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Times of India, the Old Lady of Boribunder |
2nd most imp job in India & other
fables of journalism
NK SINGH
किस्सा उस ज़माने का है जब टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादकों को
लिफाफों पर पते लिखने का काम नहीं दिया गया था. इस वाकये के कई किरदार अब इस
दुनिया में नहीं हैं.
श्री राजेन्द्र माथुर की मृत्यु हो चुकी थी और एसपी सिंह
नवभारत टाइम्स के संपादक बन चुके थे. तब मैं भोपाल में ही इंडिया टुडे के लिए काम
करता था. एसपी चाहते थे कि मैं उनके अख़बार में काम करने दिल्ली आ जाऊं.
उन दिनों मुझे ऑफर लैटर इकठ्ठा करने का बड़ा शौक था. साथ ही
दूसरे अख़बारों के खर्चे पर दिल्ली-बम्बई घूमना भी हो जाता था.
एसपी सिंह साहब ने मुझे मिलने के लिए समीर जैन के पास भेज
दिया. तब उन्होंने ताजा-ताजा बेनेट कोलमेन की कमान संभाली थी. बड़ा जलवा था.
उनके कमरे में जब मैं पहुंचा तो ६-७ लोग और थे. ज्यादातर
टाइम्स ऑफ़ इंडिया और इकनोमिक टाइम्स के सीनियर लोग थे. महफ़िल जमी थी. हलके फुल्के
माहौल में गपबाजी चल रही थी.
दिलीप पदगांवकर का इंटरव्यू
उन दिनों टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक दिलीप पदगांवकर साहब
हुआ करते थे. वे अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि वे टाइम्स
ऑफ़ इंडिया के आखिरी संपादक थे जिन्हें लोग अख़बार के बाहर भी जानते थे.
तब थोड़े दिन पहले ही कहीं पदगांवकर साहब का एक इंटरव्यू छपा
था. उसकी बड़ी चर्चा हो रही थी. उस इंटरव्यू में पदगांवकर साहब ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया
का और उसके संपादक के ओहदे का महत्त्व बताया था. उनका कहना था कि देश में प्रधानमंत्री
के बाद सबसे महत्वपूर्ण नौकरी उन्ही की थी.
समीर जैन की महफ़िल में बैठे एक पत्रकार ने ---- जो बाद में
खुद टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक बने ---- उस इंटरव्यू का जिक्र किया.
उन्होंने समीर से पूछा, “Have you
seen that interview?”
समीर ने कहा उन्होंने नहीं देखा है
और जानना चाहा कि उसमें है क्या?
उन्हें बताया गया, “Dileep says that his is the second most important job in the country.”
इसपर समीर की त्वरित
टिप्पणी लाजवाब थी.
उन्होंने छूटते ही कहा, “Then I
must be having the most important job in the country.”
भारत में मीडिया का चाल, चरित्र और
चेहरा बदलने वाले समीर जैन से मेरी यह पहली, और शायद आखिरी, मुलाकात थी.
लेकिन उस
दिन से मैं उनका मुरीद हूँ.
क्या आप को ऐसा नहीं लगता कि उनके
इस एक वाक्य में मीडिया के पॉवर स्ट्रक्चर का निचोड़ छिपा है?
आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा.
(Edited excerpts from my
speech at Editors Conclave organised by ITM University at Gwalior on 14th
April 2018.)
Tweets @nksexpress
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Samir Jain of TOI, illustration courtesy The Caravan magazine |
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Dileep Padgaonkar, pic courtesy Open magazine |
Dilip padgaonker shall always be remembered as an intellectual who had command on so many subjects including cinema he knew the indian meilu and how to keep indian democracy intact through intervention of media .
ReplyDeleteI agree. He was giant of a man. That is why his remark about TOI editorship sounded all the more vain. Pl also remember his signed article in TOI defending the management decision to sell editorial space in entertainment pull out.
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