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Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

मध्य प्रदेश: जाना कैलाश जोशी का, आना सखलेचा का

Kailash Joshi (Pic from Twitter)

VK Sakhlecha replaces Kailash Joshi in MP 

NK SINGH

भारत के संसदीय इतिहास मेँ ऐसा पहली दफा हुआ है कि कोई भूतपूर्व मुख्यमंत्री अपने शासन के ठीक बाद बनने वाले दूसरे मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल में शामिल हुआ हो। मध्यप्रदेश में हुई राजनीतिक उथल-पुथल में भूतपूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने अपने वरिष्ठतम सहयोगी वीरेन्द्र कुमार सखलेचा से अपनी कुर्सी बदल ली है. सखलेचा जोशी की जगह आ गये हैँ और जोशी सखलेचा की जगह.

एक मायने में भाग्यचक्र पूरी परिक्रमा कर चुका है. काफी पहले श्री सखलेचा विधान सभा में जनसंघ के नेता हुआ करते थे और जोशी उपनेता.

अपनी सिंहासन बत्तीसी (नये मंत्रिमंडल में शुरू में 32 सदस्य ही थे) पर आरूढ़ होते ही वीरेन्द्र कुमार सखलेचा ने जादू की छड़ी घुमायी और बकौल सूचना व प्रकाशन संचालनालंय के: “राज्य सचिवालय के गलियारों में घूमने वाली भीड़ नदारदं हो गयी. सभी मेजों पर अधिकारी व कर्मचारी मुस्तैदी से मौजूद थे. कैंटीन में कार्यालयीन समय के दौरान बनी रहनेवाली भीड़ भी आज नहीं थी. वल्लभ भवन में सफाई के स्तर में भी एकदम से परिवर्तन आया. कमरों-गलियारों मेँ पहले की तुलना में कहीं ज्यादा और पूरी सफाई थी.”

सखलेचा के गद्दीनशीन होते ही सूचना व प्रकाशन संचालनालय ने एक दिन में इस तरह के तीन प्रेसनोट जारी किये. वकालत से राजनीति में आने वाले 48 वर्षीय सखलेचा को नजदीक से जाननेवालों का कहना है कि ऐसे लटके-झटके सदा उनकी राजनीतिक कार्यशैली का हिस्सा रहे हैं.

इन लटके-झटकों को अगर छोड दें तो उनींदे मुख्यमंत्री कैलाश जोशी की जगह चाक-चौबंद व चुस्त सखलेचा के आ जाने से मध्य प्रदेश के मटमैले राजनीतिक कैनवास पर कोई नया रंग भरा जानेवाला नहीं है. इसलिए नहीं कि दोनों एक ही सामाजिक-आर्थिक ताकत का प्रतिनिधित्व करते हैं व दोनों के वर्ग-स्वार्थ समान हैं, बल्कि इसलिए कि पहले भी मितभाषी जोशी नाम के ही मुख्यमंत्री थे. प्रदेश में राज तो दरअसल सखलेचा का चलता था.

कैलाश जोशी की तुलना में मध्य प्रदेश के 12वें मुख्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा निसंदेह एक बेहतर प्रशासक हैं. विधान सभा में 15 वर्षों तक प्रतिपक्ष का सक्रिय नेतृत्व राज्यसभा की पांच साल की सदस्यता और दस वर्ष पहले बनी संविद सरकार में उप मुख्यमंत्री पद का अनुभव - ये सारी चीजें उनके पक्ष में जाती हैं.

पर उनके मंत्रिमंडल को शपथ लिये अभी जुम्मा-जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए हैं कि हवा में आवाजें तैरने लगी हैं -- सखलेचा कितने दिन टिकेंगे?

कैलाश जोशी के बीमार पड़ने तक उनके बारों में ऐसी बात नहीं सुनी जाती थी। उनकी दुर्बलता ही उनकी ताकत थी। हालाँकि उनके रीढ्हीन प्रशासन के आलोचक कम नहीं थे, खासकर समाजवादी, पर कभी भी किसी ने उनसे गद्दी छोड़ने को नहीं कहा। वजह साफ थी - सबका मालूम था कि जोशी गये तो उनकी जगह सखलेचा ही ले सकते हैं।

दूसरी तरफ सखलेचा की शक्ति ही उनकी दुर्बलता है। उनसे लोहा लेने को मुस्तैद राजनीतिक दुश्मनों की एक फौज खड़ी है। सही है कि उनका विकल्प ढूँढ पाने की विफलता की वजह से अधिकांश समाजवादियों ने नेता-पद के चुनाव में उनका साथ दिया, पर दोनों कितने दिन साथ चल पायेंगे, अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है। मंत्रिमंडल का जिस तरह से उन्होंने पुनर्गठन किया, उसने उनके आलोचकों की तादाद बढ़ा दी है.

