Old prison buildings overcrowded, new buildings remain unoccupied
NK SINGH
अच्छे काम का श्रेय दिया ही जाना चाहिए.
जब मध्य प्रदेश की जेलें ठसाठस भरने लगी तो राज्य सरकार ने समझदारी दिखाते हुए नई जेले बनाने का फैसला किया. इसके बाद अगला कदम यह होना चाहिए था कि कुछ कैदियों को नई जेलों में स्थानांतरित कर दिया जाता।
लेकिन सरकार से हर बार समझदारी की उम्मीद नहीं की जा सकती।
और यही हुआ भी। 40 करोड़ रू. की लागत से बनाई गई 67 नई जेलें अभी तक खाली पड़ी हैं.
दूसरी तरफ राज्य की जेलों में कैदी ठुंसे हुए हैं. 18,000 कैदियों की क्षमता वाले कारावासों में 24,500 कैदी रखे गए हैं. आदिवासी जिले बस्तर के मुख्यालय जगदलपुर की जेल में तो क्षमता से लगभग तिगुने कैदी हैं।
इसकी वजह? जेल अधिकारियों के मुताबिक जेलो की कमी!
लेकिन असली वजह यह है कि सरकार के पास न तो जेलों को रहने लायक बनाने का पैसा है और न ही उनकी रखवाली के लिए पर्याप्त कर्मचारी। नतीजतन 1983 से 1988 के बीच बनी इन इमारतों में से दो-तिहाई का अभी तक इस्तेमाल नहीं हुआ।
नई जेलों का निर्माण 1983 में उस समय शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने तहसील मुख्यालयों में, जहां निचली अदालत भी बैठती है, जेल बनाने की योजना के तहत कई राज्यों को पैसे दिए.
देश भर में कुल 226 जेलों के निर्माण की स्वीकृति मिली, जिनमें से 126 जेलें 60 करोड़ रू. की लागत से मध्य प्रदेश में बननी थी।
केंद्र की ओर से उदारतापूर्वक मिलने वाले इस अनुदान को लेने में मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों ने पूरी चुस्ती दिखाई।
इस बात का खयाल उन्हें बाद में आया कि इन जेलों को चलाने और कर्मचारी जुटाने तथा प्रशिक्षित करने के लिए उनके पास पैसे की किल्लत है।
जहां पर्याप्त कर्मचारी हैं वहां भी स्थिति ठीक नहीं है।
मसलन, पुरानी जेलों के बदले बनी सात नई जेलों की इमारते खाली पड़ी है क्योंकि सरकार के पास कर्मचारियों के लिए सुविधाएं मुहैया कराने का प्र्याप्त पैसे नहीं हैं। इन सात जेलों में से एक पन्ना में है जो खाली पड़ी है।
जेल विभाग के एक प्रवक्ता कहते हैं, ‘‘हमने सरकार के पास प्रस्ताव भेजें लेकिन नए कर्मचारी रखने की इजाजत नहीं मिली।‘‘
विभाग के अधिकारी शिकायत करते है कि लगभग सभी नई जेले शहर से बहुत दूर बनी हैं। कर्मचारियों और वाहनों के अभाव में पुलिस के लिए विचारधीन कैदियों को जेल से कोर्ट लाना ले जाना मुश्किल होगा, खासकर उस हालत में जब विचाराधीन कैदियों की संख्या कुल कैदियों की लगभग आधाी है।
अब जेल विभाग नई बनी 98 जेलों में से ज्यादातर का जिम्मा सार्वजनिक निर्माण विभाग से लेने में कतरा रहा है। अपनी तरफ से निर्माण विभाग ने काम खत्म करके जेलों में ताला लटका दिया है।
मजे की बात यह है कि कुछ जगहों पर स्थानीय प्रशासन इन इमारतों का इस्तेमाल पुलिस कर्मचारियों को आवास मुहैया कराने में कर रहा है।
यदि मध्य प्रदेश सरकार इन जेलों को चालू करने के लिए साधन जुटाने की कोशिश करे तो अच्छी बात होगी। और अगर वह यह नहीं कर सकती तो उसे इमारत के आसपास फैले स्कूलों को देखना चाहिए जो गोशालाओं, गोदामों और यहां तक कि तंबुओं में चल रहे हैं।
राज्य के 83,000 में से 7,000 स्कूल बिना उपयुक्त इमारत के हैं। ऐसी स्थिति में तैयार इमारतों को खाली पड़े रहने देना भयंकर लापरवाही है।
India Today (Hindi) 31 October 1993
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