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Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

नर्मदा के पानी से राजनीतिक सूखे को सींचने की दिग्विजय की कोशिश

Digvijay's Political Pilgrimage


NK SINGH


71 साल की उम्र में 3800 किलोमीटर की पदयात्रा कोई छोटी बात नहीं है.
छह महीने अपने घर से दूर रहकर, कड़ाके की सर्दी और तीखी धूप में कच्ची सड़कों की धूल फांकते, उबड़-खाबड़ पगडंडियों पर चलते, खेत-खलिहान लांघते और अक्सर घुटने भर पानी को पार करते वे रोज लगभग 20 से 25 किलोमीटर पैदल चलते थे. कई दफ़ा बुख़ार के बावजूद.
पिछले साल दशहरे के दिन नर्मदा परिक्रमा पर निकले दिग्विजय सिंह ने अपनी इस तीर्थ यात्रा के लिए कांग्रेस महासचिव के पद से बाक़ायदा छह महीनों की लंबी छुट्टी ली थी.
साथ चल रहीं उनकी 45 वर्षीय पत्नी अमृता राय ने भी इस यात्रा के लिए टीवी पत्रकार की अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया दिया था.

यात्रा की समाप्ति

दिग्विजय सिंह की इस यात्रा पर नज़र डालें तो वो ऐसे दुर्गम इलाक़ों से भी गुज़रे जहाँ नेता केवल वोट मांगते वक़्त पहुँचते हैं.
9 अप्रैल को यह यात्रा नर्मदा के उसी घाट पर समाप्त हुई, जहाँ से शुरू हुई थी. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले के बरमान घाट पर.
10 अप्रैल को मध्य प्रदेश के ही ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग पर नर्मदा जल चढ़ाने के साथ उनकी ये चर्चित यात्रा समाप्त हो रही है.
और इसके साथ ही छह महीनों के संन्यास के बाद दिग्गी राजा राजनीतिक रंगमंच पर मुख्य भूमिका निभाने के लिए एक दफ़ा फिर आतुर नज़र आ रहे हैं.

राजनीतिक सूखा

जैसा कि दिग्विजय सिंह ने पहले भी ऐलान किया था, "मैं इस यात्रा के बाद पकौड़े तलने वाला नहीं हूँ." पर सियासी हलकों में यह सवाल तैर रहा है कि क्या नर्मदा का पावन जल उनके राजनीतिक सूखे को सींच पाएगा?
ये यात्रा जब शुरू हुई थी तब दिग्विजय सिंह राजनीतिक बियावान में भटक रहे थे. वह उनके जीवन के सबसे मुश्किल समयों में से एक था.
कांग्रेस में उनका क़द छोटा होता दिख रहा था. गोवा विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद कांग्रेस पार्टी, सरकार नहीं बना पाई थी.
पार्टी के राज्य प्रभारी के नाते उनकी किरकिरी हो रही थी. दुश्मन हावी होने लगे थे और दोस्तों को भी उनका 'राजनीतिक पतन' सामने दिख रहा था.

मध्य प्रदेश चुनाव

मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक चुनाव होने जा रहे हैं. परिक्रमा पूरी होने के बाद दिग्विजय सिंह अपने-आप को किंगमेकर की भूमिका में देख रहे हैं.
दस साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह ने हालाँकि साफ़-साफ़ कहा है कि वे सीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं और कांग्रेस को जिताने के लिए पार्टी में फेविकोल का काम करना चाहते हैं, पर साफ़ दिख रहा है कि उनकी महत्वाकांक्षा कुलांचे मार रही है.
उनकी पहली चाल मुख्यमंत्री पद के लिए कमल नाथ के नाम को फिर से आगे बढ़ाने की थी ताकि ज्योतिरादित्य सिंधिया का पत्ता काटा जा सके.
बहरहाल, दिग्विजय की नर्मदा यात्रा के मायने समझने के लिए मध्य प्रदेश वासियों के जीवन में इस नदी के महत्त्व को समझना होगा.
सारे कर्मकांडों का पालन
श्रद्धा और आस्था से ओत-प्रोत हज़ारों व्यक्ति हर साल नर्मदा नदी की कठिन यात्रा पर निकलते हैं.
परिक्रमावासी घर-परिवार से दूर सालों नर्मदा के किनारे गुजारते हैं, मांग कर खाते हैं, उपले और जलावन इकठ्ठा कर अपना खाना खुद पकाते हैं, जहाँ आश्रय मिला, सो जाते हैं.
इस इलाक़े की यह एकमात्र नदी है जो कभी नहीं सूखती है.
अपनी तीर्थ यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह ने यात्रा के सारे कर्मकांडों का पालन तो किया ही, साथ ही घोषणा के मुताबिक़ अपने आप को राजनीति से भी दूर रखा.
राजनीति पर नहीं बोलना उनके लिए बड़े संयम का काम रहा होगा क्योंकि इस यात्रा के पहले वे सुबह 6 बजे से ट्विटर की आरती उतारने बैठ जाते थे.

