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Ordinance to restore Bhopal gas victims' property

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NK SINGH Bhopal: The Madhya Pradesh Government on Thursday promulgated an ordinance for the restoration of moveable property sold by some people while fleeing Bhopal in panic following the gas leakage. The ordinance covers any transaction made by a person residing within the limits of the municipal corporation of Bhopal and specifies the period of the transaction as December 3 to December 24, 1984,  Any person who sold the moveable property within the specified period for a consideration which he feels was not commensurate with the prevailing market price may apply to the competent authority to be appointed by the state Government for declaring the transaction of sale to be void.  The applicant will furnish in his application the name and address of the purchaser, details of the moveable property sold, consideration received, the date and place of sale and any other particular which may be required.  The competent authority, on receipt of such an application, will conduct...

भोजन हासिल करने के नुस्खे




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How to share a royal meal

NK SINGH

माधवराव सिंधिया मध्यप्रदेश के सर्वाधिक आकर्षक और ग्लेमरस राजनीतिक हस्तियों में से एक थे। ग्वालियर के पूर्व राज परिवार का यह वंशज चमकीली आंखों, चुम्बकीय व्यक्तित्व व सहज मुस्कान के साथ-साथ अपनी नफासत और शिष्टता के लिए मशहूर थे. एक बार आप उन्हें जान लें, तो फिर उन्हें नापसंद करना नामुमकिन था।

वे अपने समय के सबसे धनी राजनेताओं में से भी एक थे। सिंधिया राजघराना मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा और मालदार राजघराना था। आजादी के बाद कई भूतपूर्व राजा, महाराजा और नवाबों की हालत खस्ता हो गयी थी. पर ग्वालियर राजघराने ने अपने धन का निवेश बड़ा सोच-समझ कर और अच्छी तरह किया था.

अंग्रेजी हुकूमत में उन्हें 21-बंदूकों की सलामी मिलती थी. ब्रिटिश भारत में केवल चार देसी रियासतों को २१ तोपों की सलामी दी जाती थी. देशी रियासतों के राजा-महाराजा और नवाबों को उनकी हैसियत के मुताबिक कम से कम दो और अधिक से अधिक से २१ तोपों की सलामी दी जाती थी.

सिंधिया ग्वालियर से लोक सभा सांसद थे. वे अपने आलीशान जयविलास पैलेस से चुनाव लड़ा करते थे. उस ज़माने में वे अपने निजी हेलीकाप्टर से उड़ान भरा करते थे, जिसे वे अक्सर खुद उड़ाते थे. जब वे चुनाव के लिए मैदान में उतरते थे तो देश-विदेश के पत्रकारों के झुण्ड उनके अभियान की कवरेज़ के लिए ग्वालियर आया करते थे. ग्लेमर, राजसी ठाट-बाट और राजनीति का तड़का ढेर सरे पत्रकारों को वहां खींच लाता था.

यही आकर्षण हमें भी 1998 की जाड़ों की उस सुबह को ग्वालियर के पास के एक छोटे-से कस्बे डबरा तक खींच लाया था. तब मैं इंडिया टुडे के लिए काम करता था। इस यात्रा पर सहकर्मी फोटो जर्नलिस्ट शरद सक्सेना मेरे साथ थे।

सिंधिया चुनाव प्रचार के लिए डबरा से सुबह 7.30 बजे निकलने वाले थे. इसलिए पौ फटने के पहले हमें तैयार होकर ग्वालियर का अपना होटल छोड़ना पड़ा. एक कप चाय पीने का भी समय नहीं था. हम डबरा के गेस्ट हाउस के कंपाउंड में काफी देर उनका इंतजार करते रहे. आठ बजे सिंधिया अपने कमरे से निकले. बाहर हमें इंतज़ार करते देख चौंक गए।

“आप अभियान की कवरेज़ के लिए बड़ी जल्दी पहुंच गए हैं, उन्होंने कहा, “आपको 10-15 दिन बाद आना चाहिए था।“

“हमारी पत्रिका की डेडलाइन है, इसलिए हमें थोडा पहले आना पड़ा, मैंने स्पष्ट किया. फिर मैंने उनसे एक इंटरव्यू के लिए अनुरोध किया और उन्होंने बाद में हमें समय देने का वादा किया।

मैँ माधवराव सिंधिया को पिछले दो दशक से भी अधिक समय से जानता था। एक रिपोर्टर के नाते मैं उनकी लम्बी राजनीतिक यात्रा का गवाह रहा हूँ. जनसंघ से कांग्रेस, फिर मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस और 2001 में एक हवाई दुर्घटना में उनकी असामयिक मृत्यु के पहले वापस कांग्रेस में लौट आने तक उनकी राजनीति को मैंने कवर किया था। रियासत की अकूत संपदा के लिए अपनी माता से उनकी लंबी और पीड़ादायक लड़ाई के बारे में भी काफी लिखा था.

हम महाराज के काफिले के पीछे लग लिए. एक गांव से दूसरे गांव की ख़ाक़ छानते हुए और उबाऊ भाषण सुनते हुए दोपहर होने को आई. सुबह से कुछ खाया नहीं था, सो जम कर भूख लगने लगी थी. पर हमारे पास खाना ढूंढने का भी समय नहीं था, क्योंकि काफिला लगातार बढ़ते चला जा रहा था।

“इस आदमी को भूख नहीं लगती क्या,”  शरद ने आश्चर्य जताया.

