NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

मध्य प्रदेश में रेत माफिया का कहर


इस आतंक में पत्रकारों की बिसात ही क्या


NK SINGH


 

मध्य प्रदेश में राजनीतिक रसूख रखने वाले, धन और बाहुबल संपन्न रेत माफिया से टकराना बड़े दिल गुर्दे का काम है. खासकर तब जब आप एक ऐसे इलाके में काम करते हों जहाँ बोली के पहले गोली छूटती हो और जिसे दुनिया चम्बल घाटी के नाम से जानती हो.

भिंड के टीवी पत्रकार संदीप शर्मा ने यह दुस्साहस किया और उसकी कीमत रेत ढोने वाले एक ट्रक के नीचे अपनी जान देकर चुकाई.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्रक से कुचल कर मारे गए युवा पत्रकार की संदेहास्पद हालत में मृत्यु की जांच सीबीआई को सौंपने की घोषणा कर मामले से हाथ धो लिए हैं. 

पर संदीप शर्मा की उस चिठ्ठी की जांच कौन करेगा जो रेत माफिया और पुलिस गठजोड़ उजागर करने वाले एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद उन्होंने और उनके साथी विकास पुरोहित ने जिले के एसपी को चार महीने पहले लिखी थी

दोनों पत्रकारों ने साफ़ शब्दों में लिखा था: उक्त एसडीओपी से प्रार्थी और प्रार्थी के परिवार वालों को शंका हो गयी है कि किसी भी आपराधिक प्रकरण में फंसा सकता है, हत्या, एक्सीडेंट ऐसी घटना करा सकते हैं....प्रार्थीगण के साथ कोई हादसा होता है तो उसकी समस्त जिम्मेदारी एसडीओपी इंद्रवीर सिंह भदौरिया की होगी.

इस चिठ्ठी की कापी अब तक प्रधानमंत्री कार्यालय और मध्य प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृह सचिव, डीजीपी, आईजी, और मानव अधिकार आयोग में धूल खा रही है. 

दो पेज के इस दरखास्त में दोनों पत्रकारों ने अपने लिए पुलिस प्रोटेक्शन की गुहार लगायी थी और स्टिंग में फंसे पुलिस अधिकारी के तबादले की मांग की थी ताकि वे मामले में राजनीतिक दवाबका इस्तेमाल न कर सकें. 

सुरक्षा मिली, पर मर्डर के बाद 

३६ साल के संदीप अब इस दुनिया में नहीं हैं. हत्या के दो दिन बाद २८ मार्च की शाम उनके परिवार को सरकार ने पुलिस सुरक्षा दी. काश, यह काम चार महीने पहले हो गया होता!

२८ साल के विकास भिंड के अपने घर में बुरी तरह सहमे बैठे हैं. उनको न तो सुरक्षा मिली है, न ही उसकी कोई सुगबुगाहट दिख रही है. वे कहते हैं: स्टिंग उजागर होने के बाद माफिया का तो कुछ नहीं हुआ, उल्टा हमारे पास ख़बरें आने लगीं कि हमारा एनकाउंटर हो सकता है. हमें करीब दो महीने तक भिंड से गायब रहना पड़ा.” 

बन्दूक संस्कृति के लिए कुख्यात चम्बल के बीहड़ भारत के 'वाइल्ड वेस्ट' के रूप में जाना जाता है. 

रेत माफिया के खिलाफ कार्यवाही कर रहे युवा आईपीएस अफसर नरेन्द्र कुमार सिंह मार्च २०१२ में लगभग इसी तरह की एक दुर्घटनामें अवैध बालू से भरे एक ट्रेक्टर-ट्राली के नीचे मुरैना में कुचल दिए गए थे. उनकी पत्नी मधुरानी तेवतिया भी मध्य प्रदेश कैडर (२०१० बैच) की आईएस अफसर थीं. पर इस दुर्घटनाके बाद गर्भवती मधुरानी ने ताबड़तोड़ अपना कैडर बदलवा कर मध्य प्रदेश से तबादला करवा लिया.

भ्रष्ट नेता-अफसर-कारोबारी गठजोड़

उस युवा अफसर की सनसनीखेज हत्या के बादउस समय भी मध्य प्रदेश सरकार ने लम्बी-चौड़ी डींगे हांकते हुए, रेत माफिया को नेस्तनाबूद करने की बात कही थी और एक बड़ा अभियान चलाया था. पर भ्रष्ट नेता-अफसर-कारोबारी का गठजोड़ इतना तगड़ा है कि माफिया ने महज तीन साल बाद उसी मुरैना में पुलिस के सिपाही को एक डम्पर के नीचे कुचल दिया गया. 

मध्य प्रदेश में यह भी पहली दफा नहीं हुआ है कि राह में रोड़ा बन रहे किसी पत्रकार को रास्ते से हटाने में खदान माफिया का नाम आया हो. इसके पहले २०१५ में बालाघाट जिले में अवैध खनन के खिलाफ अभियान चला रहे एक स्थानीय पत्रकार संदीप कोठारी को माफिया ने जिन्दा जला दिया था. 

छोटे शहरों में काम करने वाले निर्भीक पत्रकार, ईमानदार सरकारी कर्मचारी और जमीन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्त्ता बालू माफिया के निशाने पर रहते हैं. पिछले कुछ वर्षों में कम से कम एक दर्ज़न लोग बेख़ौफ़ माफिया के हाथों मारे जा चुके हैं.

बालू है तो लघु खनिज, पर इसका नियंत्रण बड़े माफिया के हाथ में है.

जगह-जगह राजनेता भी इस धंधे में शामिल हैं. और ये धंधे वाले केवल एक दल में नहीं हैं। बालू के धंधे में मुनाफा इतना है और धंधा करने वाले इस कदर रसूखदार कि नेशनल ग्रीन ट्राईब्यूनल के तमाम आर्डर अवैध खनन बंद करवाने में विफल रहे हैं.

उम्मीद की एक किरण पिछले साल उभरी थी, जब सिहोर के एक अदना से माइनिंग अफसर ने मुख्यमंत्री के भतीजे का डम्पर पकड़ा था. शिवराज सिंह चौहान ने खुद उस अफसर, रश्मि पांडे, की पीठ ठोंकी थी और सारे कलेक्टरों से कहा था कि रसूखदार लोगों की परवाह किये बिना रेत का अवैध खनन बंद करवाएं.

बाद में सरकार ने पूरे प्रदेश में बड़े जोर-शोर से अभियान चलाया भी. 
पर जैसा कि भिंड की हाल की घटना बताती है माफिया एक बार फिर सरकारी तंत्र पर हावी है. मामला केवल पैसे का या मुनाफे का ही नहीं है.

विशेषज्ञों का कहना है कि रेत की बेलगाम लूट की से वजह नदियों की इकोलॉजी इस कदर गड़बड़ा गयी है कि जलीय जीवन और उसके किनारे बसने वाले मनुष्यों का जीवन दोनों खतरे में हैं.

मध्य प्रदेश के तेज तर्रार आइएएस अफसर एमएन बुच, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मुरैना से की थी, कहा करते थे, “सरकारें इकबाल से चलती हैं.वह इकबाल कहीं नज़र नहीं आता है.

Published in Rajasthan Patrika and Patrika on 29 March 2018

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