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Ordinance to restore Bhopal gas victims' property

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NK SINGH Bhopal: The Madhya Pradesh Government on Thursday promulgated an ordinance for the restoration of moveable property sold by some people while fleeing Bhopal in panic following the gas leakage. The ordinance covers any transaction made by a person residing within the limits of the municipal corporation of Bhopal and specifies the period of the transaction as December 3 to December 24, 1984,  Any person who sold the moveable property within the specified period for a consideration which he feels was not commensurate with the prevailing market price may apply to the competent authority to be appointed by the state Government for declaring the transaction of sale to be void.  The applicant will furnish in his application the name and address of the purchaser, details of the moveable property sold, consideration received, the date and place of sale and any other particular which may be required.  The competent authority, on receipt of such an application, will conduct...

मध्य प्रदेश में नर्मदा परिक्रमा का महत्त्व

Why Narmada is called MP's lifeline

जिसके दर्शन मात्र से पाप कटते हैं


नरेन्द्र कुमार सिंह


श्रध्दा और आस्था से ओत-प्रोत हजारों व्यक्ति हर साल नर्मदा जी की कठिन यात्रा पर निकलते हैं, वही नर्मदा जिसके बारे में हिन्दुओं में मान्यता है कि उसके दर्शन मात्र से पाप कट जाते हैं. नर्मदा परिक्रमा के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलू को समझना हो तो साहित्यकार अमृतलाल वेगड़ को पढ़िए. 

नब्बे साल के वेगड़ १९७७ से कई दफा नदी की परिक्रमा कर चुके हैं और इस विषय पर उन्होंने गुजराती और हिंदी में कई सुन्दर किताबें लिखी हैं. अपनी जिन्दगी का लगभग एक-चौथाई समय उन्होंने इसके किनारे की उबड़-खाबड़ पगडंडियों पर पैदल चलते हुए गुजारी हैं.


अगर वेगड़ के यात्रा वृतांत को पढने का आपके पास समय नहीं, तो कोई बात नहीं. आप यह छोटा सा किस्सा पढ़ लें. सचमुच का किस्सा.


मध्य प्रदेश के मालवा में कुछ जगहों के नाम इतने संगीतात्मक हैं कि मन में सितार की तरह बज उठते हैं ---- गंधर्वपुरी, तराना, ताल, सोनकच्छ. इन्ही में से एक है क्षिप्रा, इंदौर के पास का एक क़स्बा.


उस कस्बे के पास से गुजरते हुए पिछले दिनों एक पत्रकार मित्र को एक अनोखा नर्मदा यात्री मिला. भगवा कपडे पहने उस यात्री की उम्र का अंदाज लगाना मुश्किल था. उसने एक टुटही साइकिल पर २,६०० किलोमीटर लम्बी परिक्रमा करने की ठानी थी. नितांत अकेले.


उसकी सारी जमा-पूँजी के साथ-साथ उस साइकिल पर सवार था एक रोबीला जर्मन शेफर्ड कुत्ता. तमाम सामान से लदी फदी उस साइकिल को पेडल मारने में वह अनोखा तीर्थ यात्री भरी दोपहरी में हांफ रहा था. पर उसे यह गवारा नहीं था कि अपने ख़ास मित्र को वह पैदल चलने कहे.


नर्मदा की पवित्र यात्रा पर कुत्ता क्यों? “मेरे पीछे घर पर कौन उसे देखेगा,” उसका मासूम जबाब था.


इन दो अनोखे तीर्थ यात्रियों के किस्से से मालूम पड़ता है कि नर्मदा के किनारे बसने वाले लोगों के जीवन में इस नदी का और उसकी परिक्रमा का क्या महत्व है. वह कुत्ता और उसका मालिक घर-परिवार से दूर महीनों नर्मदा के किनारे गुजारेंगे. मांग कर खायेंगे. उपले और जलावन इकठ्ठा कर अपना खाना खुद पकाएंगे. जहाँ आश्रय मिला, सो जायेंगे और अगर जगह नहीं मिली तो तारों की छाँव तो है ही. और साथ में करेंगे नर्मदा मैय्या की पूजा.

मध्य प्रदेश की जीवन रेखा



नर्मदा की महत्ता इस इलाके में इसलिए है कि इसके आँचल में पलने वाले लाखों लोगों के लिए यह नदी सदियों से भरण-पोषण का जरिया रही है. इस इलाके की यह एकमात्र नदी है जो कभी नहीं सूखती है.


मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर १,३०० किलोमीटर का सफ़र तय कर नर्मदा जी जब भरुच (गुजरात) के पास अरब सागर में मिलती हैं तो रास्ते में जीवन बांटते चलती हैं. 


इसका पानी न केवल मनुष्यों और पशु-पक्षियों के पीने के काम आता है, बल्कि खेतों को सींचता है, कल-कारखाने चलाता है और बिजली पैदा करता है. हजारों मछुवारों के परिवार इसी नदी के सहारे पलते हैं. पूरे इलाके के असंख्य नदी-नाले, तालाब, कुंए और टूयुबवेल इसीकी बदौलत जिंदा रहते हैं.


आश्चर्य नहीं कि लोग इस नदी की पूजा करते हैं.

Published in Tehelka (Hindi) of 15 Nov 17

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