NK's Post

Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

जब एक जनरल चुनाव लड़ता है


When a General fights an election


NK SINGH


छपे हुए प्रोग्राम के मुताबिक़ सुबह ७ बजकर ५५ मिनट पर चित्तौरगढ़ से भाजपा उम्मीदवार जसवंत सिंह का क़ाफ़िला चुनाव प्रचार के लिए रवाना होनेवाला था।

और ठीक 7.55 बजे अपने सुपरिचित सफारी सूट में उम्मीदवार महोदय उस दिन का चुनाव अभियान शुरू करने के लिए चित्तौर के सरकारी सर्किट हाउस में अपने कमरे से बाहर आए।

बरामदे में उस वक़्त केवल पांच लोग  थे। मैं था, एक फोटोग्राफर थे, जसवंत सिंह की गाड़ी के ड्राइवर थे और चुनाव इंतज़ाम में लगे भाजपा के दो कार्यकर्ता थे।

सिंह ने पूछा, "और लोग कहां हैं?”

"वे आ रहे हैं," कार्यकर्ता चिंतित नज़र आ रहे थे।

"लेकिन हमें 7.55 पर निकलना था। कोई बात नहीं, हमें निकलना चाहिए। "उम्मीदवार ने कहा।

जसवंत सिंह ने एक चौथाई सदी से भी पहले फ़ौज की नौकरी  छोड़ दी थी.  लेकिन फ़ौज ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा। वह अपनी राजनीतिक लड़ाइयाँ फ़ौजी तरीक़ों से लड़ते थे।

हताश पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की। "हम गांवों के रास्ते ठीक से नहीं जानते हैं। जो लोग आने वाले हैं, उन्हें मालूम है। थोड़ी देर और रुक जाएँ।"

जसवंत सिंह चित्तौड़गढ़ के लिए नए थे। वह जोधपुर से  लोकसभा सदस्य थे, जहां उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हराकर ख्याति अर्जित की थी. चित्तौड़गढ़ उनके  घर के इलाके से बहुत दूर था। लेकिन राजनीति के चतुर खिलाड़ी भैरों सिंह शेखावत को अपने जनरल पर बहुत भरोसा था। (बाद में जसवंत सिंह ने देश के दूसरे कोने दार्जिलिंग से भी चुनाव लड़ा और जीता।)

1 99 1 के लोकसभा चुनाव में शेखावत ने कांग्रेसी उम्मीदवार मेवाड़ के पूर्व महाराणा महेंद्र सिंह के खिलाफ चित्तौड़गढ़ से जसवंत सिंह को मैदान में उतारा था। ठाकुर बनाम ठाकुर का मुक़ाबला था। शेखावत महाराणा को सबक सिखाना चाहते थे क्योंकि वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। महाराणा को कांग्रेस में लाने वाले भी भैरों सिंह ही थे।

जसवंत सिंह इस क्षेत्र में नए तो थे। लेकिन वे स्थानीय कार्यकर्ताओं को अनदेखा कर अकेले निकल चले क्योंकि "हमें समय की पाबंदी सिखनी चाहिए।“
मज़ेदार सीन था। उम्मीदवार ड्राइवर के साथ अपनी कार में अकेला था। दो कार्यकर्ता एक टूटे फूटे स्कूटर पर उनका पीछा कर रहे थे। साथ में पुलिस का एक वाहन था। किया। इन सबके पीछे हमारी कार थी।

जब हम गांव की चौपाल तक पहुंचे, जहां से अभियान शुरू करना था, वहाँ चिड़ियाँ का बच्चा भी नहीं था। पार्टी वर्कर गांव के लोगों को इकट्ठा करने गए। हम एक मंदिर के सामने बैठ आधा घंटा तक उनका इंतजार करते रहे। जब तक भाषण शुरू हुआ, पार्टी वर्कर की बाक़ी टीम, जिसे अभियान के लिए जसवंत सिंह के साथ जाना था, भी पहुंच गयी थी।

काल चक्र ने 2018 में अपना रूख बदल लिया है। इस बार जसवंत सिंह के बेटे पूर्व भाजपा सांसद मानवेंद्र सिंह झालरापाटन से कांग्रेस के टिकट पर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनौती दे रहे हैं। मानवेन्द्र पहले इंडीयन एक्सप्रेस में डिफ़ेंस कॉरेस्पोंडेंट थे। उन्होंने एक फ़ौजी के  रूप में कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया था। जाहिर है मानवेंद्र 2014 के चुनावों में बीजेपी का टिकट कटने से हताश अपने पिता का बदला लेने की कोशिश कर रहे हैं।

रहस्यमय सूटकेस वाला आदमी

हर चुनाव राजनीतिक संवाददाताओं के लिए सीखने का एक मौक़ा होता है जब वे नेताओं की कारगुजरियों को नज़दीक से देखते हैं। टीएन शेषन के पूर्व युग में लोकतांत्रिक मानदंडों के उल्लंघन के चौंकाने वाले उदाहरण सामने आया करते थे।

1 9 80 के लोकसभा चुनाव के दौरान भोपाल में एआईसीसी के पदाधिकारी चौधरी रामसेवक सत्ता के गलियारों में प्रकट हुए। कांग्रेस पिछले तीन वर्षों से सत्ता से बाहर थी। फंड की भयंकर कमी थी। ऐसे में फुसफुसाहट चल रही थी कि चौधरी साहब इलेक्शन फ़ंड लेकर आए हैं।

मैं चुनाव कवरेज के लिए छिंदवाड़ा जाने की योजना बना रहा था। छिंदवाड़ा का महत्व यह था कि वह मध्यप्रदेश की एकमात्र लोकसभा सीट थी जहाँ से कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद पार्टी १९७७ में चुनाव जीती थी। चौधरी साहेब उसी तरफ़ जा रहे थे। उन्होंने मुझे यात्रा पर साथ ले जाने की पेशकश की।

तय दिन मैं सर्किट हाउस में उनके कमरे में पहुंचा। दरवाज़ा खटखटा कर मैं अंदर घुस गया। मुझे देखकर सकते में आए चौधरी साहेब ने कमरे के बीच में फर्श पर पड़े विशाल सूटकेस को फुर्ती से बंद किया। फिर उन्होंने सावधानी से उसके ताले बंद किए। वह बड़ा सूट्केस सामान की  अधिकता  से फूल कर भारी हो रहा था। चौधरी साहब का एक ब्रीफ़केस और अन्य व्यक्तिगत सामान अंदर ड्रेसिंग रूम में पड़े थे।

उस यात्रा के दौरान चौधरी रामसेवक ने उस सूटकेस को अपनी नज़र से ओझल होने  की इजाजत नहीं दी। डिनर के समहम तामिया रेस्ट हाउस पहुंचे, जहां अपने समय के एक शीर्ष कांग्रेस नेता, पूर्व सांसद नीतीराज सिंह मिले। सभी सामान कार से लाए गए और रेस्ट हाउस के एक कमरे में गायब हो गए। एक घंटे बाद जब हम छिंदवाड़ा के लिए आगे निकले तो गाड़ी मेंसामान वापस लोड किया गया था – पर वह रहस्यमय सूटकेस उसमें शामिल नहीं था।

Prajatantra, 25 November 2018

Updated 2 Dec & 7 Dec 2018

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