When the Governor wanted to remove the Lokayukt of MP
NK SINGH
जब दो दोस्तों के बीच दुश्मनी हो जाए तब टकराव देखने लायक होता है। मध्य प्रदेश के राज्यपाल भाई महावीर और लोकायुक्त न्यायमूर्ति फैजानुद्दीन के बीच चल रही लड़ाई ने --- सबसे पहले इसे इंडिया टुडे ने ही 14 जून के अंक में छापा था --- अब गंभीर मोड़ ले लिया है।
न्यायमूर्ति फैजानुद्दीन ने राज्यपाल को "लोकायुक्त के कामकाज में हस्तक्षेप" के आरोप में अदालत में ले जाने की परोक्ष धमकी दी है। राज्यपाल ने भी उन्हें इस धमकी पर अमल करने की चुनौती दी है।
और भन्नाए राज्यपाल, उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, उस अध्यादेश को दबाकर बैठ गए हैं, जिससे लोकायुक्त को अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत कार्रवाई का अधिकार मिल जाता।
फैजानुद्दीन के अनुरोध पर तैयार इस अध्यादेश के प्रारूप का सरकार ने पिछले अप्रैल में राजभवन भेजा था। लेकिन राज्यपाल ने कुछ सवाल खड़े कर उसे सरकार को लौटा दिया। और सरकार ने ये शंकाएं लोकायुक्त के पास भेज दीं।
हालांकि लोकायुक्त ने इन सब शंकाओं के जवाब तत्काल भेज दिए थे, मगर राज्यपाल फाइल को दो हफ्ते से दबाए बैठे हैं। देरी का अर्थ यह है कि अध्यादेश अब जारी नहीं हो पाएगा। विधानसभा का मानसून सत्र 17 जुलाई को शुरू होने वाला है और अब अध्यादेश को विधेयक के रूप में सदन में पेश करना होगा।
लोकायुक्त को हटाने की कोशिश
राज्यपाल ने मामला यहीं तक सीमित नहीं रखा। राजभवन के करीबी सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल एक बार लोकायुक्त को उनके पद से हटाने पर भी विचार करने लगे थे। और माना जाता है कि राजभवन ने इस संबंध में कानूनी सलाह ली थी।
मध्य प्रदेश लोकायुक्त और उप-लोकायुक्त कानून 1981 के तहत लोकायुक्त को विधान सभा महाभियोग चलाकर ही हटा सकती है।
राज्यपाल और लोकायुक्त के बीच चल रहे ‘पत्र युद्ध‘ का खुलासा इंडिया टुडे में होने के बाद दोनों संवैधानिक हस्तियां खुलेआम एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी पर उतर आईं।
ये दोनों दरअसल इंदौर के अखबार नई दुनिया को कोड़ियों के मोल जमीन आवंटित किए जाने के मसले पर आपस में भिड़े हुए हैं।
अखबार को जमीन का मामला
इस मामले में दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल ने वित्त विभाग की आपत्तियों को दरकिनार कर अखबार को अपना छापाखाना लगाने के लिए भूमि के प्रयोग में बदलाव की अनुमति दे दी थी।
इस मामले में फैजानुद्दीन ने अपनी जांच का निष्कर्ष महावीर के पास भेजने से इनकार कर दिया है। महावीर का कहना है कि लोकायुक्त को जांच रिपोर्ट राजभवन में भेजनी ही चाहिए।
भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक फैजानुद्दीन इस मामले में अंतिम आदेश पर दस्तख्त कर चुके हैं। मार्च में तैंयार उनकी रिपोर्ट में दिग्विजय को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया गया है।
लेकिन विवादास्पद भूमि आंवटन की मंजूरी देने वाले मंत्रिमंडल की उन्होंने कड़ी खिंचाई की। सूत्रों के मुताबिक जांच के नतीजों को लोकायुक्त की वार्षिक रिपोर्ट में षामिल किया जाएगा, जो जल्दी ही सरकार को सौंपी जाएगी।
दोस्त बने दुश्मन
विडंबना यह है कि महावीर और फैजानुद्दीन के बीच हाल तक मधुर संबंध थे। भ्रष्ट दिग्विजय प्रशासन के खिलाफ दोनों मिलकर काम करते नजर आ रहे थे।
आज उनका एक दूसरे से बड़ा कोई दुश्मन नहीं। वे एक-दूसरे के इरादों पर सवाल खड़ा करने, आपसी तौहीन करने और दबी-छिपी धमकियां देने में लगे हैं।
पिछले दो महीने में दोनों ने एक-दूसरे को तल्ख चिट्ठियां लिखी हैं। फैजानुद्दीन का आरोप है कि भाई महावीर ‘‘लोकायुक्त के कामकाज में दखल दे रहे हैं‘. फैजानुद्दीन ने यहां तक कहा कि महावीर अपना छिपा एजेंडा‘ लागू करने में जुटे हैं।
इस पर गुस्साए महावीर ने लोकायुक्त पर अषिष्टता पर उतरने, मर्यादा भंग करने और ‘‘शालीनता तथा शिष्टाचार को पूरी तरह‘‘ ताक पर रखने का आरोप लगाया।
लोकायुक्त के पास नई दुनिया का मामला 1997 में आया था। 1999 के शुरू में इंदौर के एक वकील ने राज्यपाल से मिलकर लोकायुक्त कार्यालय में हो रही देरी की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए अनुरोध किया कि इस मामले में दिग्विजय के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दें।
और दिग्विजय को अपने निशाने पर साधे भाई महावीर ने पिछले साल नवंबर में यह मामला व्यक्तिगत रूप से लोकायुक्त के सामने उठाया। अंततः पिछले अप्रैल में पत्र लिखकर उन्होंने पत्र-युद्ध की शुरूआत कर दी जिसका नतीजा सबके सामने है।
India Today (Hindi) 12 July 2000
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