Factionalism becomes bane of BJP
NK SINGH
कांग्रेस की जगह लेने का सपना देखने वाली भारतीय जनता पार्टी अपने गढ़ में ही ध्वस्त होती नजर आ रही है। गुजरात में कांग्रेस की मदद से सरकार बनाकर विद्रोही भाजपा नेता शंकर सिंह वाघेला ने आत्ममुग्ध केंद्रीय नेतृत्व को करारा तमाचा मारा है।
उत्तर प्रदेश चुनाव में निराशाजनक नतीजों के बाद गुटबंदी के दलदल में फंसी पार्टी सरकार बनाने की जोड़-तोड़ में भी नाकामयाब नजर आ रही है। पर इनसे सबक लेने की जगह दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे उसके गढ़ों में भी आपसी कलह नई ऊचाइयां छू रही है।
पिछले पखवाड़े जब एक तरफ गुजरात में वाघेला मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, दिल्ली में भाजपा सरकार की कुर्सी के पाए को नीचे से ही काटने की कोशिश हो रही थी। 23 अक्तूबर की रात को मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के करीबी समझे जाने वाले तीन भाजपा विधायकों ने नारायणा इलाके के एक छापाखाने पर पुलिस की मदद से छापा मारकर 4,000 आपत्तिजनक पोस्टर बरामद किए।
इन पोस्टरों में कहा गया था, ‘‘वाघेला ने गुजरात में बनाई जैसी मिसाल, चांदला-सेठी दिल्ली में कर दो वही कमाल।‘‘ इन पोस्टरों के बारे में मुख्यमंत्री वर्मा को पार्टी के एक कार्यकर्ता ने गोपनीय सूचना दी थी।
पी.के. चांदला और पूर्णिमा सेठी की जोड़ी को शक है कि ये पोस्टर उन्हें बदनाम करने और नेतृत्व की नजर में गिराने के लिए विरोधी गुट ने छपवाए होंगे। इस सिलसिले में यह तथ्य कम दिलचस्प नहीं कि प्रदेश भाजपा और सहयोगी संगठनों की छपाई का लगभग सारा कामकाज इसी छापाखाने में होता है।
इसके मालिक एन.के. गुलाटी उर्फ राजू का दावा है कि ये पोस्टर एक स्थानीय कांग्रेसी नेता ने छपवाए थे । पर वे कांग्रेसी नेता तो इस बात से साफ़ इनकार करते ही हैं, साथ ही वर्मा गुट के लोग भी इस पर यकीन नहीं करते। उनक कहना है कि शक की सुई प्रतिद्वंद्वी मदनलाल खुराना गुट की तरफ ही जाती है, जो पिछले चार-पांच महीने से सरकार को कमजोर करने की कोशिशों में लगा है।
छापाखाने पर छापा मारने चांदला और सेठी के साथ भाजपा विधायक पूरनचंद योगी भी गए थे। उनका कहना है, ‘‘इसका मालिक शुरू से ही झूठ बोल रहा है।‘‘ चांदला को भी शक है कि उन्हें बदनाम करने वाला यह पोस्टर उनके राजनैतिक विरोधियों ने छपवाया होगा।
वे कहते हैं, ‘‘मुझे यकीन नहीं कि इसके पीछे किसी कांग्रेसी का हाथ है।‘‘ 27 अक्तूबर को दिल्ली भाजपा विधायक दल की बैठक में उन्होंने मांग की कि मामले की तह में जाने के लिए इसे अपराध शाखा के हवाले कर देना चाहिए।
इस मामले को लेकर खुराना गुट और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केदारनाथ साहनी पूरी तरह बचाव की मुद्रा में हैं। साहनी ने इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। इस गुट के एक अन्य विधायक ओ.पी. बब्बर ने कहा, ‘‘सेठी सुर्खियों में रहने के लिए मामले को तूल दे रही हैं।‘‘
मामला खत्म इसलिए नहीं हो रहा कि वर्मा को यकीन है कि उनकी कुर्सी डांवाडोल करने की यह अकेली कोशिश नहीं। मुश्किल से दस दिन पहले असंतुष्ट विधायक ब्रह्मा सिंह तंवर के घर पर मुख्यमंत्री के विरोधियों की एक बैठक हुई थी।
