू प्रसाद यादव जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने अपनी मां को इस पद के बारे में बताया। मैं राजा हो गया। उनकी मां राजा के बारे में नहीं समझ पाई। लालू ने समझाया -- हथुआ राजा था न। उससे भी बड़े राजा हम हो गए हैं।

मां समझ गई कि बेटा सचमुच राजा हो गया है। लालू का गांव कभी हथुआ राजा के अधीन था। उनकी मां इस उदाहरण से अपने पुत्र की तरक्की को आसानी से समझ गई।

दरबारियों ने राजा बनने की उनकी भावना को समय के साथ बढ़ाया। उस समय उनकी शान में कविताएं लिखी जाने लगीं। छोटे कद के एक नेता हैं -- ब्रह्देव आनंद पासवान । वे मच्छड़ चालीसा के रचयिता हैं। एक समारोह में लालू इस चालीसा को सुनकर इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने लालू चालीसा की रचना कर दी -- जय जय जय लालू भगवान- से शुरू इस चालीसा ने लालू के लिए तुकबंदी करने वालों की कतार लगा दी।

माटी के लाल और लालू चरित मानस

·         बिहार प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी ने लालू प्रसाद की जीवनी लिख दी -- माटी के लाल। इसे कुछ दिनों के लिए स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम में भी लगाया गया। जेपी आंदोलन के भारतेंदु क्रांतिकारी को लगा कि वे पिछड़ रहे हैं। सो उन्होंने लालू चरित मानस की रचना कर डाली। उसके कुछ पद इस तरह हैं-

जय लालू, जय लालू,

जय जय जय जय लालू

सब सू तुम्हारी चर्चा होती है

बस तू माला का सच्चा मोती है

ना तू पत्रा है ना तू पौथी है

फिर भी तुम्हारी जय होती है

दुखते जलते दिल कहते जय लालू

निर्बल के बल का संबल जय लालू

पीड़ित जीवन है खलबल जय लालू

षोषक मन की तू हलचल जय लालू

राबड़ी चरित मानस

·         क्रांतिकारी के मानस का कोई प्रभाव राजद अध्यक्ष की सेहत पर नहीं पड़ा। उन्हें दरबार की ओर से कोई सहायता नहीं मिली, लेकिन इसका असर दूसरों पर नहीं पड़ा। लालू के साथ-साथ राबड़ी देवी के लिए भी मानस की रचना कर दी गई। इसके रचयिता राम विलास यादव हैं। पद इस तरह है -·

जय जय श्री राबड़ी सुख करनी

नमो नमः राजमाता दुख हरनी

अनुपम छटा व ज्योति तुम्हारी

चहं दिस मुखरत तेरी लाली 

लालू पचासा 

·         जब तारीफ में इतनी रचनाएं हों तो विरोधी कहां चुप रहने वाले। एक गुमनाम रचनाकार ने चालीसा के जवाब में लालू पचासा की रचना कर डाली। वह इस तरह है – 

समाजवाद के तुम हत्यारे

चमचन सबके काज संवारे

दगाबाज रघुनाथ बुलाए

संत समान दास हरवाए

वीपी कीन्हीं बहुत बड़ाई

कहा बाप मेरे तुम भाई

दुष्ट जनन तेरे गुण गाये

अस कहि बोम्मई कंठ लगाए

रंजन, शरद अरू फर्नांडीसा

राम निवास नवावहिं सीसा। 

लालू चार सौ बीसा

·         लालू यादव के विरोधी एक और रचना-लालू चार सौ बीसा लिखने बैठ गए – 

चाटुकार सब काटे चानी

लालूजी पर लिखे कहानी

बत करेलन कितना मीठी

काम करेलन कितना तीती

लालू नंबरी चार सौ बीसा

उल्टे भांड से लिखे चालीसा

तुम हो नहीं किसी को भाई

दारू-मुर्गा खूब उड़ाई

जब-जब तुमको रूपया घाटा

जयप्रकाश का पाकेट काटा 

बहरहाल पशुपालन घोटाला के जाहिर होने के बाद लेखकों का जोश ठंडा हुआ। हाल के दिनों में कोई नया लालू रचनाकार सामने नहीं आया है।

