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Prajatantra 8 May2019 |
Bhopal, the new lab of Hindutva
NK SINGH
भोपाल चुनाव दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं की लड़ाई बन गया है. एक तरफ भाजपा
का हिन्दुत्व एजेंडा है. दूसरी तरफ गाँधीजी का सर्वधर्म समभाव है. एक तरफ राजनीति
का संघ ब्रांड भगवाकरण है. दूसरी तरफ धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा और गंगा-जमुनी तहजीब है.
राघोगढ़ किले में
ब्राह्म मुहूर्त में ही भजन-कीर्तन शुरू हो जाते थे. “दिग्विजय सिंहजी की मां बड़ी
धार्मिक प्रवृति की थीं,” कांग्रेस नेता अजय सिंह याद करते हैं, “वे तड़के उठकर
पूजा-पाठ चालू कर देती थीं.” उनकी पत्नी दिग्विजय सिंह की रिश्तेदार हैं और उनके
बचपन का एक हिस्सा राघोगढ़ में बीता था. उसीसे उन्होंने किले के ये किस्से सुने है.
२०१७ में दिग्गी
राजा ने जब नर्मदा की ३,३०० किलोमीटर की पैदल यात्रा का ऐलान किया तो मैं अजय सिंह
के पास यह समझने के लिए गया था कि इस यात्रा का मक्सद राजनीतिक है या धार्मिक.
मेरा दिल मानने को तैयार नहीं था कि कोई नेता इस तरह ६-७ महीने राजनीति से पूरी
तरह मुक्त होकर निस्वार्थ भाव से ऐसी कठिन तीर्थयात्रा पर जायेगा. उस दौरान
उन्होंने ये किस्से सुनाते हुए कहा, “लगता हैं दिग्विजय सिंह में ये संस्कार अपनी
मां से ही आये हैं.”
जो भी लोग दिग्विजय
सिंह को थोडा करीब से जानते हैं, उन्हें यह मालूम है कि कि व्यक्तिगत जीवन में
सिंह निहायत धर्मभीरु और कर्मकांड वाले सनातनी हिन्दू हैं. वे कोई उपवास नहीं छोड़ते
और सारे पर्व-त्योहारों पर तीर्थों के चक्कर काटते हैं.
मुख्यमंत्री रहते
हुए तो एक दफा तो वे पूरी कैबिनेट को लेकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा पर गए थे.
लौटते में मंत्रियों के पैरों में छाले थे. किसी भी साधू के सामने पड जाने के बाद
उनके हाथ सीधे महात्माजी के चरणों की तरफ जाते हैं. पिछले साल ही उन्होंने ३,३०० किलोमीटर की पैदल
नर्मदा यात्रा पूरी की. वैसे, धर्म उनके लिए निजी आस्था का विषय है.
ऐसे व्यक्ति को भोपाल चुनाव में अपने आप को हिन्दू साबित करना पड़ रहा है.
कंप्यूटर बाबा जैसे चरित्रों की मदद लेनी पड़ रही है. उन्हें मंदिर-मंदिर घुमाने के बाद अब उनके समर्थक
घरों पर जाकर नर्मदा जल का प्रसाद पहुंचा रहे हैं.
जाहिर है ऐसा कर वे भाजपा और
संघ परिवार के इस आरोप को नकारने की कोशिश कर रहे हैं कि वे हिन्दू-विरोधी हैं. साम्प्रदायिक
आधार पर वोटों का बंटवारा सिंह को मंहगा पड़ सकता है. भोपाल के 19.5 लाख मतदाताओं
में से लगभग एक चौथाई अल्पसंख्यक समुदाय से हैं.
भोपाल के मैदान में
उनका मुकाबला प्रज्ञा सिंह ठाकुर से है. भाजपा ने काफी सोच-समझ कर ठाकुर को एक खास
एजेंडा के तहत चुना है. ऐसा नहीं कि भाजपा के
पास दिग्विजय सिंह से मुकाबले के लिए योग्य उम्मीदवारों की कमी थी.
उसके पास
लोकप्रिय शिवराज सिंह चौहान थे, जिन्होंने १३ वर्षों तक मध्य प्रदेश के
मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया था.
करिश्माई व्यक्तित्व वाली उमा भारती थीं,
जिन्होंने १५ साल पहले दिग्विजय राज का खात्मा किया था.
