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Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

कैसे शिवराज ने अपने रकीबों का एक-एक कर सफाया किया

What is the secret of Shivraj's success?


NK SINGH



मध्य प्रदेश का नाम लेते ही एक ऐसे राज्य की छवि सामने आती हैं जहां अफसर नोट की गड्डियों पर सोते हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है। चपरासी करोड़पति हैं। कुपोषण के मामले में मध्यप्रदेष सहारा-पार अफ्रीकी मुल्कों से भी निचलें पायदान पर है। आदिवासी इलाकों में बच्चे कुपोषण से दम तोड़ रहे हैं। सरकारी राशन में आधी मिट्टी निकलती है। मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले का शुमार आजाद भारत के इतिहास में सबसे बड़े तथा घृणित घोटालों में होता हैं। उसमें राज्य के मिनिस्टर से लेकर आला अफसर तक शामिल थे।

पर इस सबके बावजूद शिवराज सिंह चौहान लगातार ग्यारह वर्षों से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं। पिछले साल उन्होंने मध्य प्रदेश पर सबसे लंबे समय तक राज करने वाले मुख्यमंत्री का तमगा हासिल कर लिया।

भारतीय जनता पार्टी के हाई कमाण्ड ने नवम्बर 2005 में उन्हें पहली दफा राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था। तब भाजपा को सत्ता में आए महज 21 महीने हुए थे। पर 21 महीनों में वह तीन दफा मुख्यमंत्री बदल चुकी थी।  जाहिर है, लोग सोचते थे कि चौहान भी एक-दो साल से ज्यादा नहीं चल पाएंगे।

इस धारणा के पीछे एक पुख्ता वजह थी। उस समय मध्य प्रदेश के बाहर लोगों ने उनका नाम भी नहीं सुना था। वे सांसद तो थे, पर उनकी छवि परदे के पीछे रहकर संगठन का काम करने वाले एक जमीनी कार्यकर्ता की थी। उनमें न उमा भारती वाला ग्लैमर था, न दिग्विजय सिंह वाली तेजी और न ही अर्जुन सिंह वाला आभा मंडल। 

‘‘मुख्यमंत्री बनने के पहले मैं किसी पंचायत का सरपंच भी नहीं बना था,‘‘ वे कहते हैं। जिस दिन भाजपा हाई कमाण्ड ने मुख्यमंत्री के रूप में उनके चयन की घोषणा की वे नई दिल्ली के अपने सांसद-फ्लेट में दोपहर की नींद ले रहे थे। उनकी पत्नी ने उन्हें जगाकर बताया कि पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया हैं। तब तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि चौहान भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं.

पर चौहान न केवल मुख्यमंत्री बने, बल्कि तीन-तीन बार बने। चौहान ने यह किला किस तरह फतह किया

उनके आलोचक मानते हैं कि ऐसा संभव हुआ, विरोधी कांग्रेस पार्टी की कमजोरी की वजह से। उनके प्रशंसक कहते हैं कि यह बेहतरीन सरकार चलाने के उनके कौशल और ईमानदारी के साथ परिश्रम करने का फल है।

यह कोई आसान सफर नहीं रहा है।

एकाएक मुख्यमंत्री बनाये जाने की वजह से उनके ढ़ेर सारे शक्तिशाली
राजनीतिक शत्रु भी बने ---- पार्टी में भी, और पार्टी के बाहर भी। तब तक मध्य प्रदेश की सबसे प्रसिद्ध भाजपा नेता उमा भारती हुआ करती थीं। उनको तो हमेशा यह लगता रहा कि चौहान ने नाजायज तरीके से उनकी कुर्सी हथिया ली है क्योंकि 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में तो आखिरकार वही लाई थीं।

वह क्या जादू की छड़ी थी जिससे प्रदेश की राजनीति का पिछली पंक्ति का यह नेता लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बना, दो-दो विधानसभा चुनावों में उसने भाजपा को भारी बहुमत से जिताया, कांग्रेस का राजनीतिक सफाया किया और अपने शक्तिशाली शत्रुओं को हाशिये पर ढ़केल दिया। आज प्रदेश भाजपा में कोई भी नहीं है जो उनके नेत्रृत्व को चुनौती दे सके. 

