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Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

हिंदुत्व की प्रयोगशाला से निकला एक प्रधानमंत्री

Modi flies from Ahmedabad to New Delhi after 2014 election

Don't expect Ramrajya from Modi


An article published on 8 May 2014


नरेन्द्र कुमार सिंह


भाजपा के कांग्रेसीकरण की जो प्रक्रिया काफी पहले चालू हुई थी, वह अब लगभग पूरी हो गयी है. “अबकी बार मोदी सरकार” का नारा हमें देवकांत बरुआ के उस अविस्मरणीय नारे की याद दिलाता है – “इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इस इंडिया”. कांग्रेस की तरह ही भाजपा में भी संगठन गौण हो गया है और व्यक्ति महत्वपूर्ण.

मोदी अगर प्रधानमंत्री बने तो पूरी सरकार उनके इर्द गिर्द नाचेगी. बाकी सारे नेता हाशिये पर रहेंगे.
मोदी गुजरात को अपने रोल मॉडल के रूप में पेश करते नहीं अघाते. वहां से मोदी (और उनके सिपहसालार अमित शाह) के अलावा और किसी भाजपा नेता का नाम आपने सुना है?

संघ परिवार गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला के रूप में पेश करने में गर्व करता था. एक ज़माने में किसी भी अन्य प्रदेश के मुकाबले गुजरात में भाजपा के अनेक कद्दावर नेता होते थे ---- शंकरसिंह वाघेला, केशुभाई पटेल, काशीराम राणा, सुरेश मेहता आदि. पर नरेन्द्र मोदी के दृश्य पर आने के बाद ये दिग्गज नेताओं इतने बौने हो गए कि दिखाई देने ही बंद हो गए.

और तो और, राजसूय यज्ञ की चपेट में आने से संघ परिवार भी नहीं बचा. विश्व हिन्दू परिषद् के प्रवीण तोगड़िया और मोदी की जोड़ी एक ज़माने में अहमदाबाद में खूब जमती थी. तोगड़िया के स्कूटर की पिछले सीट पर अक्सर मोदी ही विराजमान होते थे. पर पिछले दस साल से तोगड़िया गुजरात के राजनीतिक परिदृश्य से लगभग गायब हैं. 

जिन्ना वाले बयान पर लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर सबसे जोरदार लाठियां अहमदाबाद में ही बरसाई गयी. (तब आडवाणी मोदी के सबसे बड़े समर्थक होते थे.) संघ परिवार के एक किसान संगठन से रातों-रात सरकारी मकान खाली करा लिया गया. वह संगठन तोगड़िया समर्थकों के प्रभाव में था.

पार्टी में मोदी का एकछत्र राज होगा 

गुजरात की प्रयोगशाला के नतीजे इशारा करते हैं कि सरकार के साथ-साथ पार्टी में भी मोदी का एकछत्र राज होगा. दिल्ली में उनकी आमद के बाद भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का हाल हम देख ही चुके हैं. लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और सुषमा स्वराज पहले ही हाशिये पर आ गए हैं.

असल में मोदी की सरकार चलने की शैली एक राजनेता की कम और एक कंपनी के सीइओ की ज्यादा रही है. उन्होंने इस इमेज को अच्छी तरह पाला पोसा भी है. जल्दी से जल्दी अमीर बनने की चाहत रखने वाले युवा वर्ग में उनकी यह इमेज सबसे लोकप्रिय है.

अपने ४० वर्षों की पत्रकारिता के दौरान विभिन्न राज्यों के कई मुख्यमंत्रियों के संपर्क में आया हूँ. इनमें भैरोंसिंह शेखावत जैसे नेता थे जिन्हें अपने बेडरूम में धोती बांधते  हुए भी आगंतुकों से मिलने में कोई परहेज़ नहीं था, मोतीलाल वोरा जैसे राजनीतिज्ञ थे जिनके चेम्बर में कई दफा इतने लोग घुस आते थे कि उन्हें खास लोगों से बात करने बाथरूम का इस्तेमाल करना पड़ता था और शांता कुमार जैसे मुख्यमंत्री थे जिनसे मिलने में दांतों तले पसीना आ जाता था.

मोदी जैसा कोई नहीं

पर मोदी जैसा आजतक कोई नहीं मिला.

मैं तब इंडियन एक्सप्रेस के गुजरात संस्करणों का संपादक बन कर अहमदाबाद पहुंचा था. मोदी से मुलाकात का समय लेकर गांधीनगर में मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचा. बाहर देखा तो पूरा सन्नाटा. दूर पुलिस की जिप्सी खड़ी थी. मेरा माथा ठनका. मुझे टाइम देकर बन्दा गायब तो नहीं हो गया. 