भूतपूर्व सीएम बाबूलाल गौर
थे, जिनके खाते में लगातार दस बार भोपाल से विधायक बनने का यश दर्ज है, हर दफा बढ़े
हुए मार्जिन के साथ!
पर इस सुरक्षित समझी
जाने वाली सीट के लिए भाजपा पार्टी के बाहर से उम्मीदवार लायी. लाल कालीन बिछाकर प्रज्ञा
ठाकुर का भाजपा में प्रवेश कराया गया और कुछ घंटों के भीतर ही चांदी की तश्तरी में
टिकट पेश किया गया. ठाकुर २००८ के मालेगांव बम धमाकों की आरोपी हैं, जिसमें ६ लोग मारे गए थे और १०१ घायल हुए थे.
ऐसे देश
में जहाँ १,७६५ मौजूदा सांसदों और विधायकों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हों, यह कोई
बड़ी बात नहीं. पर आतंक के किसी आरोपी को पहली बार मुख्यधारा की किसी पार्टी ने
टिकट देकर एक वैचारिक बहस छेडी है.
इसे हमें स्वीकार
करना पड़ेगा कि ठाकुर एक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह विचारधारा अभी तक
भले ही हाशिए पर रही हो पर हाल के वर्षों में दक्षिणपंथ के प्रति उभरते रुझान के
माहौल में राजनीति की मुख्यधारा में प्रतिष्ठा हासिल कर चुकी है। केन्द्र सरकार के
कुछ मंत्रियों को याद करें। गिरिराज सिंह मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने की
सलाह दे चुके हैं। साध्वी निरंजन ज्योति लोगों को रामजादो और हरामज़ादों में
फ़र्क़ करने का नारा बुलंद कर चुकी हैं।
साधू का चोला,
रुद्राक्ष की मालाएं, चन्दन का टीका और आक्रामक तेवर धारण किये 49-वर्षीय ठाकुर भाजपा
में उस भगवा श्रृंखला की कड़ी हैं जहाँ से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ, केन्द्रीय मंत्री उमा भारती और सांसद साक्षी महाराज जैसे नेता आते हैं.
लड़कों की तरह बाल रखने वाली और स्केचर के जूते पहनने वाली तेज-तर्रार ठाकुर चम्बल
घाटी के भिंड से हैं, जो बीहड़ों, बागियों और बंदूकों की संस्कृति के लिए जाना जाता
है. वे शुरुआत में आरएसएस के छात्र संगठन विद्यार्थी परिषद से जुडी थीं. पर बाद
में वे एक ज्यादा रेडिकल हिन्दू संगठन से जुड़ गयीं.
महाराष्ट्र पुलिस के
आतंकवाद विरोधी दस्ते ने उन्हें २००८ के मालेगांव ब्लास्ट के सिलसिले में गिरफ्तार
किया. वे नौ साल जेल में रहीं. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद २०१५ में
राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) ने उनके ऊपर से मुकदमा हटाने की पेशकश की पर
अदालत ने उन्हें बरी करने से मना कर दिया. सरकारी वकील ने चार साल पहले इस केस से
यह कहते हुए हाथ खींच लिए थे कि उनके ऊपर मुक़दमे को कमजोर बनने के लिए दवाब डाला
जा रहा था.
मध्य प्रदेश की
भाजपा सरकार ने भी २००८ में देवास में भूतपूर्व आरएसएस एक्टिविस्ट सुनील जोशी की
सनसनीखेज हत्या के सिलसिले में ठाकुर को गिरफ्तार किया. पर पुलिस उस आरोप को अदालत
में साबित नहीं कर पाई और मामले के सारे आठों आरोपी २०१७ में बरी हो गए. सुनील जोशी हत्याकांड की गुत्थी आजतक एक रहस्य
है.
भाजपा का आरोप है कि
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने ठाकुर को झूठे मुकदमों में फंसाया था. प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी के मुताबिक भगवा आतंकवाद का झूठ गढ़ने वालों के लिए साध्वी की
उम्मीदवारी एक प्रतीकात्मक जवाब है. भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तो बिना
लाग-लपेट के बोल चुके हैं: “कांग्रेस ने साबित करने की कोशिश की कि हिन्दू
आतंकवादी है. हिन्दू अब इसका जवाब वोट से देंगे.” खुद ठाकुर इस चुनाव को
‘धर्मयुद्ध’ बता चुकी हैं.
