NK's Post

Resentment against hike in bus fare mounting in Bhopal

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NK SINGH Though a Govt. directive has frustrated the earlier efforts of the MPSRTC to increase the city bus fares by as much as 300 per cent, the public resent even the 25 per cent hike. It is "totally unjust, uncalled for and arbitrary", this is the consensus that has emerged from an opinion conducted by "Commoner" among a cross-section of politicians, public men, trade union leaders, and last but not least, the common bus travelling public. However, a section of the people held, that an average passenger would not grudge a slight pinche in his pocket provided the MPSRTC toned up its services. But far from being satisfactory, the MPSRTC-run city bus service in the capital is an endless tale of woe. Hours of long waiting, over-crowding people clinging to window panes frequent breakdowns, age-old fleet of buses, unimaginative routes and the attitude of passengers one can be patient only when he is sure to get into the next bus are some of the ills plaguing the city b...

रेरा पर रार: अफसरों में तकरार

Tussle over RERA in MP

नरेन्द्र कुमार सिंह


देश का पहला रेरा मध्य प्रदेश में बना था. और रेरा के अधिकारों को लेकर सरकार के अन्दर सबसे पहली तकरार भी मध्य प्रदेश में ही चालू हुई है. अफसर गुथ्थम गुथ्था हो रहे हैं और बिल्डरों की बांछे खिली हैं.

रेरा अर्थात रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी. पिछले साल संसद ने एक क्रन्तिकारी कानून बनाकर बेलगाम मुनाफाखोरी और धोखाधड़ी करने वाले बिल्डरों और रियल इस्टेट एजेंटों की नकेल कसने की कोशिश की. इस कानून का मक्सद था घर खरीदने वालों के हितों की रक्षा करना. साथ ही रेरा के जरिये घरों की कीमत को तथा लेनदेन को पारदर्शी बनाकर काले धन के लिए कुख्यात इस बिज़नेस में अच्छे और साफ़ सुथरे निवेश को बढ़ावा देना.

मध्य प्रदेश में रेरा की स्थापना मई २०१७ में हुई. राज्य के भूतपूर्व चीफ सेक्रेटरी अंटोनी डेसा इसके पहले अध्यक्ष बनाये गए. बिल्डरों की आनाकानी और मुकदमेबाजी के बावजूद प्रशासन में उनके इकबाल और रुतबे की वजह से शुरुवाती दौर में रेरा की गाडी सरपट दौड़ी. पर लगता है रेरा का अश्वमेध यज्ञ राज्य सरकार के ही एक तबके को रास नहीं आया. उन्होंने इस सरकारी एजेंसी के कामकाज में कानूनी पच्चड फंसा दिया, जिसकी वजह से इसकी रफ़्तार धीमी पड़ गयी है.

संपत्ति की रजिस्ट्री करने वाले अफसरों को एक सर्कुलर भेजकर पिछले दिनों रेरा ने कहा था कि वे बिल्डरों द्वारा बेचे जा रहे मकान या फ्लैट की रजिस्ट्री करने के पहले सुनिश्चित कर लें कि वह प्रोजेक्ट रेरा में आता है. उसने कहा कि जो बिल्डर ३१ जुलाई तक अपना रजिस्ट्रेशन नहीं करवाएंगे वे अपनी संपत्ति की रजिस्ट्री नहीं करवा सकेंगे.

डेसा ने बताया, “हमने पंजीयन विभाग को सलाह दी कि वह ऐसे प्रोजेक्ट की रजिस्ट्री न करे जिसके डेवलपर ने ३१ जुलाई तक रेरा में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन नहीं दिया हो.” इस सर्कुलर के बाद रजिस्ट्री दफ्तरों ने बिल्डरों की ऐसी संपत्तियों की रजिस्ट्री बंद कर दी जो रेरा में नहीं गए थे.

रेरा के सर्कुलर के बाद नयी रजिस्ट्री की तादाद में २० प्रतिशत तक गिरावट आ गयी. कमर्शियल टैक्स विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी मनोज श्रीवास्तव ने कहा, “इससे रजिस्ट्री की तादाद कम हो गयी और साथ ही हमारी आमदनी भी घट गयी.” रजिस्ट्री दफ्तर कमर्शियल टैक्स विभाग के तहत आते हैं. फंड की कमी से जूझ रहे मध्य प्रदेश सरकार के लिए रजिस्ट्री से मिलने वाले पैसे आमदनी का एक बड़ा जरिया है.

रजिस्ट्री पर रोक लगने से सरकार की टैक्स उगाही भले कम हो गयी हो, पर रेरा में रजिस्ट्रेशन के लिए बिल्डरों की बाढ़ आ गयी. प्राधिकरण के बनने के बावजूद रेरा में रजिस्टर्ड होने के नाम पर बिल्डर आगे पीछे हो रहे थे. रेरा में रजिस्ट्री के लिए बहुत कम आवेदन आ रहे थे क्योंकि बिल्डरों का ख्याल है कि रेरा के नियम दूसरे राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश में काफी सख्त बनाये गए हैं.