लालू की यही कला है, जनता की जुबान में उनसे ताल्लुक रखने वाली चीजों की बात कहने की। इसी ने उन्हें एक खास तबके में लोकप्रिय बनाया । शुरुवाती दौर में वे जब अपनी सभाओं में भैंस के सींग पकड़कर उसकी सवारी करने की बात करते थे तो वहां मौजूद श्रेष्ठी वर्ग के लोग हिकारत से हंसते थे - जोकरवा है।

पर लालू अपने श्रोताओं तक अपनी बात पहुंचा रहे थे - अपना ही आदमी है। इ भी भैंस चराता था।

बिंदास लालू के जीवन में मस्ती के लिए काफी जगह है। जीवन वे भरपूर जीते हैं - उनके घर मनने वाली होली, ठंड के दिन अलाव के इर्द-गिर्द गाया जाने वाला चैता, मुख्यमंत्री आवास पर लौंडा नाच केवल पालिटिकल स्टेटमेंट नहीं है। वे ऐसे भदेस आयोजनों में खुद भी रस लेते हैं।

लालू जी हार गए तो क्या करेंगे। वे अपनी चुनावी सभाओं में कहते नजर आ रहे थे - अगर हमको वोट नहीं दीजिएगा तो हमारे पास दूसरे काम भी हैं। हम बेरोजगार थोड़े रहने वाले हैं। हम एक्टिंग चालू कर देंगे।

सावधान शाहरुख, अमिताभ, सलमान वगैरह-वगैरह। यह बयान एक ऐसे व्यक्ति की ओर से आ रहा है जो चौबीसों घंटे स्टेज पर ही रहता है और कभी अपना मुखौटा नहीं उतारता। 

वेट प्लीज

किसी नेता की लोकप्रियता की सबसे बड़ी निषानी है उसके बारे में चुटकुले गढ़े जाना। लालू यादव इस मामले में टाप पर हैं। लालूजी के चुटकुलों पर तो कोई वेबसाइटें हैं। 

  • ·        लालूजी के भदेसपन से आजिज आकर राबड़ीजी ने उन्हें अंग्रेजी सीखने बिल क्लिंटन के पास भेजा। (तब मोनिका स्कैंडल नहीं हुआ था।) क्लिंटन ने उन्हें भरोसा दिलाया कि क्योंकि व्हाइट हाउस में कोई भोजपुरी नहीं बोलता ह, लालू अंग्रेजी में बातचीत करने पर बाध्य हो जाएंगे। पर लालूजी की प्रोग्रेस धीमी रही। छह महीने बीत गए। राबड़ी देवी को लगा कि साहबको अब तो अंग्रेजी आ गई होगी। उन्होंने व्हाइट हाउस फोन लगाया। पूछा, ‘लालूजी की पढ़ाई कैसी चल रही है।उधर से आवाज आई, ‘ललुआ तो कुच्छों नहीं सीख सका। हम क्लिंटनवां बोल रहा हूं।‘ 

  • ·         लालूजी जापान के राष्ट्रदूत से बात कर रहे थे। एंबेसेडर साहब लालूजी से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, ‘हमको बिहार के डेवलपमेंट का मौका दीजिए। तीन साल में हम बिहार को जापान जैसा बना देंगे।लालूजी को आश्चर्य हुआ, ‘आप जापानी लोग तो बड़े स्लो हैं। हमको तीन दिन दीजिए और हम जापान को बिहार बना देंगे। 

  • ·         लालूजी एयरपोर्ट से निकल रहे थे। भीड़ ज्यादा थी । सिक्योरिटी वाले ने कहा, ‘वेट प्लीज।लालूजी बोले -65 किलो- और आगे बढ़ लिए। 

  • ·         लालूजी को बिहार और न्यूयार्क के समय में फर्क मालूम करना था। उन्होंने टूरिज्म विभाग में फोन लगाया, ‘क्या आप मुझे पटना और न्यूयार्क के बीच समय का फर्क बता सकते है?‘ उधर से आवाज आई, ‘एक सैकंड, सर।लालूजी ने कहा, ‘थैंक्यू।और फोन रख दिया।

 Aha Zindagi, March 2005

Aha Zindagi





 

 

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