अपने बैठकों में
ठाकुर गिरफ़्तारी के बाद अपने ऊपर हुए ‘अत्याचारों’ का दिल दहलाने वाला चित्रण करती
हैं. किस तरह उन्हें निर्वस्त्र कर उल्टा लटकाकर पिटाई की जाती थी और “बेहोश होने
तक” टार्चर किया जाता था. उनका दावा है कि इस अमानवीय व्यव्हार की वजह से उन्हें
कैंसर हो गया था जो बाद में गौमूत्र चिकित्सा से ठीक हो गया है.
जैसी उम्मीद की जाती थी, उनके
आने भर से चुनाव एक खास दिशा में जाने लगा. उन्होंने पहला हमला मुंबई एटीएस चीफ
हेमंत करकरे पर बोला, जिन्होंने मालेगांव आतंकवादी हमलों के सिलसिले में ठाकुर और
उनके कुछ सहयोगियों को गिरफ्तार किया था. करकरे बाद में मुंबई के २००८ के
पाकिस्तानी आतंकवादी हमले में मारे गए. साध्वी का कहना था कि करकरे उनके ‘श्राप’
से मरे क्योंकि गिरफ्तारी के बाद उन्होंने ठाकुर को टार्चर किया था.
भारत के सर्वोच्च
शांतिकालीन पुरस्कार अशोक चक्र विजेता करकरे के बारे में ऐसे बयान से देश सकते में
आ गया. एक दिन बाद ही भाजपा उम्मीदवार ने कहा कि बाबरी मस्जिद पर चढ़कर उन्होंने
खुद ढांचे को तोडा था और देश पर लगे कलंक को मिटा दिया था.
उनके ऐसे भड़काऊ
बयानों के बाद जब चुनाव आयोग ने उनके चुनाव प्रचार पर पाबन्दी लगायी तो वे अपने राजनीतिक
कार्यकर्ताओं के साथ विभिन्न मंदिरों में जाकर लाल चुनरी ओढ़े झूम-झूमकर भजन-कीर्तन
करने लगीं. उन्हें अच्छी तरज मालूम है कि चुनाव को किस दिशा
में ले जाना है.
वास्तव में कांग्रेस ने भोपाल सीट
से दिग्विजय सिंह को खड़ा कर राजनीतिक दुस्साहस का परिचय दिया है. भोपाल १९८९ से ही
भाजपा का अभेद्य किला रहा है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि छह महीने पहले हुए
चुनाव में कांग्रेस को भले ही सरकार मिली, पर बीजेपी को उससे ज्यादा वोट मिले थे.
भोपाल से सिंह की उम्मीदवारी भाजपा को ललकारने जैसा था क्योंकि उनकी छवि भाजपा-संघ के कट्टर विरोधी की रही है. उन्होंने
कई दफा संघ परिवार पर आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के भी आरोप लगाये हैं.
चुनौती को कबूल करते हुए भाजपा ने उतनी ही आक्रामकता से दिग्विजय सिंह के खिलाफ हिंदुत्व के एक कट्टर
चेहरे को खड़ा किया है. सिंह हमेशा से संघ के निशाने पर रहे हैं. प्रज्ञा ठाकुर को
खड़ा कर उसने अपना एजेंडा साफ़ कर दिया है.
आज पूरे देश की नजर
भोपाल के चुनाव पर है. यह देश के सबसे चर्चित और दिलचस्प चुनावों में से एक बन
चुका है। दो विचारधाराओं की ज़ोरआज़माइश में सिंह को कांग्रेस के बाहर से भी
समर्थन मिल रहा है. इसमें कम्युनिस्ट पार्टियों के अलावा सारी प्रगतिशील जमात
शामिल है.
एक तरफ हिंदुत्व की ध्वज वाहक ठाकुर हैं जो मानती हैं कि यह चुनाव
‘धर्मयुद्ध’ है. दूसरी तरफ गाँधीवादी धर्मनिरपेक्षता,
भाईचारा और गंगा-जमुनी तहजीब की पताका थामे सिंह हैं. फैसला उनके वोटरों को करना
है.
Prajatantra, 8 May 2019
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