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Dainik Bhaskar 30 September 2018 |
BJP opens purse strings of State exchequer to win election
इस चुनाव में जिस तरह सरकार दोनों
हाथों खजाना उलीच रही है, वैसा मध्य प्रदेश के इतिहास में शायद आज तक नहीं हुआ.
फ्लैगशिप संबल योजना में रोज नए आयाम
जोड़े जा रहे हैं. ताजा घोषणा है कि बाहर रहकर पढ़नेवाले बच्चों के कमरे का किराया
सरकार भरेगी।
चुनावी आंकड़े भले भाजपा को उसकी सरकार
बनाने का भरोसा दिलाते हों, पर पार्टी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती। खजाना खोलना उसी
रणनीति का हिस्सा है.
चुनावी मुद्दे तय करने का अख्तियार
केवल राजनीतिक दलों के पास नहीं रहता है. कुछ वे तय करते हैं, और कुछ जनता.
भाजपा को लगता है कि संबल जादू की
ताबीज है. उसे १५ साल के काम पर भरोसा है और वह वोटर को समृध्धि के सपने बेच रही है.
कांग्रेस के पास भी एक लम्बी लिस्ट है –
भ्रष्टाचार, महंगाई, पेट्रोल की बढती कीमतें, किसानों की मुश्किलें, ख़राब सड़कें, खनन
माफिया का आतंक और एंटी-इनकम्बेंसी.
क्या ऐसी योजनायें वोट में तब्दील होती
हैं? डेढ़ लाख लोग तीर्थ दर्शन योजना का फायदा उठा चुके हैं. पिछले साल इंदौर में उनका
एक सम्मेलन हुआ. बारह हज़ार लोगों को न्योता गया, आये केवल १२.
भाजपा का ख्याल है कि किसानों के लिए उसने
भरपूर किया है. किया भी है. मंदसौर गोलीकांड के बाद नाराज अन्नदाताओं को खुश करने
के लिए घोषणाओं की झड़ी लग गई.
पर उससे खंडवा के वे किसान खुश होने से
रहे जिन्होंने भाव न मिलने की वजह से पिछले हफ्ते अपने टमाटर मंडी के बाहर फेंक दिए.
या जिन्हें फसल बीमा में दो रूपये के चेक मिले.
यह विडम्बना है कि जिस प्रदेश को पांच
दफा कृषि कर्मण अवार्ड मिला हो और जहाँ खेती की ग्रोथ रेट १८ प्रतिशत है, वहां हर
आठ घंटे में एक किसान ख़ुदकुशी करता है.
कुछ
योजनायें झांकी ज़माने के लिए बनती हैं. फायदा कम, पब्लिसिटी ज्यादा। किसीको याद है
कि नेकी की दीवार का क्या हुआ? नर्मदा यात्रा में लगे पेड़ गिनीज बुक से कैसे ग़ायब
हुए?
एक के बाद एक इवेंट्स होते रहे,
सिंघस्थ भी इवेंट बन गया और सरकार धूम-धड़ाके से यात्राएँ निकालती रही. माहौल बना,
पर हासिल क्या हुआ?
कुछ मुद्दे अंडरकरंट में चल रहे हैं. मुख्यमंत्री भले मानते हों कि
उनकी सड़कें अमेरिका से बेहतर हैं, पर हकीकत यह है कि प्रदेश की १३,००० किलोमीटर
सड़कें ख़राब हालत में हैं. गड्ढों की वजह से रोज आठ एक्सीडेंट होते हैं.
जन आशीर्वाद
यात्रा का एक फायदा यह हुआ कि जहाँ भी मुख्यमंत्री गए, सड़कों की मरम्मत हो गयी. पेट्रोल
की कीमतें भी चुनाव में धधकने को तैयार हैं, केवल एक चिंगारी की जरूरत है.
जातिवाद इस
चुनाव पर जिस तरह से छाया है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया. एससी-एसटी एक्ट में
बदलाव के मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा दोनों कन्नी काट रही हैं.
ऊंट किस तरफ करवट लेगा, न भाजपा को मालूम है, न कांग्रेस को. यह एक ऐसा मुद्दा है जो इस
बार सारे मुद्दों पर भारी पड़ सकता है.
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