प्रशासन के ढीले पड़ गये पुर्जों को कसने की बात सखलेचा बड़ी जोर-शोर से कर रहे थे और उम्मीद की जाती थी कि नया काबीना उनकी तरह ही स्वतः स्फूर्त व गतिमय होगा। पर जोशी मंत्रिमंडल में बहुत कम परिवर्तन किये गये. 39 में से 27 मंत्री नए मंत्रिमंडल में भी मॉजूद है । पर जिनको निकाल बाहर किया गया है, उनमें वे शामिल नहीं जिनकी अयोग्यता व नाकारापन जगजाहिर हो चुके थे।

इसके विपरीत बहिर्गत मंत्रियों में कम-से-कम एक, ओमप्रकाश रावल, ऐसे हैं, जिनकी योग्यता व ईमानदारी पर किसी को शक नहीं। उनका अपराध केवल यह था कि नेता पद के चुनाव में सखलेचा के खिलाफ प्रदत्त 25 मतों में एक उनका भी था । श्री रावल समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल के अनुयायी है। निकाले गये चार मंत्रियों में एक भी जनसंघ का नहीं।

सारे महत्वपूर्ण विभाग श्री सखलेचा ने खुद अपने पास और जनसंघ के विश्वासपात्र लोगों के पास रखे हैं. मुख़्यमंत्री बनने के पहले भी सखलेचा की इस बात के लिए आलोचना की जाती थी कि उनके हाथों में ढेर सारे विभाग हैं. पर इस बार तो हद ही हो गयी है। मुख्यमंत्री के हाथ में दस विभाग हैं – सारे महत्वपूर्ण।

उम्मीद की जाती है कि इनमें से दो-चार वे कैलाश जोशी को देंगे, जिन्हें स्वास्थ्य लाभ तक कोई विभाग आवंटित नहीं किया गया है। दूसरी तरफ कई मंत्रियों के विभागों को तोड़ कर उन्हें आधे विभाग का पूरा मंत्री बनाया गया है।

मंत्रिमंडल के गठन में और विभागों के बंटवारे में मंत्रियों की योग्यता से अधिक दूसरी बातों का खयाल रखा गया। मंत्रिमंडल पहले दो-स्तरीय था, अब उसे तीन-स्तरीय कर दिया गया है। संसदीय सचिवों की नयी कतार महज कुछ लोगों का तुष्ट करने के लिए बनायी गयी दिखती है।

नौ संसदीय साचवाँ मेँ पहला नाम अर्जुन सिंह घारु का है, जिन्होंने सखलेचा के खिलाफ हरिजन-आदिवासी विधायक मोर्चा की तरफ से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की थी पर चुनाव की रात को रहस्यमय ढंग से अपना नाम वापस ले लिया था. इस नये पद के निर्माण से मंत्रिमंडल की कुल सदस्य-संख्या बिना जरूरत बढ़ कर ४९ हो  गयी है.

इसी तरह कई मंत्रियों को, दिखता है, महज खुश करने के लिए काबीना पद दे दिये गये हों। उन्हें ऐसे विभाग मिले हैं जिनके लिए पूरे काबीना मंत्री की सेवाएं प्रायः जरूरी नहीं समझी जाती।

मसलन पवन दीवान सिर्फ जेल देखेंगे, याकूब रजवानी सिर्फ़ वक्‍फ बोर्ड संभालेंगे, प्रभुनारायण त्रिपाठी गृह विभाग में सिर्फ़ पुलिस का काम देखेंगे। शिक्षा को दो काबीना मंत्रियों के बीच बांट दिया गया है| एक काबीना मंत्री सिर्फ़ हरिजन कल्याण के लिए हैं और एक सिर्फ़ आदिवासी कल्याण के लिए। शहरी स्वायत् शासन के लिए एक मंत्री है, तो ग्राम पंचायत के लिए दूसरा!

जोड़-तोड़ की राजनीति में श्री सखलेचा माहिर हैं. और अपनी इस महारत का परिचय उन्होंने शपथ लेने के एक दिन बाद ही डे दिया, जब॑ समाजवादियों के दो गुट (भूतपूर्व प्रजा सोशलिस्टसंयुक्त
सोशलिस्ट) मंत्रिपद के लिए आपस में ही झगड़ते नजर आये।

समाजवादियों का एक प्रतिबद्ध तबका तो ऐसा है ही, जो सैधांतिक वजहों से सदा सखलेचा का विरोध करता रहेगा। जून में विधान सभा चुनाव के वक्‍त सखलेचा को टिकट दिए जाने का उसने यह कह कर विरोध किया था कि आपातकाल के दौरान सखलेचा की कांग्रेस से सांठगांठ थी। वे 19 में से 16 महीने जेल से बाहर रहे। 1976 में तत्कालीन गृहराज्य मंत्री ओम मेहता  के भोपाल आने पर उनकी अगवानी के लिए सखलेचा हवाई अड्डे पर मौजूद थे और दिन भर उन्होंने मेहता के साथ राजभवन में चर्चा की।

अगर इन तथ्यों के बावजूद जनसंघ के लोग उन्हें अपना नेता मानने को राजी हैं तो इसकी वजह यही हो सकती है कि आपातकाल के हम्माम में सभी नंगे थे। माफीनामा भर कर बाहर आनेवालों मेँ ज़्यादातर संघी थे।

कोई ताज्जुब नहीं कि जोशी-सरकार ने कहा था कि माफीनामे भरा करा मीसा से मुक्त होने वालों के नाम जाहिर करना जनहित में नहीं.” कई लोगों को शक है कि अगर ऐसी कोई सूची कभी निकाली गयी तो उसमें वर्तमान मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों के नाम भी शामिल होंगे ।

कैलाश जोशी राजनीतिक दांव-पेंच से परे सीधे-सादे आदमी थे। प्रदेश उन्हें सदा एक असफल, पर सज्जन, मुख्यमंत्री के रूप में याद करेगा. सखलेचा तिकड़मी हैं। पर उनका तिकड़म ही इन्हें ले डूबेगा।

Ravivar 12 February 1978


Ravivar 12 Feb 1078

Ravivar 12 Feb 1978




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