NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

जब राणी सती मंदिर से चुनरी ही गायब हो गयी थी

Jhunjhunu's Rani Sati temple lands in controversy


NK SINGH


आखिर महिला संगठनों के विरोध से जो काम नहीं हो पाया उसे अदालत के एक आदेश ने अंजाम दिया। अदालत ने और जरूरत से ज्यादा मुस्तैद प्रशासन ने।

देखने को झुंझुनूं के राणी सती मंदिर के चौथे शताब्दी वर्ष का आयोजन बेखटके हुआ। पिछले पखवाड़े मंदिर में विशाल यज्ञ मंडप भी बना। उसमें वाराणसी से आए50 ब्राह्मणों ने नौ दिन तक शास्त्रोक्त पद्धति से महाचंडी यज्ञ भी किया।

प्रांगण में बने 350 कमरे दूर-दूर से आए दर्शनार्थियों से खचाखच भरे थे। लोगों का आना-जाना वैसे ही चलता रहा। स्कूली ट्रिप पर ‘मास्साब‘ के साथ आए बच्चे, मनौती पूरी होने पर बच्चे का मुंडन कराने आए मां-बाप, और दूल्हे की धोती के छोर से बंधी नवविवाहित दुल्हन।

फिर भी आयोजन फीका रहा। वजह थी राजस्थान हाइकोर्ट का 27 नवंबर का आदेष जिसके तहत अदालत ने मंदिर के प्रबंधकारिणी ट्रस्ट को इस अवसर पर मंदिर में नया स्वर्णकलश  स्थापित करने, चुनरी समारोह करने या ऐसी किसी भी गतिविधि पर पाबंदी लगा दी थी, जिससे सती महिमामंडित होती हो।

इस आदेश के बाद मंदिर के बाहर बनी दुकानों से चुनरी ही गायब हो गई। ‘‘हमें पुलिसवालों ने कहा कि एक भी चुनरी दिखाई पड़ी तो सीधा अंदर कर देंगे,‘‘ धंधा चौपट होने से दुखी एक दुकानदार बोला। मंदिर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस लगी रही। पूरे यज्ञ की वीडियो रिकार्डिंग हुई.

और तो और इस अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर भी कड़ी नजर रखी गई। 28 नवंबर की रात को आयोजित भजन कार्यक्रम के दौरान एक तहसीलदार बैठकर पूरे समय भजनों के बोल लिखता रहा। कलकत्ता से आए गायक राजेंद्र जैन ने कहा, ‘‘यह कहने पर भी आपत्ति थी कि ‘राणी के माथे चुनरी शोभे।‘ अब गायक चुनरी की जगह मां को स्कर्ट पहनाने से तो रहे।"

आयोजन के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों की खबरों और झगड़े की आशंका ने भी लोगों को डराया। मंदिर के प्रबंधक महावीर प्रसाद ने कहा, ‘‘हम आयोजन के लिए इससे कहीं ज्यादा लोगों के आने की उम्मीद कर रहे थे।‘‘

प्याले में पैदा इस तूफान का एक दिलचस्प पहलू यह था कि विवादास्पद यज्ञ शुरू होने के तीन दिन बाद दिल्ली से आए अखबार वाले और टीवी कैमरामैन वापस चले गए। उसके बाद आयोजन का विरोध करने वालों का कहीं अता-पता नहीं था। स्थानीय पुलिस के एक प्रवक्ता ने इंडिया टुडे से कहा, ‘‘इस आयोजन का विरोध करने वाले ज्यादातर बाहर के लोग थे। कुछ औरतें थीं और स्कूल काॅलेज की 10-15 लड़कियां थीं।‘‘

वामपंथी महिलाओं के एक दल ने, जिसकी अगुआई जनवादी महिला समिति की सुमित्रा चोपड़ा कर रही थी, झुंझुनूं जाकर आयोजन को रोकने की धमकी दी थी। जब राजस्थान सरकार ने सती मंदिर के जयंती समारोह को रोकने से मना कर दिया तो महिला अत्याचार विरोधी जन आंदोलन ने राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश मुकुल गोपाल मुखर्जी को एक ज्ञापन उनके घर जाकर दिया। फिर हाइकोर्ट ने उसी ज्ञापन को जनहित याचिका मानकर आनन-फानन में सुनवाई की।

वामपंथी महिला संगठन के विरोध का नतीजा यह निकला कि मंदिर समर्थक भी प्रतिक्रिया में उठ खड़े हुए ओैर विश्व हिंदू परिषद, दुर्गा वाहिनी जैसे हिंदुत्ववादी संगठन उनकी अगुवाई करने पहुंच गए। 29 नवंबर को इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने झुंझुनू के जिलाधीश  कार्यालय परिसर का घेराव कर नारेबाजी की और धार्मिक कार्य में बिलावजह अड़ंगेबाजी करने की निंदा की। मंदिर ट्रस्ट की ओर से आयोजित सारे सांस्कृतिक कार्यक्रम विश्व  हिंदू परिषद के तत्वाधान में हुए ताकि प्रशासन उन पर पाबंदी न लगा सके।

