 |
Dainik Bhaskar 16 November 2018 |
Poor and Dalits are happy with Shivraj Government
NK SINGH
शहडोल:
ब्योहारी में किराना की छोटी दुकान चलाने वाले मनोज गुप्ता एससी-एसटी एक्ट के
खिलाफ फट पड़ते हैं. दुकान पर आने वाले लोग भी उनकी हाँ में हाँ मिलाकर कहते हैं कि
नोटबंदी और जीएसटी ने काम-धंधा चौपट कर दिया है. सड़कों की हालत ख़राब है. बिना लिए-दिए
कोई काम नहीं होता. वे भविष्यवाणी करते हैं कि भाजपा सत्ता में वापस नहीं आएगी.
बाजारों
में, सड़कों पर और मिडिल क्लास बस्तियों इसी तरह की आवाजें सुनने मिलती हैं, पर जैसे
ही हम कच्ची बस्तियों और अतिक्रमण कर बनाये टपरों की तरफ रूख करते हैं, सीन बदल
जाता है. गरीब, खासकर दलित गरीब, भाजपा से जुड़ाव महसूस करता है.
लोगों
की जिंदगियों में नजदीक से झाँकने की कोशिश के दौरान एक राजनीतिक ट्रेंड सामने उभर
कर आता है. एससी-एसटी एक्ट के साथ ही गरीबों के लिए बनी कल्याणकारी योजनाओं ने
भाजपा के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा की हैं.
एससी-एसटी
एक्ट ने भले ही भाजपा के ही कुछ सवर्ण कार्यकर्ताओं को नाराज किया हो पर दलित
समुदाय में उसने प्रशंसा का अंडरकरेंट
भी पैदा किया है. गरीब-गुरबों के लिए बनी योजनाओं ने भाजपा के लिए नया वोट बैंक
तैयार किया है.
गुढ़
कस्बे के मुहाने पर ही बसोड़ों की झोपड़ियाँ हैं. कुछ पक्के मकान भी आधे-अधूरे बने
खड़े हैं. यह मलिन बस्ती कीचड़ के तालाब के किनारे है, जहाँ शहर के नालों का गन्दा
पानी आकर इकठ्ठा होता है.
“ई
सरकार हमारे लिए बहुत कुछ किये, इस बार तो कमले जितहिं,” बस्ती में रहने वाले
राकेश बंसल कहते हैं. वे बस भाड़े के लिए जेब में २० रूपये डाल कर रोज मजदूरी के
लिए २४ किलोमीटर दूर रीवा जाते हैं और वापस १५० रूपये लेकर लौटते हैं. पर वे नगर
पंचायत के स्थानीय भाजपा नेता से इसलिए नाराज हैं कि उसने आवास योजना के पैसे “दबा
लिए”.
पान-गुटके
की एक दूकान पर उनके आस-पास बस्ती के लोगों का हुजूम इकठ्ठा हो जाता है. लोग मुझे
बताते हैं इस सरकार ने उनके लिए क्या किया है. “बिजली का पुराना बिल माफ़. अब २००
रूपये दो और चाहे जितना जलाओ,” एक अधेड़ व्यक्ति कहता है.
लोग
आवास योजना के तहत मिल रही मदद का जिक्र करते हैं और सामने बन रहे मकान दिखाते हैं.
भीड़ में कोई मुफ्त गैस सिलिंडर का भी जिक्र करता है. ज्यादातर लोग कहते हैं कि इस
बार वे भाजपा को वोट देने वाले हैं.
और
बसपा? “पहले देत रहे. उ कोई काम नहीं किये.” रीवा में ही रहने वाले जयराम शुक्ल भी
इस बात की पुष्टि करते हैं कि बसपा के वोट बैंक का एक हिस्सा खिसक रहा है.
सीधी
के बारे में कहा जाता है कि वहां की कोई सड़क सीधी नहीं.
पर
शहर की तोतरकलां स्वीपर बस्ती की सीमेंट से बनी सारी सड़कें न केवल सीधी हैं, बल्कि
शीशे सी चमक भी रही है. कूड़े का निशान नहीं. लोग घर के सामने की सड़क खुद बुहार रहे
हैं.
६५
साल के राममनोहर स्थानीय विधायक केदारनाथ शुक्ल से नाराज हैं. “बड़े लोग हैं, टाइम
नहीं.” पर वे कहते हैं कि भाजपा का जोर है.
स्वीपर
यूनियन के अध्यक्ष राजू भारती भी सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करके बनायी गयी इसी दलित
बस्ती में ही रहते हैं. वे कहते हैं कि भाजपा ने गरीबों की जितनी मदद की और किसीने
नहीं किया.
शहडोल
के एक होटल के आदिवासी वेटर को यह पता नहीं कि उसके विधान सभा क्षेत्र का नाम क्या
है या विधायक कौन हैं. पर उसे अच्छी तरह मालूम है कि २० किलोमीटर दूर उसके आदिवासी
गाँव में कमल ही जीतेगा.
लाख
टके का सवाल है कि दलित-आदिवासी और गरीब तबकों में इस जनाधार को क्या भाजपा भुना
पायेगी? या फिर विन्ध्य में उसकी सवर्ण लीडरशिप ही कहीं उसकी राह का रोड़ा तो नहीं
बन जाएगी, जैसा कि हमने गुढ़ और सीधी के सियासी सफ़र में देखा.
 |
Dainik Bhaskar 16 November 2018 |
Comments
Post a Comment
Thanks for your comment. It will be published shortly by the Editor.