NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

बेडरूम और बाथरूम में मुख्यमंत्रियों से मुलाक़ात


Meeting CMs in their bedroom and washrooms

NK SINGH

एनके सिंह

यह किस्सा भैरों बाबा के बारे में है. मतलब अपने भैरों सिंह शेखावत, जो अरसे तक राजस्थान के मुख्य मंत्री रहे और बाद में भारत के उपराष्ट्रपति बने. भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक. उनके जैसे राजनेता बिरले होते हैं. 

वे भले भाजपा के नेता थे, पर उनके दोस्त अपनी पार्टी में कम और दूसरी पार्टियों में ज्यादा थे. यारबाज आदमी थे. आम लोगों के लिए सर्व सुलभ. लोगों से उनका जीवंत संपर्क किसी भी जमीनी नेता के लिए रश्क का विषय हो सकता है.

अख़बारनवीसी की अपनी लम्बी पारी के दौरान मैं विभिन्न राज्य के दर्ज़नों मुख्य मंत्रियों से मिल चुका हूँ. पर भैरों बाबा जैसा दूसरा कोई नहीं मिला, कभी भी. उनसे पहली मुलाक़ात हमेशा याद रहेगी. 

मैं इंडिया टुडे में काम करता था और ९० के दशक की शुरुआत में भाजपा राज्यों के काम-काज को नजदीक से देखने के लिए ऐसे सारे राज्यों का दौरा कर रहा था. पहले पड़ाव में जयपुर पहुंचा और फ़ोन पर मुख्य मंत्री से मुलाक़ात का समय लिया.

मेरे पास सुबह साढ़े आठ बजे सीएम हाउस पहुँचने का मैसेज आया और साथ में सुबह के जलपान का निमंत्रण भी. मुख्य मंत्रियों के साथ अपने पूर्व अनुभव को देखते हुए मैं थोडा पहले ही बंगले पर पहुँच गया. 

उन दिनों मैं भोपाल में रहता था जहाँ के सीएम सुन्दरलाल पटवा से मिलना या फ़ोन पर बात करना इतना कठिन होता था अक्सर स्टोरी लिख लेने के बाद अपॉइंटमेंट मिला करता था. 

सीएम हाउस जाओ तो जगह-जगह गाड़ी रोकी जाती थी. दूर तक पैदल चलने और पुलिस की टाइट सिक्यूरिटी से गुजरने के बाद, पीआरओ और नाना प्रकार के सहायकों के मार्फ़त गुजरने के बाद पटवाजी के दर्शन होते थे.

एक टैक्सी पर सवार मैं भैरों सिंह शेखावत के बंगले पहुंचा. मेरा अनुभव रहा है कि टैक्सी वाला नंबर प्लेट  देखकर आम तौर पर पुलिस वाले आगंतुक को थोड़ी हिकारत से देखते हैं. 

सिविल लाइन्स में बंगले के गेट पर दो-तीन पुलिस वाले खड़े थे. मैंने उन्हें बताया कि सीएम से मिलना है तो उन्होंने बिना किसी पूछताछ के गाडी अन्दर जाने दी.

बंगले की शुरुआत में एक कतार से दफ्तरी किस्म के कमरे नजर आये, तो वहां उतर गया. सुबह-सुबह दफ्तर पूरी तरह खुले नहीं थे. एक-दो कमरों में कुछ अफसरनुमा कर्मचारी और कुछ कर्मचारीनुमा अफसर नजर आये. 

मैंने उन्हें बताया कि मुझे साढ़े आठ का टाइम मिला है, तो उन्होंने मुझे सामने बंगले की तरफ जाने कह दिया. फिर वही माजरा! कोई रोक-टोक नहीं, नाम तक नहीं पूछा गया, बुलाया है तो जाओ और मिल लो!

मैं उस विशाल बंगले के बरामदे पर पहुँच कर थोड़ी देर इंतजार करता रहा कि कोई बंदा दिखे तो सीएम साहब तक सन्देश भेजूं. कोई नहीं दिखा तो एक कमरे का दरवाजा खोलकर उसमें घुस गया. वह ड्राइंग रूम निकला. पूरी तरह खाली. 

