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Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

छोटानागपुर: ‘खटु आमे दुनिया, हेलु आमे चिर दुखिया’

Jaipal Singh Munda, who was among the founders of Jharkhand Party, was a member of the Constituent Assembly of India and also a member of the Indian hockey team that got the gold at 1928 Olympics. Pic credit velivada
Jaipal Singh, founder of Jharkhand Party. Pic credit velivada

Hills of Chotanagpur are ablaze as adivasis revolt against exploiters

 NK SINGH

छोटानागपुर की हरी-भरी पहाड़ियाँ पिछले साल से मुखरित हो उठी हैं। गत वर्ष आदिवासियों के एक हिस्से ने बिरसा सेवा दल के नेतृत्व में एक सफल आंदोलन चलाया। उन दिनों रांची में प्रायः रोज ही प्रदर्शन हुआ करते थे, जिनमें पचासों मील पैदल चल कर आदिवासी नौजवान, बच्चे-बूढ़े, औरतें और लड़कियां अपने पारंपरिक हथियारों का प्रदर्शन करते हुए भाग लिया करते थे।

नक्सलवादियों का ‘शुभागमन’ भी उसी समय रांची में हुआ था। उन्होंने आंशिक सफलता भी पाई। लेकिन आदिवासियों में अपरिचितों पर जल्द भरोसा न करने की प्रवृत्ति प्रबल हुआ करती है। अतः जब नक्सलवादियों और आदिवासियों के एकमात्र सम्पर्ककर्ता राय गिरफ्तार हो गए तो सारा संपर्क टूट गया। नक्सलवादियों को पुनः गहन अंधकार में रास्ता टटोटलने पर विवश होना पड़ा।

इस आंदोलन की जड़ में था बरसों से बेरोकटोक पल्लवित हो रहा शोषण एवं सुरसा के मुख की तरह बढ़ती गरीबी। शोषण और गरीबी ने आज ऐसी सूरत अख्तियार कर ली है कि  ‘आदिवासी’ शब्द से मानस-पटल पर एक ऐसी आकृति अंकित हो जाती है जिसके पेट और पीठ की दूरी क्रमशः मिटती जा रही हो। पिचके हुए गाल, जर्जर हड्डियाँ, शराब के नशे से बोझिल आँखें और तार-तार हो चले गंदे कपड़ों में लिप्त एक कृषकाय शरीर।

कहने को तो पहले से ही आदिवासियों के शोषण के खिलाफ ढेर सारे कानून बने पड़े थे, पर आदिवासियों द्वारा इस आंदोलन को प्रारंभ करने के पहले तक उनकी जमीनें गैर-आदिवासियों के हाथ बगैर किसी रुकावट के चिकनी मछलियों की तरह फिसलती जा रही थीं। कृशन चंदर के शब्दों में – “ऊंट सुई की नोक से नहीं गुजर सकता, पर अमीर कानून के हर नाके से गुजर सकता है”।

लोकगीतों में क्षोभ

आदिवासियों ने अपने असंतोष से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने अपने क्षोभ लोकगीतों में उतारा:

खटु  आमे दुनिया,
हो आमे चाषी मलिया,
हेलु  आमे चिर दुखिया,
आमे पेट अखिया,
हो आमे चाषी मलिया,
जंगल काटीलु, आमे धान बुनीलु,
दिन-रात खटी-खटी कोड़ा गड़िलु,
जाहं धरे आमे कुटिया,
हो आमे चाषी मलिया,
आमे लहू शोषि किए भरे भंडार,
बेदी-बेगारी रे आमे कटिलु काल,
आँखी आणखी खोल हे खटिकिया,
हो आमे चाषी मलिया।

हम सारी दुनिया में खटते हैं। हम किसान-मजदूर हैं। हम चिरकाल से दुखी हैं। हमारा पेट कभी नहीं भरा। हम किसान-मजदूर हैं।हमने जंगल काटा, धान बोया, दिन-रात खटकर प्रासाद बनाए। लिकीन अपने निवास के लिए छोटी सी कुटिया  ही नसीब है। हम किसान-मजदूर हैं। हमारा लहू पीकर उसने अपना भंडार भरा। हम लोगों ने बेगारी कर अपना समय गुजर। हे खटने वालों, आँखें खोलो! हम किसान-मजदूर हैं।

अभी हाल तक छोटानागपुर की घाटियों में एक राजनीतिक शून्यता व्याप्त थी। स्वराज के बाद झारखंड दल का जन्म हुआ। उसने इस शून्यता को भरने की कोशिश की। पर अल्पकाल में ही इसका मुखौटा घिसकर पतला हो गया।

मुखौटे के पीछे से सत्ता-लोलुप, अवसरवादी राजनीतिज्ञों की लालच भरी आँखें झलकने लगीं। आदिवासी जनता समझ गई कि  अलग झारखंड और “मुर्गा-राज” का नारा इन लोगों ने जनता को भुलावे में रखने के लिए ही लगाया था।


Excerpts from Hindi Patriot, 26 October 1969

Article on exploitation of Chotanagpur adivasis and their revolt by NK Singh, Hindi Patriot, 26 October 1969
Patriot (Hindi) 26 Oct 1969

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