हिंदू-विरोधी छवि

अपने विवादास्पद बयानों के लिए कुछ हद तक कुख्यात हो चले दिग्विजय सिंह को राजनीति से दूर रहने का फ़ायदा यह मिला है कि यात्रा के दौरान उनकी हौसला अफ़ज़ाई के लिए न केवल उनकी पार्टी के नेता बल्कि बैंड-बाजे के साथ विरोधी नेता भी उनका स्वागत करते रहे हैं.
शिवराज सिंह चौहान के नर्मदा किनारे स्थित जैत गाँव (सीहोर ज़िला) से जब वे गुज़रे तो मुख्यमंत्री के भाई नरेन्द्र मास्टर साहेब ने मंच बनाकर उनका स्वागत किया.
कद्दावर भाजपा नेता प्रहलाद पटेल, जो ख़ुद नर्मदा परिक्रमा कर चुके हैं, उनसे मिलने कई दफ़ा पहुंचे.
और नर्मदा यात्रा का सबसे बड़ा फ़ायदा दिग्विजय सिंह को अपनी हिंदू-विरोधी छवि ख़त्म करने में मिला.

'छोटी बहन उमा भारती'

उनका सबसे प्रिय शगल गाहे-बगाहे संघ परिवार पर निशाना साधना रहा है. और वे हमेशा भगवा ताक़तों के निशाने पर रहे हैं.
लेकिन इस बार उनकी घोर विरोधी रहीं उमा भारती ने भी उन्हें "पुरातन मान्यताओं की मर्यादा" रखने का सर्टिफ़िकेट दे दिया.
यात्रा के भंडारे के लिए दिग्विजय सिंह का निमंत्रण मिलने पर अपने-आप को "छोटी बहन" बताते हुए साध्वी ने उन्हें एक चिठ्ठी भेजी.
उन्होंने लिखा, "साल में एक बार स्वयं गंगा जी भी नर्मदा जी में स्नान करके स्वयं को पवित्र करने आती हैं. मेरे पास अभी गंगा की स्वच्छता का दायित्व है इसलिए मुझे स्वयं भी नर्मदा जी के आशीर्वाद की आवश्यकता है. 10 अप्रैल के बाद आप दोनों जहाँ होंगे, आप दोनों को गंगाजल भेंट करके आप दोनों का आशीर्वाद लूंगी तथा इस परिक्रमा से प्राप्त पुण्य में से थोड़ा सा हिस्सा आप दोनों मुझे भी दीजियेगा."

कट्टर धार्मिक व्यक्ति

दिग्विजय सिंह लाख कहते रहें कि उनकी यात्रा अध्यात्मिक थी, पर उनके विरोधी यह मानने को तैयार नहीं हैं.
मध्य प्रदेश के 110 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुज़रने वाली इस पद-यात्रा में कांग्रेस के नेता जगह-जगह इकठ्ठे होकर ढोल-बाजे के साथ उनका उत्साह बढ़ा रहे थे.
क़स्बों, शहरों में पोस्टर, बैनर और स्वागत द्वार लगे थे. रास्ते में पड़ने वाले गाँव में बन्दनवार सज रहे थे, रंगोली बन रही थी. औरतें आरती की थाली और सिर पर मंगलकलश लेकर स्वागत में खड़ी थीं.
हौसला अफ़ज़ाई के लिए आ रही भीड़ में ख़ासी तादाद कांग्रेसियों की थी. आने वाले चुनाव के टिकटार्थी काफ़ी तादाद में अपने समर्थकों के साथ देखे जा सकते थे.
वैसे ये एक विडम्बना ही है कि दिग्विजय सिंह को अपने हिन्दू क्रेडेंशियल को साबित करना पड़ा. व्यक्तिगत जीवन में वे एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति हैं. कर्मकांडी और पूजा-पाठ करने वाले. 
जब वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उनके बारे में मज़ाक चलता था कि सारे प्रदेश की महिलाएं मिलकर भी उतने उपवास नहीं रख सकतीं जितने अकेले दिग्विजय रखते हैं.
वे नियमित रूप से वृन्दावन में गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं. मुख्यमंत्री रहते हुए भी वो एक दफ़ा अपने पूरे मंत्रिमंडल को परिक्रमा पर ले गए थे.
25 किलोमीटर चलने के बाद उनके कई सहयोगी पाँव में छालों की वजह से कई दिन लंगड़ाते रहे. छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ सहित ज़्यादा से ज़्यादा प्रमुख देवी मंदिरों तक वे नवरात्री के दौरान पहुँचने की कोशिश करते हैं.
महाराष्ट्र के पंढरपुर भी वो साल में एक दफ़ा ज़रूर जाते हैं. फिर भी क्या ईश्वर उनकी गुहार सुनेंगे?
Published by BBC.com 10 April 2018
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नर्मदा

Comments

  1. क्या सभी कुछ ईश्वर करेंगे? हमें अपने कर्मो पर भी भरोसा करना पड़ेगा। आज के चित्रपट पर कांग्रेस में दिग्गी राजा से ज्यादा शशक्त कोई नहीं। बीजेपी को अगर कोई हरा सकता है तो वो दिग्गी राजा हैं।

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