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Bail for Union Carbide chief challenged

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NK SINGH Bhopal: A local lawyer has moved the court seeking cancellation of the absolute bail granted to Mr. Warren Ander son, chairman of the Union Carbide Corporation, whose Bhopal pesticide plant killed over 2,000 persons last December. Mr. Anderson, who was arrested here in a dramatic manner on December 7 on several charges including the non-bailable Section 304 IPC (culpable homicide not amounting to murder), was released in an even more dramatic manner and later secretly whisked away to Delhi in a state aircraft. The local lawyer, Mr. Quamerud-din Quamer, has contended in his petition to the district and sessions judge of Bhopal, Mr. V. S. Yadav, that the police had neither authority nor jurisdiction to release an accused involved in a heinous crime of mass slaughter. If Mr. Quamer's petition succeeds, it may lead to several complications, including diplomatic problems. The United States Government had not taken kindly to the arrest of the head of one of its most powerful mul...

शिवराज के पुत्र के कदम राजनीति की ओर


Shivraj's son may enter public life


 नरेन्द्र कुमार सिंह


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने बचपन में ही राजनीति की ओर कदम बढ़ा दिए थे.

उनकी ऑफिसियल वेबसाइट के मुताबिक जब वे महज़ नौ साल के थे तो उन्होंने अपने गांव में खेतिहर मजदूरों को संगठित कर उनके हक़ की लड़ाई लड़ी और उनकी मजदूरी दोगुनी करवा कर ही दम लिया.

सोलह साल के होते होते शिवराज राजनीति में पूरी तरह दीक्षित हो गए थे. वे भोपाल में अपने स्कूल की स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट बन चुके थे और साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र इकाई, विद्यार्थी परिषद्, के नेता बन चुके थे. 

एक साल बाद ही इमरजेंसी के दौरान तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. मीसा के तहत जेल में बंद होने वाले वे सबसे कम उम्र के छात्र थे. उन्होंने पूरे नौ महीने भोपाल सेंट्रल जेल में गुजारे, जहाँ सीनियर भाजपा और संघ के नेताओं के सानिध्य में उन्होंने सार्वजनिक जीवन का ककहरा सीखा.

अचरज नहीं कि शिवराज के पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान भी २३ साल की उम्र में ही राजनीति में सक्रीय हो गए हैं.

सिंधिया की मांद में हमला

पूत के पाँव पालने में ही दीखते हैं.

पिछले दिनों उन्होंने शिवपुरी जिले के कोलारस जाकर किरार-धाकड़ समाज की एक रैली में जोरदार चुनावी भाषण दिया. अपने पिता के राजनीतिक विरोधियों पर जोरदार हमला बोलते हुए उन्होंने राज्य सरकार की उपलब्धियों का बखान किया और जनता से भाजपा को मजबूत करने की अपील की.

सभा में सत्तारूढ़ दल के स्थानीय विधायकों के अलावा पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष रामेश्वर शर्मा भी मौजूद थे.

कोलारस विधान सभा सीट के लिए २४ फरवरी को उपचुनाव होने जा रहे हैं. यह सीट गुना लोक सभा क्षेत्र का हिस्सा है, जहाँ से कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद हैं. इस पूरे इलाके में ग्वालियर के पूर्व राजघराने की और उसके वारिस सिंधिया की तूती बोलती है.

पर कार्तिकेय न केवल शेर की मांद में घुसे बल्कि उन्होंने शेर को ललकारा भी. बिना सिंधिया का नाम लिए उन्होंने एक मंजे हुए राजनेता की तरह भाषण दिया: “राजतन्त्र का जमाना नहीं रहा. अब लोकतंत्र है. इस क्षेत्र के एक सांसद मेरे पिता को यहाँ से भगाने की बात कहते हैं, उन्हें और मंत्रियों को कौरव कहते हैं. इस निम्न स्तर की राजनीति का जबाव जनता देगी.”


कार्तिकेय की रैली की ख़ास बात यह थी कि उसी समय और उसी जगह, केवल एक दीवार के फासले पर सिंधिया भी किरार-धाकड़ समाज की एक सामानांतर सभा को संबोधित कर रहे थे.

कोलारस विधान सभा क्षेत्र में इस पिछड़ी जाति के लगभग १८ प्रतिशत वोट हैं. शिवराज और कार्तिकेय भी इसी समुदाय से आते हैं.

समझा जाता है कि सिंधिया जैसे बड़े नेता के मुकाबले कार्तिकेय को खड़ा करना राजनीति की बिसात पर एक सोची समझी चाल थी.

इससे कार्तिकेय एकाएक फोकस में आ गए.

बहुमुखी प्रतिभा के धनी 

पिछले कुछ दिनों की उनकी गतिविधियों पर नजर डालें तो कार्तिकेय बहुमुखी प्रतिभा के धनी नजर आते हैं.

वे अभी पुणे के सिम्बियोसिस लॉ स्कूल में वकालत की पढाई कर रहे हैं. अपने पिता की तरह वे भी स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट हैं.

