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Ordinance to restore Bhopal gas victims' property

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NK SINGH Bhopal: The Madhya Pradesh Government on Thursday promulgated an ordinance for the restoration of moveable property sold by some people while fleeing Bhopal in panic following the gas leakage. The ordinance covers any transaction made by a person residing within the limits of the municipal corporation of Bhopal and specifies the period of the transaction as December 3 to December 24, 1984,  Any person who sold the moveable property within the specified period for a consideration which he feels was not commensurate with the prevailing market price may apply to the competent authority to be appointed by the state Government for declaring the transaction of sale to be void.  The applicant will furnish in his application the name and address of the purchaser, details of the moveable property sold, consideration received, the date and place of sale and any other particular which may be required.  The competent authority, on receipt of such an application, will conduct...

एक राजनेता की राजशाही पदयात्रा


A politician on a princely padyatra

NK SINGH

एक लम्बी यात्रा के बाद शिवपुरी के शाही गेस्ट हाउस के अपने कमरे में हम अभी तरो-ताज़ा हो ही रहे थे कि पगड़ी धारी एक अटेंडेंट बड़ी अदब के साथ कमरे में आया. उसके हाथ में चांदी की एक ट्रे थी. उसमें स्कॉच व्हिस्की की एक बोतल, आइस बकेट, सोडा निकालने का एक ख़ूबसूरत साइफ़न और कुछ तश्तरियों में खाने की सामग्री थी। 

जब उसने हमारे सामने की टेबल पर क्रिस्टल के तीन नक़्क़ाशीदार ग्लास रखे, तो हम चौंक गए। कमरे में हम दो ही लोग थे। मैं था और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के जीवी कृष्णन थे। मैं उन दिनों इंडियन एक्सप्रेस में काम करता था.

अटेंडेंट हमारी आँखों में तैर रही जिज्ञासा समझ गया. उसने मेज पर सामग्री सजाते हुए ऐलान किया, “महाराज साहब आ रहे हैं.” अपना काम करके उसने झुक कर अभिवादन किया किया और कमरे से चला गया.

हम माधवराव सिंधिया के मेहमान थे. वे ग्वालियर राजघराने के वारिस होने के अलावा गुना से कांग्रेस के सांसद थे. वे अपने लोक सभा क्षेत्र की पदयात्रा पर निकलने वाले थे ताकि अपने इलाके की समस्याओं से रु-ब-रु हो सकें. उसीकी कवरेज के लिए उन्होंने हमें आमंत्रित किया था. 

हमें ग्वालियर राजघराने के ही गेस्ट हाउस में ठहराया गया था जो शिवपुरी में उनके पूर्वजों की याद में बनी मनमोहक छत्री के ठीक बगल में है. सिंधिया भी उसी गेस्ट हाउस में रुके थे.

थोड़ी ही देर में सिंधिया हमारे कमरे में आये. अभिवादन का आदान-प्रदान होने के बाद वे अपनी पदयात्रा के बारे में हमें बताने लगे. उन्होंने हमें यह भी बताया कि ८० साल पहले उनके दादा माधवराव सिंधिया भी घोड़े पर सवार होकर अपने साम्राज्य का दौरा करने और प्रजाजनों का हाल-चाल पूछने निकले थे. 

हमारा पहला पैग ख़त्म हो चुका था. उन्होंने हमसे कहा कि बाहर गेस्ट हाउस के आँगन में ढेर सारे मेहमान उनका इंतज़ार कर रहे हैं और अब वे उनसे मिलने जा रहे है. उन्होंने हमसे विदा ली.

जैसे ही महाराज बाहर निकले, अटेंडेंट वापस हमारे कमरे में आया, जैसे इंतज़ार में ही बैठा हो. उसने उसी ट्रे में बोतल वापस रखी, बर्फ की बाल्टी और साइफ़न रखा, खाली ग्लास उठाये, झुककर अभिवादन किया और कमरे से बाहर चला गया. 

उसने एक बार भी हमसे पूछने की जहमत नहीं उठाई. जाहिर था, वह सारी सामग्री जिसके लिए हमारे कमरे में लायी गयी थी, उसके जाते के साथ ही उठा ली गयी. शायद यह उसके लिए रोजमर्रा की बात थी.

फरबरी १९८४ के इस किस्से का उपसंहार भी जोरदार है.