उमा भारती ने जब भाजपा से बाहर जाकर जनशक्ति दल बनाया तो उनकी पार्टी को न केवल करारी हार का सामना करना पड़ा बल्कि वे खुद भी चुनाव में बुरी तरह पराजित हुई। चौहान की पहचान एक ऐसे नेता के रूप में बनी जो अपने बलबूते पर अपनी पार्टी को चुनाव जिता सकते है।


थोड़े समय में उनकी गिनती भाजपा के महत्वपूर्ण नेताओं में होने लगी। यहां तक कि 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी के पितृपुरूष लालकृष्ण आडवाणी भावी नेता के रूप में उनका नाम लेने लगे थे। इस वजह से लोकसभा चुनाव के पहले वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रतिद्धंदी के रूप में भी देखे जाने लगे।

चौहान मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में और शहरी गरीबों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। उनकी तारीफ करने वाले लोग मानते हैं कि यह राज्य में हुये चौतरफा विकास के वजह से हुआ है. 

चौहान के कार्यकाल में राज्य का बजट सात गुना बढ़ा है, सकल घरेलू उत्पाद में पांच गुना वृद्धि हुई है, कृषि की सालाना विकास दर 20 प्रतिशत रही है, बिजली उत्पादन 2900 मेगावाट से बढ़कर 17500 मेगावाट हो गया है और सिंचाईं क्षमता साढे़ सात लाख हेक्टर से बढ़कर 36 लाख हेक्टर हो गई है।

मालदार लोगों से किसानों की पार्टी 

जाहिर है कि इन इन उपलब्धियों ने उनकी सफलता में योगदान किया होगा। पर चौहान की लोकप्रियता के पीछे वास्तविक कारण दूसरे हैं। उनके पहले मध्य प्रदेश में भाजपा की पहचान छोटे दुकानदारों और मालदार लोगों की पार्टी के रूप में थी। चौहान के राज में अब वह किसानों और शहरी गरीबों की पार्टी के रूप में बदल गई है। मालदार लोगों और दुकानदारों से वह ऊपर उठ गई। इससे एक तरफ जहां कांग्रेस की जमीन खिसकी है, वही भाजपा का वोट बैंक व्यापक हो गया हैं।

चौहान ने इस वोट बैंक में एक और नया वर्ग जोड़ा हैं - महिलाओं का। बड़े सुनियोजित तरीके से उन्होंने एक समूह के रूप में महिलाओं पर अपनी सरकार का ध्यान केन्द्रित किया हैं। बालिकाओं के लिये उनकी प्रिय लाड़ली लक्ष्मी योजना है, जिसका बखान करते वे नहीं थकते, महिलाओं के लिये सरकारी नौंकरियों में उन्होंने एक-तिहाई आरक्षण दिया है और स्थानीय निकायों के चुनाव में आधी सीटें उनके लिये रिजर्व कर दी हैं।

चौहान की लोकप्रियता के पीछे उनकी सरकार की लोक लुभावन योजनायें भी हैं। मध्य प्रदेश सरकार किसानों को बिना ब्याज खेती के लिए कर्ज देती है, साथ ही उनकी मदद करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती। अभी पिछले दिनों जब जरूरत से ज्यादा पैदावार की वजह से बाजार में प्याज आठ आने किलो भी नहीं बिक रहा था, मध्यप्रदेष सरकार ने अपने खजाने से 70 करोड़ रूपये लगाकर उस प्याज को खरीदा। बाद में अपने गोदामों में सड़ रहे प्याज को फिंकवाने पर 7 करोड़ रूपये अलग से खर्च किये।