बंगले के कंपाउंड में घुसा. वहां भी पुलिस के संत्री को छोड़कर एक चिड़िया तक नहीं. मेरा शक पक्का हो गया. अन्दर दफ्तर में दो लोग बैठे थे. वहीँ के कर्मचारी. न तो कोई नेता टाइप आदमी नजर आ रहा था, न ही फाइल लेकर इंतजार करते अफसरों की फौज, जैसा कि आम तौर पर मुख्यमंत्रियों के यहाँ दिखता है. 

लगता है लम्बा इंतजार करना पड़ेगा, मैंने मन में सोचा. पर अगले मिनट ही मैं आगंतुक कक्ष में था, और उसके एक मिनट बाद मुख्यमंत्री के सामने!

मोदी से मैं पहले भी मिलता था. गुजरात में राजनीतिक उथल पुथल के दौरान उनके स्कूटर के पीछे बैठ कर अहमदाबाद के मोहल्लों में घूमा था.

सीइओ मोदी 

पर सीइओ मोदी से यह मेरी पहली मुलाकात थी.

सरकार को वे एक कार्यकुशल कंपनी की तरह चलाते हैं. इस कंपनी का मुख्य मकसद सारे शेयर होल्डर्स के लिए समृधी कमाना है. एक अख़बार के उद्घाटन में उन्होंने एक दफा कहा था, “मनी (पैसा) तो हम गुजरातियों के डीएनए में ही है.”

गुजरात मॉडल को देखें तो मोदी सरकार पर यही सीइओ संस्कृति हावी रहेगी. उनकी सरकार कारोबार के लिए मित्रवत होगी और मित्रों के लिए कारोबारी होगी. उनके लिए अच्छे दिन आने वाले हैं.
कमजोर केंद्र और निरंकुश सूबेदारों से त्रस्त जनता के लिए भी राहत की खबर है. गुजरात का अनुभव बताता है कि नयी सरकार दमदारी से काम करेगी.

एक उदारहण. मोदी ने सत्ता में आने के फ़ौरन बाद गुजरात में बिजली चोरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की थी. एक लाख से ज्यादा लोगों के खिलाफ केस रजिस्टर किये गए थे. लगभग ३०,००० लोगों को तो हथकड़ी लगी थी. आज़ाद भारत में इस तरह के उदारहण बहुत कम मिलते हैं.

सख्त सरकार का दूसरा उदाहरण. यह मोदी का ही दम ख़म था कि बजरंगियों के विरोध के बावजूद उनकी सरकार ने गांधीनगर में २०० से ज्यादा मंदिर तोड़े. यह मंदिर सार्वजनिक जमीन पर नाजायज कब्ज़ा कर बनाये गए थे. विश्व हिन्दू परिषद् के नाराज नेता अशोक सिंघल ने तब मोदी की तुलना महमूद गजनी से की थी.

रामराज्य की उम्मीद रखना ग़लतफ़हमी

सही है कि मोदी ने गरीबी को काफी नजदीक से देखा है. पर वह इस बात की गारंटी नहीं कि उनकी सरकार आने से गरीबों के जीवन स्तर में कोई बड़ा सुधार आने वाला है. गुजरात में ३९ लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं. कुपोषण और शिशु मृत्यु दर जैसे सामाजिक संकेतक गुजराती समाज की कोई खुशहाल छवि नहीं छोड़ते.

मोदी के आने के बाद रामराज्य आने की उम्मीद रखने वाले ग़लतफ़हमी में हैं. भ्रष्टाचार को लेकर नयी सरकार का रवैय्या उतना ही उदासीन रहेगा जितना वर्तमान सरकार का है. सत्ता में आने के बाद मोदी ने गुजरात में नारा दिया था, “हम खावो नथी, खावा देतो नथी.” 

पर फिर भी गुजरात ने लोक आयुक्त की नियुक्ति में दस साल लगा दिए - और वह भी सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद किया. अब मोदी सरकार नया कानून लेकर आई है ताकि लोक आयुक्त की नियुक्ति में गवर्नर और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस का कोई रोल नहीं रहे!

हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार देश में एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरा है. अगर भाजपा ने गुजरात जैसा ही ढुलमुल रवैय्या दिल्ली में भी लोकपाल को लेकर दिखाया तो जनता को अपनी राय बदलते देर नहीं लगेगी.

Published in Pradesh Today of 8 May 2014

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