NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

एमपी पुलिस के बाल कांस्टेबल

पुलिसवालों के बेसहारा परिवारों को सहारा देने की मध्य प्रदेश की अनूठी योजना

नरेंद्र कुमार सिंह


भोपाल के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के कार्यालय में तैनात युगल प्रसाद गौतम आंगतुक को जिस प्रकार सलामी ठोकता है, उससे वह हर तरह से पुलिसवाला ही लगता है।

पर एक फर्क है। कलफ लगी वर्दी, सिर पर टोपी और कमर में बेल्ट बांधे इस कांस्टेबल की उम्र महज 11 साल है।

और वह इस नौकरी में नया नहीं है। भोपाल के शारदा शिशु मंदिर में छठी कक्षा का छात्र युगल सात साल की उम्र से ही पुलिस में है। वह सप्ताह में तीन दिन स्कूल जाने से पहले एसपी कार्यालय में फाइल ढोने और पानी लाने की अपनी ड्यूटी पर जाता है।

वह 934 दूसरे बच्चों की तरह मध्य प्रदेश  पुलिस में बाल कांस्टेबल है। राज्य की एक योजना के तहत उन पुलिसवालों के बेटों या पुरूष रिश्तेदारों को नौकरी दी गई है जो या तो मर गए या बीमारी के चलते काम नहीं कर सकते (अभी तक यह योजना 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए ही है)।

पिता के देहांत के बाद मिली इस नौकरी से युगल को प्रतिमाह 1,200 रू. मिलते हैं, जो सामान्य वेतन का आधा है। पर इसी से वह अपनी मां, दो बहनों और एक भाई का भरण-पोषण करता है। एहसानमंद युगल की जिंदगी का एक ही लक्ष्य है, ‘‘मैं पढ़-लिखकर पुलिस अफसर बनना चाहता हूं।"

अफसरों की गोद में बैठे नन्हे 'कांस्टेबल"

कुछ साल पहले बंटी को भोपाल के एसपी के कार्यालय में अपने पिता की जगह नौकरी मिली थी। वर्दी पहने, आंखों में काजल और ‘‘बुरी नजर से बचने के लिए" माथे पर काला टीका लगाए यह नन्हा कांस्टेबल प्रायः अधिकारियों की गोद में बैठा दिखाई देता था।

अब 15 वर्षीय यही बंटी, जिसे अपने पिता की मृत्यु के बाद नौकरी मिली थी, अपने चार सदस्यीय परिवार -मां और दो सहोदरों-का पालन-पोषण कर रहा अरूण कुमार चौधरी  कहलाता है।

पांचवे दशक में शुरू की गई राज्य पुलिस की इस योजना से इस तरह के कई असहाय परिवारों को सहायता मिली है। एक ओर जहां वेतन से घर का चुल्हा जलता है, वहीं सरकारी आवास की सुविधा के चलते कई परिवार शहर में रह पाते हैं।

अब सप्ताह में केवल तीन बार छोड़कर, जब दिन में वे कुछ घंटों के लिए अपने स्कूल की नहीं पुलिस की वर्दी पहनते हैं --- बाल कांस्टेबल दूसरे स्कूली बच्चों की तरह ही लगते हैं।

पर एक गारंटी है कि जब वे 18 साल के हो जाएंगे और अगर उन्होंने 10वीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली तथा जरूरी शारीरिक एवं चिकित्सीय योग्यताओं पर खरे उतरे तो उन्हें एक सामान्य पुलिस कांस्टेबल की नौकरी मिल जाएगी।

यहां तक कि कभी-कभी न्यूनतम शारीरिक फिटनेस के मानदंड (लंबाई 5 फुट 6 इंच और सीना 36 इंच) में ढील भी दी जाती है।

पर जो 10वीं कक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाते उनके लिए भी एक रास्ता है ---- मध्य प्रदेश विषेश सशत्र बल, जिसके लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता कक्षा 8 है।

भोपाल के एसपी मैथिलीशरण गुप्त के मुताबिक यह व्यवस्था बहुत सफल रही है। कभी-कभार उन लोगों के बच्चों/आश्रितों को इस सेवा में ले लिया जाता है ‘‘जिन्होंने पुलिस नियम के मुताबिक सरकार की बढ़िया सेवा की हो।"

फूलन का भाई था बाल अर्दली

गौरतलब है कि इन ‘‘लोगों" में फूलन देवी भी हैं। उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके छोटे भाई को बाल अर्दली की नौकरी दी गई और ग्वालियर के एसपी ने उनके परिवार के सदस्यों को पुलिस लाइन में मकान भी दिया।

बहरहाल, इस योजना के लाभार्थियों को इस तरह के अपवादों  से कोई फर्क नहीं पड़ता। भोपाल के एक बाल अर्दली अब्दुल अक़ील का कहना है, ‘‘अगर मुझे यह नौकरी न मिलती तो मैं अपनी मां, पांच भाई-बहनों की मदद नहीं कर सकता था।"

उसके पिता का 1987 में देहांत हो गया था। पुलिस की नौकरी के चलते उसके भाइयों और बहनों ने अपनी पढ़ाई-लिखाई जारी रखी।

और हां, इस आर्थिक सहायता के अलावा कुछ और फायदें भी हैं, जिनका अहसास इन बच्चों को नौकरी के प्रशिक्षण के शुरूआती दौर में ही हो जाता है। 16 वर्षीय अब्दुल कहता है, ‘‘पुलिस का मतलब है ताकत।‘‘

India Today (Hindi) 15 August 1996

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