अगले दिन हम सिंधिया के साथ पदयात्रा पर निकले. इसमें शक नहीं कि यात्रा शाही थी. महाराज अपने प्रशंसकों और पिछलग्गुओं से घिरे थे, जय-जयकार हो रही थी. बैंड-बाजे का भी इंतजाम था. पैलेस का एक लश्कर आगे-आगे चल रहा था, जहाँ सारी सुविधाओं से  युक्त तम्बू गाड़कर रात को टहरने का इंतजाम किया जा रहा था. 

अख़बारों के रिपोर्टरों की एक फौज थी, टीवी के कैमरामैन थे और आने वाली पीढ़ियों के लिए इस ऐतिहासिक घटना की वीडियोग्राफी की जा रही थी. रोज़ शाम जहाँ सिंधिया का तम्बू गड़ता था, वहीँ एक खुला दरबार लगता था, जिसमें जिले के अफसरों की मौजूदगी में सांसद महोदय मौके पर ही लोगों की समस्याएं सुलझाते थे. 

यह जलसा अगले एक सप्ताह में सात विधान सभाओं क्षेत्रों का दौरा करने वाला था. लन्दन से आई सन्डे टाइम्स की एक संवाददाता को सिंधिया बता रहे थे: “हमारा साम्राज्य २६,००० वर्ग किलोमीटर में फैला था, जो आकार में ग्रीस से भी बड़ा था.”

शाम को थके-हारे जब हम लौटे तो शिवपुरी के उस गेस्ट हाउस के कमरे में पलंग के पास की टेबल पर व्हिस्की की एक बोतल रखी थी -- इस दफा भारत में बनी व्हिस्की.

कहने की जरूरत नहीं कि वह बोतल नहीं खोली गयी.

वीआईपी बनने के गुर

माधवराव सिंधिया से पहली मुलाक़ात हमेशा याद रहेगी. १९७९ का साल था. जनता सरकार का पतन हो चुका था और लोक सभा के चुनाव की तैयारी चल रही थी. दफ्तर में – तब मैं इंडियन एक्सप्रेस के लिए काम करता था – फ़ोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ से आवाज आई, “क्या आप हिज हाइनेस माधवराव सिंधिया से मिलना पसंद करेंगे?”

सिंधिया तब केवल ३४ साल थे लेकिन मध्यप्रदेश के सबसे चर्चित राजनीतिक चेहरों में उनका शुमार होने लगा था. २६ साल की उम्र में ही वे लोक सभा का चुनाव जीत चुके थे. 

उनकी मां विजया राजे सिंधिया जनसंघ की नेता थी और उनके प्रभाव में १९७२ का अपना पहला चुनाव उन्होंने जनसंघ के टिकट पर लड़ा था. 

१९७५ में इमरजेंसी लगने के बाद कांग्रेसी सरकार ने उनकी मां को जेल में डाल दिया था और उन दिनों माधवराव लन्दन चले गए थे.

१९७७ में इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे. जनता पार्टी की लहर के बावजूद उन्होंने जनता उम्मीवार गुरबक्श सिंह ढिल्लों को ७६,००० के भारी बहुमत से हराया था. कर्नल ढिल्लों आजाद हिन्द फौज में नेताजी के सहयोगी थे. 

ढिल्लों के हार की एक वजह यह थी कि जनता पार्टी की नेता होने के वाबजूद राजमाता ने अपने बेटे के खिलाफ प्रचार नहीं किया था. यह मिर्च-मसाले से भरपूर एक राजनीतिक थ्रिलर था, जिसे शायद ही कोई रिपोर्टर छोड़ना चाहता.

नीयत समय पर मैं सिंधिया से मिलने भोपाल में यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाउस पहुंचा. सिंधिया वहीँ रुके थे. गेस्ट हाउस में घुसते के साथ ही मैं चौंक गया. लाउन्ज खचा-खच भरा था. पता चला कि सब महाराज से मिलने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे. मुझे कहा गया कि भारी भीड़ की वजह से मेरा अपॉइंटमेंट आधा घंटे लेट हो गया है. 

लाउन्ज में बैठे-बैठे और यूनियन कार्बाइड की चाय पीते-पीते उस इंतजार के दौरान साफ़ दिख रहा था वहां बैठे लोगों में ज्यादातर वैसे ही थे जिन्हे यह कहकर बुलाया गया था, “क्या आप हिज हाइनेस से मिलना पसंद करेंगे?”

पत्रकारिता जीवन का ककहरा सिखाती है. उस दिन मैंने सीखा वीआईपी कैसे बने! सब करो, पर नेताओं की बात पर भरोसा मत करो.

nksexpress@gmail.com



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