वे एक खांटी नेता हैं। वे घोषणा करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते। लोक लुभावन घोषणायें करने को लेकर वे विख्यात हो चुकें हैं। शामत राज्य के मुख्य सचिव की होती है, जिसे मुख्यमंत्री द्वारा की गई नित नई घोषणाओं पर नजर रखनी पड़ती है और बाद में अपने सिर के बाल नोचने पड़ते हैं कि उन्हें किस तरह पूरी किया जाए।

चौहान की लोकप्रियता की एक वजह है,उनकी आम आदमी की छवि। वे ग्रामीण जनता के साथ आसानी से घुलमिल जाते हैं, उन्ही की तरह बोलते हैं और उन्ही की तरह सोचते हैं। आम लोगों को भी यह लगता है कि उनके बीच का ही एक आदमी मुख्यमंत्री बना हैं। सहज स्वभाव के शिवराज को आप अगर हज़ार-दो हज़ार लोगों के बीच खड़ा कर दें तो वे भीड़ में खो जाएंगे। यही कमजोरी उनकी ताकत है।

उनके मुकाबले खड़े कांग्रेस के बड़े नेता आभिजात्य पृष्ठभूमि से आते हैं। कमलनाथ औरज्योतिरादित्य सिंधिया दून स्कूल की देन हैं और दिग्विजय सिंह डेली काॅलेज में पढ़े हैं। वहीं, शिवराज सिंह चैहान ने भोपाल के सरकारी स्कूलों में टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ाई की है।

उनकी विनम्रता भी विख्यात है। पिछले साल झाबुआ जिले के पेटलावाद में बारूद के अवैध भंडार में विस्फोट की वजह से 78 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। सरकारी तंत्र की इस विफलता पर स्थानीय लोगों का गुस्सा उफान पर था। सरकारी अफसरों के रोकने के बावजूद चैहान भीड़ के बीच पहुंचें और वहीं सड़क पर बैठकर उन्होंने लोगों का दुख बांटने की कोशिश की। वहां उनकी विनम्रता ही काम आई।

चौहान की फोटो बड़ी, मोदी की छोटी

चौहान की लंबी पारी की वजह है, सही अवसरों की पहचान करना और परिस्थितियां अनुकूल न होने पर फौरन कदम पीछे खींचना। 2013 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में भाजपा ने जो पोस्टर छपवाए थे उन पर चौहान की फोटो बड़ी थी और नरेन्द्र मोदी की छोटी। इसकी खासी चर्चा भी रही, हालांकि तब तक यह साफ हो चुका था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में देख रहा है।

पर प्रदेश नेतृत्व का जवाब था कि मध्यप्रदेष में मोदी नहीं, चौहान ही चुनाव जितवा सकते हैं. पर कुछ महीनों बाद ही जब मोदी सत्ता में आए तो चौहान ने ऐलान किया कि नये प्रधानमंत्री भारत के लिये ‘‘भगवान का दिव्य वरदान‘‘ हैं.

चौहान राजनीतिक शतरंज के खेेल में माहिर हैं। जब कांग्रेस दिल्ली में सत्ता पर काबिज थी तो मुख्यमंत्री होने के बावजूद चौहान विपक्ष के नेता की भूमिका भली भाँति निभाते थे। पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर अपने मिनिस्टरों के साथ साइकिल चलाकर दफ्तर जाने का स्टंट करना हो, या राज्य के प्रति केन्द्र के ‘‘भेदभाव भरे रवैये‘‘ पर विरोध- प्रदर्शन, वे सबमें आगे रहते थे।

राज्य में उन्होंने कभी भी विपक्ष को अपने ऊपर हावी नही होने दिया। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने कांग्रेस में बड़े पैमाने पर तोडफोड़ की थी और कई महत्वपूर्ण नेताओं को अपनी पार्टी में ले आये थे।

जाहिर हैं इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। उस चुनौती का नाम है ---- शिवराज सिंह चौहान।

Published in Tehelka (Hindi) of 31 Dec 2016

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