इसके बाद मुख्यमंत्री के खिलाफ एक हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। इसमें उनकी नाकामियों की चर्चा करते हुए आशंका जताई गई कि अगर वे सरकार में बने रहे तो नगर निगम के आगामी चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त का मुंह देखना पड़ सकता है।
हस्ताक्षर अभियान रंग लाता, इसके पहले ही खबर लीक हो गई । वर्मा ने सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को शिकायत की। उनके हस्तक्षेप के बाद साहनी ने संबंधित विधायकों के साथ ही षड्यंत्र में शामिल चार मंत्रियों को भी कारण बताओ नोटिस दिए थे।
आखिरकार 23 अक्तूबर को 49 में से 42 भाजपा विधायकों की उपस्थिति में भाजपा विधायक दल ने वर्मा के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया। इस मौके पर सात गैरहाजिर विधायकों में सबसे प्रमुख थे पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना।
हवाला कांड की चपेट में आकर इस साल की शुरूआत में मुख्यमंत्री पद से हाथ धो बैठने की खुराना को अभी तक मलाल है। शुरू में उन्होंने सोचा था कि पद से हटने के बाद भी वे ‘सुपर सी. एम.‘ के रूप में सरकार की नकेल अपने हाथों में रखेंगे। पर वर्मा ने ऐसा होने नहीं दिया।
दिल्ली में अगर सत्ता-संघर्ष स्थानीय नेताओं की महत्वकांक्षा के टकराव से उपजा है, तो पड़ोसी राजस्थान में असंतुष्ट गुट की गतिविधियों को पार्टी आलाकमान की शह है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परवाह नहीं करने के कारण आलाकमान से तब से ज्यादा चिढ़ गए हैं जब पिछले साल दिल के रोग के इलाज के लिए विदेश जाते समय उनसे पार्टी के एक शीर्ष नेता ने कहा, ‘‘वहां पता नहीं क्या हो, आप किसी और को कामकाज की जिम्मेदारी सौंप कर जाएं तो अच्छा।" विधानसभा अध्यक्ष हरिशंकर भाभड़ा को उपमुख्यमंत्री नियुक्त करने के बाद ही शेखावत विदेश जा पाए।
विधानसभा में भाजपा का बहुमत न होने के बावजूद 21 निर्दलियों के समर्थन से सरकार बना पाना शेखावत के ही बूते की बात थी।
जब गुजरात में अच्छी-खासी चल रही सरकार अंदरूनी झगड़ों की वजह से धराशाई हो जाए तो ऐसे में निर्दलीय विधायकों को इतने अरसे तक अपने पाले में बनाए रख पाना उनके जोड़-तोड़ के कौशल से ही संभव था।
शेखावत के विरोधी उनके पासंग भी नहीं बैठते। उनका व्यक्तित्व इतना कद्दावर है कि प्रदेश में कई बार पार्टी भी उनके सामने बौनी दिखती है।
पर आलाकमान की शह पर उनको चिकोटी काटने की कोशिशें जारी हैं। पिछले दिनों मामला जब काफी आगे बढ़ा और आलाकमान ने दिल्ली बुलाकर असंतुष्टों से उनकी बैठक कराने की कोशिश की तो शेखावत ने नेतृत्व को ठेंगा दिखाते हुए बैठक में जाने से एकदम साफ मना कर दिया।
उन्होंने इंडिया टुडे से पिछले पखवाड़े कहा, ‘‘मैं बहुत दिन चीफ मिनिस्टर रह लिया, मुझे अब इस पद की लालसा नहीं।‘‘
शेखावत अपने खिलाफ चल रही असंतुष्ट गतिविधियों से तो परेशान हैं ही, इन रिपोर्टों से भी खिन्न हैं कि उनके विरोधियों को कुछ केंद्रीय नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शह है।
अगले पखवाड़े जयपुर में हो रही भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को देखते हुए असंतुष्टों की गतिविधियों में फिर से तेजी आई है।