साथ में वे एक सफल व्यवसायी भी बन कर उभरे हैं और एक के बाद एक नए काम शुरू कर रहे हैं. पिछले साल ही भोपाल के एक पाश मार्केट में उन्होंने फूलों की एक दूकान खोली जहाँ वे अपने पारिवारिक फार्म हाउस पर उगाये जा रहे विदेशी फूल बेचते हैं.

मुख्यमंत्री के पुत्र इस साल बैंकों से छह करोड़ का लोन उठाकर एक विशाल, मॉडर्न डेरी खोलने जा रहे हैं, जहाँ पाली जा रही विदेशी गायें “दूध से धुला दूध” देंगी जिसे शुरुआत में विदिशा और भोपाल के बाज़ार में बेचा जायेगा. पूरे भोपाल की सड़कें उनके दूध के ब्रांड के होर्डिंग से अटा पड़ा है.

एक अनौपचारिक बातचीत में शिवराज सिंह ने कुछ टीवी रिपोर्टरों को बताया कि इस प्रोजेक्ट के आने से पूरे इलाके में किसानों की तकदीर उसी तरह बदल जाएगी जैसा अमूल के आने से हुआ था.                 

सार्वजनिक जीवन में शिवराज सिंह के बड़े पुत्र की दिलचस्पी – छोटे पुत्र अभी अमेरिका में पढ़ रहे हैं – मध्य प्रदेश के सियासी हलकों में पिछले कुछ समय से चर्चा में रहा है.

इसका पहला संकेत उस समय मिला जब कुछ महीने पहले राज्य सरकार की बहुप्रचारित नर्मदा रैली यात्रा के १०० वें दिन शिवराज के गृह ग्राम जैत पहुंची. यात्रा के स्वागत में आयोजित समारोह में शिवराज-पुत्र ने मंच से भाषण दिया. प्रदेश भाजपा के तमाम कद्दावर नेता और ढेरों कैबिनेट मंत्री इस समारोह में श्रोता की तरह सामने बैठे थे.

गदगद शिवराज ने बाद में मीडिया के लोगों को बताया कि उन्हें मालूम नहीं था कि उनका बेटा इतना अच्छा भाषण दे लेता है.

अपने पिता के विधान सभा क्षेत्र बुधनी में आयोजित मीटिंगों में कार्तिकेय यदा-कदा चीफ गेस्ट या अध्यक्ष आदि बनकर बनकर भाषण देते रहते हैं.

पिछले विधान सभा चुनावों में परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उन्होंने भी अपने पिता के लिए प्रचार किया था. पर कोलारस की उनकी बहु प्रचारित रैली अपने इलाके के बाहर पहली मार थी.

कांग्रेस शीशे के घर में

सियासत में शिवराज-पुत्र की चहल कदमी को कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी में वंशवादी राजनीति का परिणाम करार दिया है. यह आलोचना करते वक्त वे शायद यह भूल जाते हैं कि शीशे के घर में रहने वाले दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते.

मध्य प्रदेश के ६० साल के इतिहास में एक भी मुख्यमंत्री ऐसा नहीं हुआ है जिसके पुत्र या नजदिकी रिश्तेदार ने राजनीति में घुसपैठ नहीं की है. आज तक जितने भी मुख्यमंत्री हुए हैं, उनके पुत्र या निकट के सम्बन्धी बड़े बड़े सियासी ओहदों तक पहुंचे हैं. 

वैसे भी, कार्तिकेय सिंह चौहान इस साल के अंत में होने वाले विधान सभा चुनाव लड़ने की पात्रता नहीं रखते हैं. उनका जन्म २३ मई १९९४ को हुआ था. अगले साल मई में वे २५ साल का होने के बाद ही वे चुनाव लड़ पाएंगे.

सियासी हलकों में कयास लगाये जा रहे हैं कि युवा कार्तिकेय को अपने पिता की पारंपरिक विदिशा लोक सभा सीट के लिए तैयार किया जा रहा है. शिवराज ने यह सीट २००५ में मुख्यमंत्री बनने पर खाली किया था. 

बाद में इस सीट से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी. हरियाणवी स्वराज की मध्यप्रदेश में न तो जमीनी पकड़ है और न ही कोई दिलचस्पी. उनका शुमार मध्य प्रदेश के उन नेताओं में होता है जिन्हें पार्टी लीडरशिप राज्य पर थोपता रहा है.   

कार्तिकेय चुनाव लड़ें या न लड़ें, इतना तो पक्का है कि राज्य के और केंद्र के कई मंत्रियों समेत भाजपा के कम से कम एक दर्ज़न बड़े नेता आने वाले चुनाव में अपने पुत्रों के लिए टिकट की दावेदारी करते नजर आयेंगे.

मध्य प्रदेश में अभी भी कम से कम ५० एमपी और एमएलए ऐसे हैं जो सियासी खानदानों के वारिस कहलाते हैं. फिर बिचारे कार्तिकेय ही चर्चा में क्यों!

Published in Tehelka (Hindi) of 28 February 2018

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