थोड़ी देर बाद एक घरेलू कर्मचारी दिखा. उसने कहा, आखिरी कमरे में चले जाईये. मैंने सोचा वह मुलाकात-कक्ष होगा. बिना रोक-टोक उस कमरे तक पहुँच गया. दरवाजे आधे खुले थे. अन्दर घुसा तो शेखावत दिखे.

पर यह क्या, मुख्य मंत्री तो अपनी धोती बाँध रहे थे! बदन पर केवल बनियान था. कपड़े का बना पुरानी डिजाईन का आधी बांह वाला बनियान जिसमें एक जेब सिली हुई थी. 

साफ़ नजर आ रहा था वे अभी-अभी नहाकर बाथरूम से निकलने के बाद कपडे पहन रहे थे. मुझे लगा मैं गलती से उनके बेडरूम में घुस गया हूँ. हडबडाकर बाहर निकलने लगा तो उन्होंने मुझे रोका.

उनके साथ एक और सज्जन खड़े थे. राजस्थान के किसी जिले से आये नेता थे. भैरों सिंह कपडे पहनने के साथ-साथ उनसे किसी घटना की जानकारी ले रहे थे. 

अपनी पहली मुलाक़ात की वजह से मैं थोड़े संकोच में था, पर उन्होंने कुरते में सिर डालते हुए मुझ से इस तरह बात चालू जैसे मुझे अरसे से जानते हों और रोज मेरे सामने अपने वस्त्र बदलते रहे हों.    

भैरों सिंह अपनी जिन्दगी एक खुली किताब की तरह जीते थे. वे आम लोगों के लिए इतने सुलभ होते थे कि प्रदेश में हो रही किसी भी घटना की जानकारी उनके पास सबसे पहले पहुँच जाती थी. 

एक दफा मैं उनके साथ चुनाव यात्रा पर था जब ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख का फ़ोन आया. उन्होंने मुख्यमंत्री को मेवाड़ के किसी कस्बे में सांप्रदायिक घटना के बारे में जानकारी दी. 

शेखावत ने उनकी बात पूरी सुनी और उसके बाद उस पुलिस अफसर को कहा कि वह अपनी जानकारी दुरुस्त कर ले. घटना स्थल पर दो नहीं, चार व्यक्ति मौजूद थे. इसके पह्ले उनके पास एक कार्यकर्त्ता का फ़ोन आ चुका था, जिसने उन्हें पूरी जानकारी दे दी थी. 

तो, ऐसे थे हमारे भैरों बाबा.  


मोतीलाल वोरा

नेता लोगों से अलग-थलग रहे तो मुसीबत, और बहुत सुलभ हो जाये तो भी मुसीबत. 

कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा की गिनती देश के सर्वाधिक सज्जन राजनेताओं में होती है. लोग कभी-कभार उनकी भलमनसाहत का फायदा भी उठा लेते हैं. ८० के दशक में जब वे नए-नए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तबका किस्सा है.

मैं उनसे मिलने गया था. उनके दफ्तर में मेरे अलावा कई और लोग बैठे थे. एक-एक कर उन्हें वे निबटा रहे थे. किसीको कोने में ले जाते तो किसीको अपनी मेज के सामने बुला लेते. कई दफा खुद कुर्सी से उठकर सोफे पर पास आ जाते. 

तभी एक कांग्रेसी नेता अन्दर घुस आये. वे जल्दी में थे और उन्हें कोई गोपनीय बात करनी थी, जो वे दुसरे लोगों के सामने नहीं करना चाहते थे. वे वोराजी के कान में फुसफुसाए.

वोराजी कुर्सी से उठे और कमरे में खुलने वाले बाथरूम का दरवाजा खोलकर उन्हें अन्दर ले गए ताकि वे अपनी गोपनीय बात और भी गोपनीय ढंग से कर सकें.

Prajatantra 16 December 2018

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