इनके अगुआ एक विधायक ने, जो पार्टी पदाधिकारी भी हैं, इंडिया टुडे से कहा, ‘‘भैरों सिंह शेखावत की सरकार पर पकड़ भी खत्म हो गई है और पार्टी में उनका जोर भी नहीं रहा।‘‘
उत्तर प्रदेश हो या बिहार, मध्य प्रदेश हो या महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश हो या गुजरात, पार्टी सब जगह दो फांक है। वाघेला के विद्रोह के बाद भी गुजरात भाजपा एकजुट नहीं है। वाघेला के बाद अंसतुष्ट लाॅबी को नेतृत्व करने की अब बारी है काशीराम राणा की, जिन्हें पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के इशारे पर प्रदेश पार्टी अध्यक्ष पद से दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंका गया।
हालांकि पार्टी में असंतोष के स्वर अरसे से मुखरित रहे हैं पर गुजरात जैसी स्थिति की दो-तीन साल पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इसकी वजह है पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का विभाजित होना और गुटबंदी को प्रोत्साहित करना।
पार्टी के तीन नेता लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और मुरली मनोहर जोशी --अलग-अलग रास्तों पर चलते हैं. इसकी वजह से केंद्रीय नेतृत्व कमजोर हो गया है, और राज्य इकाइयों पर उसकी पकड़ नहीं रही।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने दुखी मन से कहा, ‘‘ऐसा ही चलता रहा तो बहुत बुरे दिन आएंगे।‘‘ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भाजपा को नैतिक पथ प्रदर्शन मिलता था और संबल भी। पर उसका नेतृत्व इतनी कमजोर हालत में कभी नहीं रहा, जैसा आज है।
इस गुटबाजी का असर भाजपा के काम-काज पर पड़ने भी लगा है। उत्तर प्रदेश में न केवल उसके वोट कम हुए बल्कि सरकार बनाने को लेकर भी उसके मतभेद उजागर हुए । पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से कोई समझौता नहीं करने की अपनी मांग को लेकर लगभग विद्रोही मुद्रा में हैं।
हाल के विधानसभा उपचुनावों में मध्यप्रदेश में पार्टी की चौंकाने वाली हार हुई। इसके बाद वहां पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के गुट ने प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण पांडे को हटाने की मांग को लेकर जेहाद छेड़ दिया है।
जाहिर है, अगर भाजपा गुजरात की घटना से भी सबक नहीं ले पाई तो कांग्रेस का विकल्प बनने का उसका वर्षों से संजोया सपना अधूरा ही रह जाएगा।
ऊपर नीचे तक विभाजित पार्टी
राष्ट्रीय स्तर पर
अटल बिहारी वाजपेयी
पूर्व प्रधानमंत्री उदारवादी नीतियों में यकीन रखते हैं
लालकृष्ण आडवाणी
पार्टी अध्यक्ष ने हिंदुत्व को प्रतिष्ठा दिलाई
दिल्ली
मदनलाल खुराना
पूर्व मुख्यमंत्री साम-दाम-दंड-भेद में माहिर हैं और कुर्सी के प्रति मोह में भी
सहिब सिंह वर्मा
कुर्सी का नशा, और अक्ख़ड़पन ने कई दुश्मन तैयार किए
मध्यप्रदेश
कैलाश जोशी
संत स्वभाव के पूर्व मुख्यमंत्री को लगता है कि पार्टी में जोड़-तोड़ रखने वालों का वर्चस्व बढ़ रहा है
सुन्दरलाल पटवा
पूर्व मुख्यमंत्री न अपनी आलोचना बर्दाश्त कर पाते हैं और न ही आलोचकों को
उत्तर प्रदेश
कलराज मिश्र
