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Dainik Bhaskar 26 October 2018 |
BJP faces huge anti-incumbency in 2018 MP assembly election
NK SINGH
सिरमौर से सेमरिया के बीच
सड़क खस्ताहाल थी. अमेरिका से बेहतर सड़क के गड्ढों को मिटटी से पाटा गया था. धूल के
गुबार के बीच गिट्टियों पर उनका विकास रथ हिचकोले खाता रहा. खराब सड़क के कारण पीछे
आ रही कई गाड़ियाँ भी आपस में टकराई.
इस जमीनी हकीकत के बीच मातबर मध्यप्रदेश का
दावा मतदाताओं के गले कितना उतरेगा, कहना मुश्किल है.
एंटी इनकम्बेंसी से जूझती भाजपा
को बचाने आरएसएस सामने आया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जमीन से जुड़ा संगठन है. उसके
पास समर्पित कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज है. उसे भी वोटरों के रुख को लेकर चिंतित
करने वाली रिपोर्ट मिली हैं.
सरकार और मौजूदा विधायकों के खिलाफ असंतोष नजर आ रहा
है. एट्रोसिटी एक्ट और सवर्ण आन्दोलन के प्रभाव को लीडरशिप ने गंभीरता से नहीं
लिया. २५ साल पुराने कांग्रेसी राज को कोस कर वोट हासिल करने की स्ट्रेटेजी अब कारगर
नहीं दिख रही.
अबकी बार २०० पार मुश्किल दिख रहा है.
क्या आरएसएस भाजपा की
नैय्या पार लगा पायेगा? संघ से भाजपा की गर्भनाल जुड़ी है. उसके पहले अवतार जनसंघ
की स्थापना १९५१ में हुई थी. ६७ साल बाद भी वह अपने संगठन मंत्री के लिए संघ पर
निर्भर है.
भाजपा के सारे बड़े नेता संघ से अपने संबंधों पर गर्व करते हैं. खुद
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना राजनीतिक जीवन आरएसएस के क्षात्र संगठन
विद्यार्थी परिषद् से शुरू किया था.
हर दूसरे-तीसरे महीने भाजपा के नेता संघ के
दफ्तर में लम्बी-लम्बी बैठकें कर विचार-विमर्श करते हैं. मुख्यमंत्री के अलावा उनकी
कैबिनेट के मंत्री भी ऐसी बैठकों में भाग लेते रहे हैं. आरएसएस में प्रभाव भाजपा
में कामयाबी की गारंटी मानी जाती है.
सरकार के काम-काज को लेकर
संघ समय-समय पर अपना फीडबैक देता रहा है. नौकरशाही के दबदबे को लेकर संघ के
प्रचारकों ने कई दफा अपनी नाराजगी जताई है. बालाघाट, झाबुआ, नीमच, आगर-मालवा और
रायसेन में संघ से टकराव के बाद पुलिस अफसरों के तबादले हुए.
संघ से बेहतर तालमेल
की खातिर सीएम सेक्रेटेरिएट में खास तौर पर एक अफसर की नियुक्ति की गयी. जब सरकार
में इस काबिल कोई अफसर नहीं मिला तो एक बैंक मैनेजर को ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी बना
कर लाया गया. कम से कम १५ भूतपूर्व प्रचारकों को विभिन्न निगम-मंडलों का चेयरमैन
बनाया गया. कई संस्थाओं के काम-काज में संघ की खासी दखल रही है.
शिवराज सरकार में
संघ की जितनी कद्र होती है, उतनी आजतक किसी सरकार में नहीं हुई.
इसका एक ही मतलब निकलता है
--- पांच साल लगातार निगरानी रखने के बावजूद संघ का फीडबैक सिस्टम ठीक से काम नहीं
कर पाया.
१५ साल सत्ता में रहने के बाद आईफोन जनरेशन के प्रचारकों में से कई
को लक्ज़री गाड़ियों और पांच सितारा सुविधा की चाट लग गयी है.
भाजपा के एक बड़े नेता,
जिन्होंने संघ कार्यकर्ता के रूप में अपनी पारी की शुरुआत की, कहते हैं,
“चना-चबेना खाकर गुजारा करने की बात कहनेवाले इस बात को नहीं समझते कि जमाना बदल
गया है.”
उनकी बात सही है. पर क्या संघ के प्रचारकों का पुण्य तब ज्यादा कारगर
नहीं था जब उन्होंने सत्ता का स्वाद नहीं चखा था?
यह चुनाव भाजपा के लिए परीक्षा
की घडी तो है ही, आरएसएस के लिए भी एक चुनौती है.
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