“मेरे को लगता है कि शायद वे रेस्ट हाउस से खा-पीकर निकले हैं,” मैंने कहा.

आधा दिन बीत चुका था. महाराज भी मनुष्य थे. उन्हें टॉयलेट इस्तेमाल करने की ज़रूरत महसूस होने लगी। उन्होंने एक डाक बंगले पर रुकने का फैसला किया। वहां रूककर उन्होंने हमें इंटरव्यू के लिए अंदर बुलवाया.

मैंने बैठकर अपना नोटबुक खोला ही था कि सिंधिया ने अपने निजी सुरक्षा अधिकारी को बुलाया और नाश्ता लगाने के लिए कहा. मैं ख़ुश हुआ। शरद की भी बांछे खिल गयी. लेकिन उसी समय महाराज ने हमारी खुशियों पर पानी फेर दिया: “अगर आपको कोई परेशानी न हो, एनके, तो इसी बीच  मैं कुछ खा लूँ?”

“नहीं महाराजा, कृपया आप शुरू करें,” मैं इसके अलावा और क्या कह सकता था. अपनी पहचान की शुरुवात से ही में उन्हें हमेशा सम्मान से महाराज संबोधित किया करता था। वे इसे मन ही मन पसंद भी करते थे. एक चौथाई सदी से भी अधिक समय तक राजनीति में होने के बावजूद सिंधिया उन राजसी लोगों में थे, जो हमारे जैसे सामान्य लोगों से दूरी बना कर रखने की कला जानते थे. 

वह गार्ड एक बड़ी-सी डलिया लेकर आया, जिसमें ग्वालियर के 5-सितारा होटल उषा किरण पैलेस से लाये गए भोजन के लगभग एक दर्जन पैकेट पड़े थे. यह होटल के सिंधिया के पैलेस काम्प्लेक्स के ही एक हिस्से में था। सिंधिया ने उनमें से कुछ पैकेट खंगाले, उनके अंदर झांका और एक पैकेट चुना, जिसमें ककड़ी के सैंडविच और फिंगर चिप्स नजर आ रहे थे. उन्होंने पहला कौर मुंह में डाला और कहा: “शूट”.

और मैंने सवाल दागने चालू कर दिया.

सिक्यूरिटी गार्ड असमंजस के भाव से पीछे खड़ा रहा. शायद वह सोच रहा था कि सिंधिया दूसरे मेहमानों के लिए भी भोजन परोसने को कहेंगे। लेकिन महाराजा खाते रहे और मेरे सवालों के जवाब देते रहे।

इंटरव्यू ख़त्म होने वाला था. उन्होंने गार्ड को फिर इशारा किया. वह डलिया फिर अवतरित हुई. हम ललचते रहे और उन पैकेटों का फिर शाही निरीक्षण किया गया. एक पैकेट से दूसरे पैकेट में झाँकने बाद आखिरकार असंतुष्ट होकर महाराज ने बास्केट हटाने का आदेश दिया.

इंटरव्यू ख़त्म हो चुका था. मैंने अपनी नोटबुक बंद कर ली. फिर उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा, जो चुनाव अभियान के दौरान आमतौर पर हर राजनेता पत्रकारों से पूछा करता है: “आपको माहौल कैसा नज़र आ रह क्या लगता है?

अपने कैरियर के दौरान रिपोर्टर जिन्दा रहने की कला बहुत जल्दी सीख लेते हैं. धूलभरे ग्रामीण इलाकों में चुनाव प्रचार के लिए अंधाधुंध भाग रहे वीआईपी नेताओं के काफिले में चलने के दौरान जितनी बड़ी चुनौती खबर जुटाना है, उससे भी बड़ी चुनौती कई दफा अपने लिए भोजन का इंतज़ाम करना हो जाता  है।

“महाराज, आपने बताया था कि हम कवरेज के लिए जल्दी आ गए हैं, मगर मुझे लगता है कि आप भी जल्दी आ गए हैं.”

“क्या मतलब?”

“आप तो चुनाव जीते हुए हैं,  महाराज। आप अपने क्षेत्र को अच्छी तरह जानते हैं. आपको अपना कैंपेन इतनी जल्दी शुरू करने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। आप यहां नहीं आते, तब भी आप चुनाव जीत सकते थे।“

महाराज मेरे फ़ीडबैक से काफी संतुष्ट नज़र आए: “नहीं, नहीं, एनके, चुनाव चुनाव होता है। मैं हर चुनाव को बहुत गंभीरता से लेता हूं।“ नौ बार लोक सभा सदस्य रहे माधवराव कभी कोई चुनाव नहीं हारे. एक बार उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज को भी हराया था।

अचानक महाराजा ने पीछे खड़े गार्ड की ओर देखा: “इन लोगों को खाने के लिए नहीं पूछा? पैकेट हैं कि नहीं?

फिर उन्होंने हमसे पूछा: “क्या आप कुछ खाना चाहेंगे?

कहने की ज़रूरत नहीं है, हम खाने पर टूट पड़े।

Prajatantra 28 October 2018

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