प्रदेश अध्यक्ष आखिर कब तक अगड़ों की पार्टी में पिछड़ों की अगुआई स्वीकार करें
कल्याण सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री पिछड़ों के नेता हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अधिकार मानते हैं
राजस्थान
भैरों सिहं शेखावत
होंगे काबिल मुख्यमंत्री पर आरएसएस से पंगा लेने का खामियाजा कदम-कदम पर उठाना पड़ता है
हरिशंकर भाभड़ा
शेखावत के उत्तराधिकारी के रूप में तैयार करने के लिए आरएसएस सक्रिय
गुजरात
काशीराम राणा
केशु भाई और विश्व हिंदू परिषद लाॅबी ने बड़ी बेइज्जती के साथ उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवाया
केशु भाई पटेल
पूर्व मुख्यमंत्री पार्टी की दुर्दशा के लिए पूरी तरह जिम्मेदार माने जाते हैं
महाराष्ट्र
प्रमोद महाजन
चतुर सुजान राष्ट्रीय महामंत्री जिस तेज रफ्तार से आगे बढ़े हैं उससे दिग्गजों को इर्ष्या
मधु देवलेकर
पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष पार्टी के वैचारिक समझौतों से रूष्ट और पैसों की राजनीति से त्रस्त
बिहार
अश्विनी कुमार
प्रदेश अध्यक्ष पार्टी की तीसरी लगभग लुप्त धारा में हैं जिसके नेता मुरली मनोहर जोशी हैं
कैलाशपति मिश्र
पहले आडवाणी ने बिहार इकाई पर अध्यक्ष के रूप में लाद दिया था
हिमाचल प्रदेश
शांता कुमार
पूर्व मुख्यमंत्री को प्रदेश में भाजपा के सफाए के लिए दोषी ठहराया गया है
प्रेम कुमार धूमल
शांता कुमार को दरकिनार करने के बावजूद पार्टी को वापस पटरी पर लाने में कामयाब
बगावत का इतिहास
1953ः राजस्थान जनसंघ के आठ में से छह विधायकों को पार्टी लाइन के अनुसार जागीदारी उन्मूलन विधेयक का समर्थन न कर विरोध करने के कारण पार्टी से निष्कासित किया गया। शेखावत को लेकर तब पार्टी बंटी। वे खुद वफादार गुट के साथ रहे।
1973ः पूर्व पार्टी अध्यक्ष बलराज मधोक जनसंघ से निष्कासित किए गए। उन्होंने एक नई पार्टी बनाई। मुट्ठी भर नेताओं द्वारा मधोक का पक्ष लिए जाने से संकट समाप्त।
1984ः मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा ने ‘गुटबाजी के चलते‘ भाजपा छोड़ी । इसके संस्थापक सदस्यों में से एक सखलेचा 1989 में भाजपा में वापस लौटे।
1990ः रथयात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी । पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस लिया। लालू ने बिहार में भाजपा में विभाजन करवाया। इंदर सिंह नामधारी के नेतृत्व में 10 विधायकों ने पार्टी छोड़ी और जद में शामिल हो गए।
1993ः आरएसएस नेता राजेंद्र सिंह की शह पर आडवाणी और वाजपेयी ने मुरली मनोहर जोशी को दूसरी बार पार्टी अध्यक्ष नहीं बनने दिया।
1994ः विरोधी खेमे ने आरएसएस के मुखपत्र ‘पाञचजन्य‘ के जरिए पार्टी अध्यक्ष आडवाणी पर हमला किया। जवाब में आडवाणी ने 41 महत्वपूर्ण पदों से जोशी समर्थकों की छुट्टी कर अपने वफादारों को नियुक्त किया।
1996ः गुजरात भाजपा के ताकतवर नेता शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी को विभाजित कर सरकार गिरा दी। कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में आ गए और अपना बहुमत साबित किया।
India Today (Hindi) 20 November 2016
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