महिला संगठनों ने अपनी याचिका में कहा था कि राणी सती मंदिर के 400 वर्ष पूरे होने पर झुंझुनूं में 26 नवंबर से 4 दिसंबर तक यज्ञ आयोजित किया जा रहा है। मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित एक पर्चे के हवाले से कहा गया कि यह यज्ञ चौथे शताब्दी वर्ष कर ‘समापन समारोह‘ है। इसमें दो शंकराचार्य भी आएंगे और इस मौके पर तीन करोड़ रू. का एक स्वर्ण कलष स्थापित किया जाएगा। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह सती निवारण अधिनियम 1988 के तहत सती के महिमामंडन की श्रेणी में आता  है और कानूनन अपराध है।

अधिनियम के तहत सती हुई किसी महिला की तारीफ करने के लिए समारोह आयोजित करना सती को महिमामंडित करने की परिभाषा में आता है। महिमामंडित करने के दूसरे तरीके गिनाए गए हैं - उत्सव या जुलूस आयोजित करना, सती का समर्थन करना, उसे जायज ठहराना या उसका प्रचार करना, या सती की याद में कोई मंदिर या ट्रस्ट बनाना।

पर झुंझुनू का मंदिर कोई अकेला सती मंदिर नहीं है। सही है कि कलकत्ता और दूसरी जगह बसे धनाढ्य मारवाड़ी सेठों की निष्ठा की वजह से यह सबसे प्रसिद्ध है पर अकेले राजस्थान में ऐसे सैकड़ों मंदिर हैं। पूर्वी बिहार और बंगाल में भी ऐसे मंदिरों की भरमार है।

राणी सती के धनी अनुयायियों ने उनके मंदिर न केवल देश में कई जगह बल्कि न्यूयाॅर्क, बैंकाक, हांगकांग, सिंगापुर आदि शहरों में भी स्थापित करवा रखे हैं। दिल्ली में भी पिछले पखवाड़े एक मंदिर ने अपना चौथा शताब्दी समारोह मनाया जिसका औरतों की संस्था ‘सहेली‘ ने विरोध किया।

राणी सती का मूल नाम नारायणी देवी था। वे जालान अग्रवाल परिवार में ब्याही थीं। कथा के मुताबिक युद्ध में पति तनधनदास की मृत्यु के बाद उन्होंने पति की तलवार उठाकर खुद, दुश्मनों का सफाया किया और फिर ‘अग्नि‘ द्वारा भस्म हो गईं। उनके वंशज और अनुयायी उनकी पूजा-अर्चंना कुलदेवी के रूप में करते हैं। सारे पारिवारिक मांगलिक कार्य जैसे मुंडन, विवाह आदि में यहां पूजा अनिवार्य है। कई नेता, मंत्री, राज्यपाल और आला अफसर इस मंदिर के भक्तों में रहे हैं। भादों की अमावस्या पर यहां हर साल मेला भी लगता है।

लेकिन 1987 के दिवराला कांड के बाद यहां मेला फीका पड़ गया। एक होटल मालिक लक्ष्मीकांत जांगिड़ कहते हैं, ‘‘पहले मेले के समय सारे होटल-लाॅज खचाखच भरे रहते थे।‘‘ नया कानून आने के बाद ट्रस्टी तो इस बात से भी इनकार करते हैं कि यह सती का मंदिर है।

ट्रस्ट में मंत्री देवेंद्र कुमार झुंझुनवाला कहते हैं, ‘‘यहां किसी भी मानव की न तो कोई मूर्ति है न चित्र। हम त्रिशूल  रूपी ‘श्रीविग्रह‘ की पूजा करते हैं, जो शक्ति का प्रतीक है।‘‘ नया कानून आने के बाद आयोजकों ने मंदिर में कई जगह तख्तियां भी टांग रखी हैं ---‘‘हम सती प्रथा का विरोध करते हैं।‘‘

वैसे झुंझुनवाला कहते हैं, ‘‘राणी सती मां की पूजा करने का यह मतलब नहीं कि हम सती प्रथा के समर्थक हैं। यह तो सदियों से चले आ रहे विश्वास और आस्था की बात है।‘‘ पर आयोजकों की यह बात किसी के गले नहीं उतरती कि 25 नवंबर से 4 दिसंबर तक चले यज्ञ का मंदिर के चौथे शताब्दी समारोह से कोई मतलब नहीं है। यह केवल संयोग नहीं कि 4 दिसंबर को ही मंदिर के 400 वर्ष पूरे हो रहे हैं।

बहरहाल, अदालती आदेश के कारण महोत्सव का महिमामंडन होने से रूक गया और इसे एक विषाल धार्मिक आयोजन बनाने के मंसूबे धरे रह गए।

India Today (Hindi) 20 December 1996

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