रजिस्ट्री बंद होने से बिल्डर और संपत्ति खरीदने वाले परेशां हो गए. इसका बिक्री पर असर पड़ा और बिल्डर घबड़ा गए. “मेरे पास छोटी छोटी जगहों से बिल्डरों के फ़ोन आने लगे कि उन्हें रेरा में रजिस्ट्रेशन चाहिए,” भोपाल के अग्रणी आर्किटेक्ट मनोज मिश्रा कहते हैं.

विवाद की जड़


इसी दौरान सरकार की घटती आमदनी से चिंतित कमर्शियल टैक्स विभाग ने पैनिक बटन दबाया. मनोज श्रीवास्तव ने एक अगस्त में रेरा को एक जवाबी सर्कुलर भेजा, जिसकी कॉपी न केवल सारे रजिस्ट्री दफ्तरों को बल्कि कलेक्टर, कमिश्नर जैसे सारे आला अफसरों को भेजी गयी. उसमें उन्होंने कहा कि रेरा के पास रजिस्ट्री पर रोक लगाने का कोई अधिकार नहीं है.

कमर्शियल टैक्स विभाग ने निर्देश दिया कि किसी संपत्ति का अगर सौदा होता है और उसके दस्तावेज रजिस्ट्री के लिए आते हैं तो उसे रोका नहीं जाये, भले रेरा में उसका रजिस्ट्रेशन हुआ हो या न हुआ हो. श्रीवास्तव ने रेरा को भी एक चिठ्ठी भेजी कि रजिस्ट्री तथा स्टाम्प एक्ट में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि रेरा में पंजीयन के बिना संपत्ति की रजिस्ट्री नहीं हो सकती.

इसके बाद रेरा और कमर्शियल टैक्स विभाग के बीच कानूनी मुद्दों को लेकर विवाद चालू हो गया. साथ ही प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री भी चालू हो गयी. बिल्डर खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बिना रेरा में गए हुए भी वे माल बेच पाएंगे. जाहिर है रेरा के कामकाज पर इसका बुरा असर पड़ा. मनोज मिश्रा ने बताया, “छोटे शहरों के जो बिल्डर उस दौरान रेरा में दिलचस्पी दिखा रहे थे वे उन्होंने इस बारे में बात करना भी बंद कर दिया.”

इस तरह १९८० बैच के आईएएस अंटोनी डेसा और, उनसे बहुत जूनियर, १९८७ बैच के मनोज श्रीवास्तव आमने-सामने हैं.

मामला पेचीदा इसलिए हो गया है कि यह कार्यवाही मनोज श्रीवास्तव ने की है. उनके इस कदम ने भले ही बिल्डरों का फायदा हो गया हो पर उनकी छवि एक साफ़ सुथरे अफसर की रही है. इंदौर कलेक्टर के रूप में कई अवैध इमारतों को उन्होंने जमींदोज किया था. उनके दुश्मन भी उनपर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सकते हैं.

समझा जाता है कि व्यथित होकर डेसा ने श्रीवास्तव को १६ अगस्त को एक चिठ्ठी लिखी, “यदि किसी शासकीय विभाग और प्राधिकरण के मध्य मतभेद है तो उन्हें आपसी विचार-विमर्श से सुलझाना बेहतर है बजाय इसके कि पत्राचार की प्रतियाँ प्रदेश भर के अधिकारियों को पृष्ठांकित करें.”

सब्जी की दुकान चलाने वाले बिल्डर बन गए  


रेरा के सामने काम का पहाड़ खड़ा है. दूसरे राज्यों की तरह ही मध्य प्रदेश में भी रियल एस्टेट क्षेत्र में कोहराम मचा है. सैकड़ों की तादाद में प्रोजेक्ट अधूरे खड़े हैं और इन्वेस्टमेंट आना रुक गया है. बिल्डरों को लग रहा है उनका दिवाला न निकल जाये और निवेश करने वालों को लग रहा है उनका पैसा न डूब जाये.

जब रियल एस्टेट चढाव पर था तो हर कोई इस क्षेत्र में घुस गया था क्योंकि उन्हें वहाँ भारी मुनाफा दिख रहा था. भोपाल में एक सब्जी वेचने वाला भी बिल्डर बन गया था. पैसा इफरात आ रहा था. ये बिल्डर घर खरीदने वालों से एडवांस पैसे लेते थे, बैंकों से क़र्ज़ उठाते थे और प्रोजेक्ट चालू कर देते थे. बाद में धीरे से फंड नए प्रोजेक्ट की तरफ डाइवर्ट कर देते थे. ऐसा करने से मार्केट में प्रॉपर्टी की कीमतें आसमान छूने लगी.

नोटबंदी और जीएसटी ने एकबार फिर कीमतों को वास्तविक धरातल पर ला दिया है. भोपाल के आर्किटेक्ट अजय कटारिया कहते हैं, “रही सही कसर अब रेरा ने पूरी कर दी है. उसने तो बिल्डरों की कमर ही तोड़ दी है.” रेरा में कई ऐसे प्रावधान हैं जिनकी वजह से फण्ड डायवर्सन मुश्किल हो जायेगा. मसलन, उन्हें प्रोजेक्ट की ७० प्रतिशत रकम कंस्ट्रक्शन पर खर्च करनी पड़ेगी और उसका हिसाब रेरा को देना होगा.

Published in Tehelka (Hindi) of 15 Oct 2017

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